अयोध्या में है भगवान श्रीराम की कुलदेवी का मंदिर, पूरी होती हैं भक्तों की सभी मुरादें
क्या कहता है गजेटियर
इटावा के गजेटियर में कालीवाह मंदिर को काली भवन का नाम दिया गया है। यमुना के तट के निकट स्थित यह मंदिर देवी भक्तों का प्रमुख केन्द्र है। इष्टम अर्थात शैव क्षेत्र होने के कारण इटावा में शिव मंदिरों के साथ दुर्गा के मंदिर भी बड़ी सख्या में हैं। इस मंदिर में स्थित मूर्ति शिल्प 10वीं से बारहवीं शताब्दी के मध्य का है। वर्तमान मंदिर का निर्माण बीसवीं शताब्दी की देन है। मंदिर में देवी की तीन मूर्तियां है- महाकाली, महालक्ष्मी तथा महासरस्वती।
शिराज-ए-हिंद नहीं घूमे तो मानिए यूपी दर्शन रहेगा अधूरा
पौराणिक कथानकों के अनुसारमार्कण्डेय पुराण एवं अन्य पौराणिक कथानकों के अनुसार दुर्गा जी प्रारम्भ में काली थीं। एक बार वह भगवान शिव के साथ आलिगंनबद्ध थीं, तो शिवजी ने परिहास करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि जैसे श्वेत चंदन वृक्ष में काली नागिन लिपटी हुई हो। पार्वती जी को क्रोध आ गया और उन्होंने तपस्या के द्वारा गौर वर्ण प्राप्त किया। महाभारत में उल्लेख है कि दुर्गाजी ने जब महिषासुर तथा शुम्भ-निशुम्भ का वध किया तो उन्हें काली, कराली, काल्यानी आदि नामों से भी पुकारा जाने लगा।
साम्प्रदायिक सद्भाव की त्रिवेणी है कौशाम्बी का कड़ाधाम, यहीं है फेमस सिद्धपीठ मां शीतला का मंदिर
श्रद्धा का केन्द्र है कालीवाह मंदिर
कालीवाहन मंदिर के बारे में जनश्रुति है कि प्रातः काल जब भी मंदिर का गर्भगृह खोला जाता है, तो मूर्तियां पूजित मिलती हैं। कहा जाता है कि द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वमत्थामा अदृश्य रूप में आकर इन मूर्तियों की पूजा करता है। कालीवाह मंदिर श्रद्धा का केन्द्र है। नवरात्रि के दिनों में यहाँ बड़ी संख्या में श्रृद्धालु आते हैं।