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पाकिस्तान की अब ऐतिहासिक ‘पंज तीरथ’ मंदिर के द्वार खोलने की तैयारी, हिंदू श्रद्धालुओं में उत्साह

हिंदू श्रद्धालुओं ( Hindu Pilgrims ) के लिए पाकिस्तान की एक और अच्छी पहल
करतारपुर कॉरिडोर और उससे पहले सियालकोट स्थित गुरुद्वारा चोआ साहिब भी खुला

Dec 27, 2019 / 01:09 pm

Shweta Singh

panj tirath temple to open

panj tirath temple to open

पेशावर। करतारपुर कॉरिडोर के ऐतिहासिक उद्धाटन के बाद पाकिस्तान अब एक और धार्मिक स्थल खोलने की तैयारी में है। हिंदू श्रद्धालुओं ( Hindu Pilgrims ) के लिए एक और सौगात देते हुए पाकिस्तान पेशावर स्थित प्राचीन पंज तीरथ ( Panj Tirath Pakistan ) के द्वार भारतीयों के लिए खोलने की तैयारी में है। उम्मीद जताई जा रही है कि अगले साल तक यहां भारतीयों के लिए रास्ता साफ हो जाएगा।

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अगले महीने खोला जा सकता है मंदिर

पंज तीरथ को पाकिस्तान ने साल के शुरुआत में ही राष्ट्रीय विरासत घोषित किया था। एक मीडिया रिपोर्ट में दावा किया जा रहा है कि मंदिर अगले महीने खुल सकता है। इसके पहले पाकिस्तान ने एक हजार साल पुराने शिवाला तेजा सिंह मंदिर को अक्टूबर में खोला था। वहीं, करतारपुर कॉरिडोर और उससे पहले सियालकोट स्थित गुरुद्वारा चोआ साहिब भी उन धार्मिक स्थलों में शामिल है, जिसे पाकिस्तान ने हाल ही में खोला है। आपको बता दें कि ये सभी धार्मिकस्थल बंटवारे के बाद बंद कर दिए गए थे।

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मंदिर को नुकसान पहुंचाने वाले पर 20 लाख रुपये जुर्माना और पांच साल जेल

आपको बता दें कि इस विश्व प्रसिद्ध मंदिर को पांच तालाबों की वजह से इसे पंज तीर्थ कहा जाता है। इसी साल जनवरी में पाकिस्तान के डायरेक्टरेट ऑफ आर्कियोलॉजी एंड म्यूजियम ने एक अधिसूचना जारी कर पंज तीरथ को एक ऐतिहासिक विरासत घोषित किया था। नई घोषणा के बाद इस स्थल को नुकसान पहुंचाने वाले को 20 लाख रुपये जुर्माना और पांच साल जेल का भी प्रावधान है।

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पंज तीरथ की खास बातें

इस प्राचीन मंदिर में खजूर के पेड़ों वाला बगीचा भी है। ऐसी मान्यता है कि कार्तिक महीने में यहां के तालाबों में स्नान करने का काफी महत्व है। 17वीं सदी से ही श्रद्धालु यहां पहुंचकर तालाब में स्नान करते हैं और खजूर के पेड़ों के नीचे पूजा करते हैं। बीच में इस प्रक्रिया में काफी व्यवधान पड़ गया था। सत्रहवीं शताब्दी में अफगान दुर्रानी राजवंश के दौरान इस प्राचीन मंदिर को काफी नुकसान पहुंचाया गया। हमले में तालाब और आसपास के मंदिर टूट-फूट गए। हालांकि, 18वीं सदी में सिख शासन के दौरान हिंदुओं ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। इसके बाद से यहां पूजा दोबारा शुरू हो गई।

 

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