भूटान में होने वाले राजनैतिक परिवर्तन के लिए भारत पहले ही सतर्क हो चुका है। नई दिल्ली को पहले ही उम्मीद थी कि मौजूदा सरकार चुनाव के पहले दौर में बाहर हो जाएगी। भूटान में नेशनल असेंबली चुनावों का प्राथमिक दौर शनिवार को आयोजित किया गया था और कुल मतदाताओं में से 66% ने अपने वोट डाले थे। डीएनटी 31.5% वोटों के साथ विजेता घोषित हुआ।इसके बाद 30.6% वोटों के साथ डीपीटी और मौजूदा सत्तारूढ़ दल पीडीपी आश्चर्यजनक रूप से तीसरे स्थान पर रहा। भूटान में चुनाव संबंधी नियमों के अनुसार 27.2% वोटों के साथ पीडीपी 18 अक्टूबर को संसद के निचले सदन में चुनाव में भाग नहीं ले सकता। भूटान के संविधान के अनुसार, केवल दो राजनीतिक दल आम चुनाव के अंतिम दौर में भाग ले सकते हैं ।
हालांकि डोकलम प्रकरण के दौरान भूटान और भारत के संबंध दृढ़ रहे थे लेकिन बीजिंग, थिंपू के साथ राजनयिक संबंध बहाल करने के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। अक्टूबर में हुए चुनावों के बाद मुख्य विपक्षी दल डीपीटी अगर सत्ता में आई तो यह भारत के लिए अच्छा नहीं होगा। 2008-2013 में जब भूटान में डीपीटी की सरकार थी तब भूटान का झुकाव चीन की तरफ अधिक था। 2013 में भूटान के साथ भारत के संबंधों में तल्खी उस वक्त आई थी, जब भारत ने भूटान को केरॉसिन और कुकिंग गैस पर दी जा रही सब्सिडी बंद कर दी थी। उस वक्त भूटान में चुनाव थे और वहां पेट्रोल-डीजल की कीमतें काफी बढ़ गई थीं। नई सरकार के गठन के मद्देनजर अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भूटान भारत के और करीब आता है या नेपाल की तरह शंकित होकर भारत से और दूरी बना लेता है।