वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार वर्तमान में देश में 9 प्रजाति के गिद्ध हैं, इनमें सात प्रजाति के गिद्ध राजस्थान में पाए जाते हैं। सरिस्का में भी इनमें से ज्यादातर प्रजातियों के गिद्धों की मौजूदगी की पुष्टि हुई है।सरिस्का में माइग्रेटरी प्रजाति के यूरेशियन ग्रिफोन व रेड हैडिट गिद्ध में से यूरेशियन ग्रिफोन के पंख पर सफेद बाल होते हैं, वहीं रेड हैडिट गिद्ध का मुंह लाल होता है। वैसे सरिस्का मे लंबी चोंच वाला गिद्ध सबसे ज्यादा पाया जाता है। गिद्धों के सरिस्का में कई रेस्टिंग प्वाइंट है, इनमें गोपी जोहरा, देवरा चौकी, टहला में मानसरोवर बांध, पाण्डूपोल, काली पहाड़ी के समीप खड़ी चट्टानें शामिल हैं। गिद्ध इन प्वाइंट पर ऊंची उड़ान के बाद आराम करते हैं।
जहां बाघ, वहां गिद्ध ज्यादा वन्यजीवन के जानकारों के अनुसार जहां बाघों की मौजूदगी ज्यादा होगी, वहां गिद्ध जरूर मिलेंगे। सरिस्का की देवरा चौकी क्षेत्र में वर्तमान में सबसे ज्यादा गिद्ध है क्योंकि इस इलाके में करीब छह बाघ रहते हैं। इनमें बाघिन एसटी-10, एसटी-12 व शावक तथा बाघ एसटी- 13 हैं। बाघों के इलाके में गिद्ध आसानी से भोजन मिल जाने की वजह से रहना पसंद करते हैं। वे बाघ की मौजूदगी में ही उसके शिकार पर हाथ साफ करने तक से नहीं चूकते। इसके अलावा बाघ के खा चुकने के बाद शेष हिस्सा गिद्धों के हिस्से ही आता है।
पारिस्थितिकी संतुलन के लिए जरूरी हैं गिद्ध सरिस्का के वरिष्ठ वन्यजीव चिकित्सक डॉ. दीनदयाल मीणा का कहना है कि जंगल में पारिस्थितिकी संतुलन के लिए गिद्ध होना जरूरी है। शिकार के बाद बचे मांस व अवशेष खाकर वे जंगल को साफ रखते हैं। इसी वजह से गिद्ध को जंगल का प्राकृतिक सफाईकर्मी कहा जाता है। सरिस्का में बाघों के पुनर्वास के बाद गिद्धों की संख्या बढ़ी है।
सरिस्का में कई प्रजाति के गिद्ध सरिस्का में गिद्धों की 4 प्रजातियां मिलती है। पहली इंडियन वल्चर, इन्हें लोंग बिल्ट वल्चर भी कहा जाता है। इसके अलावा इंजिप्सियन, सिनेरियर व रेड हेण्ड, इन्हें किंग वल्चर भी कहा जाता है। सरिस्का के हवामहल, टहला, कंकवाड़ी व क्रासका क्षेत्र में पाए जाते हैं।आरएन मीणा क्षेत्र निदेशक, सरिस्का बाघ परियोजना
सरिस्का में गिद्धों की फैक्ट फाइल इंडियन वल्चर– 300 इंजिप्सियन– 100 सिनेरियर– 50 रेड हेण्ड– 50