अलवर. अवैध खनन के लिए अलवर जिला लंबे समय से चर्चित रहा है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण से लेकर विभिन्न न्यायालय यहां अवैध खनन को लेकर तल्ख टिप्पणी कर चुके हैं, लेकिन अवैध खनन पर पूरी तरह रोक नहीं लग सकी। इसका बड़ा कारण सरकार के पास पर्याप्त संसाधनों की कमी होना है।
अलवर जिले में चिनाई पत्थर, मार्बल, बजरी सहित अन्य खनिज का अवैध खनन रहा है। इस समस्या से खान विभाग ही नहीं, वन विभाग एवं टाइगर प्रोजेक्ट सरिस्का भी जूझता रहा है। लेकिन तीनों ही विभाग लंबे समय से स्टाफ की कमी झेलते रहे हैं। इसी का नतीजा है कि अलवर में अवैध खनन माफिया पर रोक नहीं लगाई जा सकी है।
यह है विभागों में स्टाफ की िस्थति अवैध खनन रोकने की बड़ी जिम्मेदारी खान विभाग की है। राज्य सरकार की ओर से खान विभाग में नाम मात्र का स्टाफ स्वीकृत है। इसमें भी करीब आधे पद लंबे समय से खाली चल रहे हैं। अलवर खनि अभियंता अलवर के अंतर्गत सहायक खनि अभियंता का एक पद स्वीकृत है जो रिक्त है, वहीं फोरमैन के चार पद हैं, इनमें एक पद रिक्त है तथा एक महिला फोरमैन लंबे अवकाश पर हैं। वहीं खनि अभियंता विजिलेंस में फोरमैन का एक पद स्वीकृत हैं, लेकिन वह खाली है। वहीं तिजारा में सहायक अभियंता का पद खाली है, वहां केवल एक फोरमैन हैं। विभाग में सुरक्षा के लिए माइंस गार्ड नहीं हैं, वहीं बॉर्डर गार्ड भी करीब 10 ही मिल पाते हैं, जो कि अलवर जिले में अवैध खनन की रोकथाम के लिए पर्याप्त नहीं है। इसी प्रकार वन मंडल अलवर की 7 रेंज में 17 नाके व 24 चौकी हैं। जिले में फोरेस्ट गार्ड के 78 पद स्वीकृत हैं, इनमें मात्र 25 ही कार्यरत हैं। इसी प्रकार टाइगर रिजर्व सरिस्का की 103 बीटों पर करीब 55 वनकर्मी ही तैनात है। वहीं कई अन्य पद खाली है। विभाग में मौजूद कर्मचारियों को अपना दैनिक कार्य करने में ही परेशानी आ रही है। ऐसे में अवैध खनन पर रोक के लिए सतत कार्रवाई करना मुश्किल हो रहा है।
प्रशासन व पुलिस पर निर्भर खान, वन एवं सरिस्का विभाग अवैध खनन पर रोक के लिए प्रशासन एवं पुलिस पर निर्भर रहते हैं। लेकिन हर दिन प्रशासन व पुलिस का जाप्ता मिलना भी संभव नहीं होता। वहीं जिला स्तर पर गठित एसआईटी की जांच भी कभी- कभार ही हो पाती है। इससे अवैध खनन पर पूरी तरह रोक लगना संभव नहीं हो सका है।