ये है अड़ंगा इन योजनाओं के काश्तकार जमीन के बदले 25 प्रतिशत विकसित भूखण्ड मांग रहे हैं जबकि 2005 से पहले की अवार्डशुदा योजनाओं में 15 प्रतिशत विकसित भूखण्ड देने का प्रावधान है। जिसके कारण इसे राजनीतिक रंग दिया हुआ है। इनमें से अधिकतर का 1996 और आसपास के सालों में अवार्ड जारी हो चुका है। उसके बाद से सभी योजनाएं अटकी पड़ी हैं।
आगे नई जमीन अवाप्ति करना मुश्किल भूमि अवाप्ति के नए कानून के अनुसार आगे आवासीय योजनाओं के लिए जमीन अवाप्त करना और अधिक मुश्किल काम है। शहरी क्षेत्र में किसानों को जमीन के बदले डीएलसी का चार गुना कीमत दिए जाने का प्रावधान है। जिससे जमीन काफी महंगी हो जाती है।
ये हैं लम्बित योजनाएं साकेत नगर योजना में करीब 403 बीघा जमीन, एमआई आवासीय योजना में करीब 513 बीघा, रोहिणी नगर योजना में करीब 345 बीघा जमीन है। इन तीनों योजनाओं में करीब 1250 बीघा से अधिक जमीन है जिसमें कई हजार भूखण्ड जनता को मिल सकते हैं। इनके अवार्ड भी जारी हो चुके हैं। इसके बावजूद योजनाएं सरकार के स्तर पर अटकी पड़ी हैं। जानकारों का मानना है कुछ पहुंच वाले लोगों के कारण ऐसा हो रहा है।
तो योजनाएं ड्राप हो जाएंगी यूआईटी व सरकार का यही रुख रहा तो दीनदयाल फेज प्रथम की तरह सभी योजनाएं धीरे-धीरे ड्रॉप हो जाएंगी। फिर जरूरतमंद को भूमाफिया व बिल्डरों के भरोसे रहना पड़ेगा। माना जा रहा है कि जल्दी दीनदयालय फेज द्वितीय योजना भी ड्रॉप होने वाली है जिसमें भी अधिकतर निर्माण हो चुका है। गुलमोह विस्तार आवासीय योजना का मामला भी न्यायालय में विचाराधीन है। इससे पहले गुलमोहर योजना में राठ नगर बस चुका है।
धीरे-धीरे प्रयास जारी विज्ञाान नगर व शालीमार आवासीय योजनाएं धरातल पर आ रही हैं। धीरे-धीरे अन्य योजनाओं को भी जमीन पर लाने के पूरे प्रयास हैं। ताकि शहर का सुनियोजित विकास हो सके।
कान्हाराम, सचिव, यूआईटी अलवर