अहमदाबाद.
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) का शहर स्थित अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र (एसएसी) ने देसी परमाणु घड़ी (एटॉमिक क्लॉक) विकसित की है। इसे दिसम्बर में बाहरी अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजने के दौरान उपयोग में लिया जाएगा।
बुधवार को राष्ट्रीय तकनीकी दिवस पर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष प्रदर्शनी केन्द्र में आयोजित कार्यक्रम के दौरान अंतरिक्ष उपयोग केन्द्र के निदेशक तपन मिश्रा ने बताया कि दिसम्बर महीने में सैटेलाइट भेजने के दौरान इसकी अंतरिक्ष में मजबूती की जांच हो सकेगी। दिसम्बर में भेजे जाने वाले सैटेलाइट में तीन विदेशी परमाणु घडिय़ां हैं। प्राय: सभी सैटेलाइट के साथ तीन घडिय़ां ही भेजी जाती है, लेकिन भारत चार घडिय़ां भेजेगा जिसमें चौथी घड़ी देसी होगी जिसे विकसित किया गया है।
फिलहाल इसरो आयाती परमाणु घडिय़ों पर निर्भर है जिससे नेविगेशनल सैटेलाइट को सटीक स्थिति का पता लगता है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में परमाणु घडिय़ों को सबसे स्थित घड़ी माना जाता है। ये घडिय़ां विश्व में सिर्फ तीन या चार कंपनियां बनाती हैं। इसकी तकनीक काफी निषेधित है जिसे हमें आयात करना पड़ता है, लेकिन अब हम इसे बना रहे हैं। इसका पहला मॉडल अभी टेस्टिंग-समीक्षा चरण में है।
इसरो के क्वालिटी एश्योरेंस ग्रुप की ओर से मुहैया किए जाने वाले आवश्यक प्रमाणपत्र के बाद इस घड़ी को सैटेलाइट पर रखा जाएगा। इस संबंध में लागत का खुलासा नहीं किया गया। परमाणु घड़ी बीते दिनों इसरो के
आईआरएनएसएस (इंडियन रीजनल नेविगेशन सैटेलाइट सिस्टम) के विफल होने के कारण चर्चा में था।
आईआरएनएसएस सिस्टम के जीपीएस पद्धति को बदले जाने के बारे में उन्होंने कहा कि इसरो ने यह उपकरण पहले ही विकसित कर लिया है जिससे सरकारी एजेंसियों को मदद मिल सके। यह उपकरण थोड़े महंगे हैं लेकिन इसकी क्षमता सटीक है। अगले चरण में इसरो इस तकनीक को मोबाइल में लाने का प्रयास करेगा। इसरो की ओर से गत एक वर्ष से जीपीएस के साथ पीएसएलवी मार्गदर्शन के लिए आईआरएनएसएस का उपयोग किया जा रहा है।
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