ताज संरक्षित क्षेत्र के सदस्य केशो मेहरा ने बताया कि जब तक हमें यह नहीं मालूम होगा कि कौन-कौन से वायु प्रदूषण के कारण हैं और उनका क्या योगदान है, हम वायु प्रदूषण से लड़ने की प्रभावी रणनीति नहीं बना सकते हैं। उन्होंने कहा कि ताजमहल को बचाने के लिए बनाया जाने वाला विज़न प्लान बिना वायु प्रदूषण के कारणों को जाने नहीं बनाया जा सकता है। उन्होंने बताया कि पीएम-2.5 व पीएम-10 तरह-तरह के होते हैं और उनका प्रभाव भी अलग-अलग होता है और यह अध्ययन किया जाना आवश्यक है कि ये किस प्रकार के हैं।
आगरा की सड़कों की पटरियां पक्की होनी चाहिए और सड़कों के दोनों ओर की खाली भूमि भी हरियाली युक्त होनी चाहिए। सड़कों की पटरियां और उनके आसपास की भूमि धूल का कारण बनती हैं, जो वाहनों से निकलने वाली प्रदूषित वायु से मिलकर हांनिकारक बन जाती हैं। वायु प्रदूषण से बचने के लिए ‘एक्टिवेटिड कार्बन मास्क’ के प्रयोग होना चाहिये, जो हैवी मैटल को एबज़ॉर्ब कर लेते हैं। औद्योगिक संस्थानों में ‘बैग हाउस फिल्टर’ लगाये जाने चाहिये।
आगरा डवलपमेंट फाउंडेशन के सचिव केसी जैन ने बताया कि आगरा के उत्तर व उत्तर-पूरब से आने वाली हवायें ताजमहल को नुकसान पहुंचाती हैं। इसलिए विन्ड-ब्लॉकर के रूप में इस दिशा में बड़े-बड़े पेड़ों की ग्रीन बैल्ट बननी चाहिए। आगरा में वन क्षेत्र 6-7 प्रतिशत ही है और जब तक निजी भूमि पर सघन वृक्षारोपण नहीं होगा, वायु प्रदूषण को नहीं रोका जा सकता है, जिसके लिए निजी भूमि पर वृक्षों के काटने की स्पष्ट अनुमति हो।
टीटीजेड के सदस्य केशो मेहरा ने बताया कि 30 दिसंबर 1996 को केस संख्या 13381/1984 को एमसी मेहता बनाम भारत सरकार में सुप्रीम कोर्ट ने 48 पेज का स्पष्ट निर्णय दिया। इस निर्णय के 42 वें पेज पर लिखा है कि ये पुरानी अवधारणा है कि उद्योग और पर्यावरण साथ साथ नहीं चल सकते। अब ये अवधारणा स्वीकार नहीं है। नये उद्योग लगना देश की आर्थिक उन्नति के लिये जरूरी है, लेकिन इनके लगने के दौरान पर्यावरण का ध्यान रखना होगा। आगरा में 292 फाउंड्री थी, कि इसी निर्णय में ये भी स्पष्ट किया गया कि अगर फाउंड्री चलानी है, तो गैस लगाओ या टीटीजेड के बाहर चले जाओ। आगरा में फाउंड्री, कॉक और कॉल पर आधारित उद्योगों को बंद करने के लिये कहा गया। 18 साल तक इस टीटीजेड में नये उद्योग लगते हैं, इनका विस्तारीकरण होता रहा।
उन्होंने बताया कि भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की 15 अक्टूबर 2014 को बैठक हुई। उस बैठक में निर्णय कर लिया गया कि नये उद्योग लगेंगे और नाहीं स्थापित उद्योगों का विस्तारीण होगा। पर्यावरण मंत्रालय का ये आदेश सुप्रीम कोर्ट के विरुद्ध था। इसके बाद 8 सिंतरबर 2016 को दोबारा पर्यावरण मंत्रालय की बैठक हुई, जिसमें टीटीजेड में स्थायी रोक लगा दी। जबकि पर्यावरण नियमावली कहती है, यदि किसी भी क्षेत्र में यदि रोक लगानी है, तब उस क्षेत्र को चिन्हित करो और वहां पर कौन सी रोग लगाना चाहते हो, उसके बारे में उस क्षेत्र के दो प्रमुख समाचारा पत्रों में सूचना निर्गत करो। 60 दिन में सूचना मांगी जाए और 180 दिन के बाद उनका निराकरण किया जाए।
केशो मेहरा ने बताया कि बढ़ते प्रदूषण को लेकर डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा से बात हुई। उन्होंने स्पष्ट कहा कि नये उद्योग लग नहीं रहे हैं, फिर भी पीएम-2.5 व पीएम-10 लेवल बढ़ रहा है, आखिर इसके लिये दोषी कौन है। तो बताया गया कि स्मार्ट सिटी का काम हो रहा है। जगह जगह मिट्टी के ढ़ेर लगे हैं। जबकि स्पष्ट आदेश है कि कहीं भी लूज मिट्टी को न रखा जाए। सेंट्रल पॉल्यूशन ने बैठक कर होटल, हॉस्पीटल, हवाई पटटी के निर्माण को भी उद्योग मान लिया। आॅक्सफोर्ट में उद्योगी की साफ परिभाषा है कि जहां रो मोटेटिरयल से कोई चीज बनाई जाए, उसे उद्योग माना जाता है।
केशो मेहरा ने बताया कि हर बार सवाल उठता है, कि ताजमहल पीला हो रहा है। उद्योग पर रोक लगनी चाहिये। एक किलोमीटर के फुवारे लगा दो, धूल के कड़ नहीं जायेंगे। घास लगा दों। रोड एंड टू एंड बनाओ। सीमेंट या रबर रोड बनाओ। धूल के कड़ों से ताजमहल को नुकसान नहीं होता है।
पश्चिमी गेट में बनने वाली मल्टी लेवल पार्किंग 106 करोड़ रुपये
शिल्पग्राम में बनने वाली मल्टी लेवल पार्किंग 55 करोड़ रुपये
खेरिया मोड़ पर बनने वाला स्टेडियम 35 करोड़ रुपये
कोसी-बरसाना सड़क का चौड़ीकरण
मेहताब बाग में तैयार होने वाली एसटीपी 35 करोड़ रुपये
खेरिया मोड़ पर स्टेडियम 75 करोड़ रुपये