Person of the week पवन आगरी के जीवन का एक ही उद्देश्य- हँसाओ ताकि टेंशन न रहे
-हँसाते-हँसाते पूरे हो गए 25 साल, देश-विदेश में बुलाए जा रहे
-विभिन्न चैनलों पर टीवी पर शो के बाद प्रसिद्धि कई गुना बढ़ी
-उनके लिए समाजसेवा है नारायण की ‘आराधना’, मिलता है आत्मिक सुख
आगरा। पवन आगरी। एक ऐसा शख्स जिसके जीवन का उद्देश्य है हँसाओ और टेंशन दूर भगाओ। देश-दुनिया को हँसाते-हँसाते पूरे 25 साल हो गए। यूं तो उनका पूरा नाम पवन कुमार अग्रवाल है, लेकिन शायद ही कोई इस नाम से जानता हो। पवन आगरी के नाम से सब जानते हैं। विभिन्न टीवी चैनलों पर आते रहते हैं। आशु कवि के रूप में भी उनकी ख्याति है। तत्काल कविता की रचना करने में सिद्धहस्त हैं। वे समाजसेवी भी हैं। उनके लिए समाजसेवा का मतलब है नारायण की आराधना। आराधना संस्था के अध्यक्ष के रूप में साहित्यिक, सांस्कृतिक और समाजसेवी गतिविधियों को नया आयाम दे रहे हैं। पत्रिका के विशेष कार्यक्रम Person of the week में इस बार हमारे मेहमान हैं पवन आगरी। आइए जानते हैं उनके बारे में।
कैसे बने कवि पवन आगरी का जन्म 8 नवम्बर, 1972 को एक मध्यमवर्गीय वैश्य परिवार में हुआ। दूरसंचार विभाग में कार्यरत इनके पिता मुन्नालाल अग्रवाल के काव्य श्रवण के शौक ने पवन अग्रवाल में छात्र जीवन से ही कविता के प्रति रुचि जगा दी। 18 वर्ष की उम्र में रश्मि पुंज साहित्य परिषद द्वारा सन 1990 में आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में उन्होंने इसे परवान चढ़ाया। सन 1995 में चित्रांशी संस्था द्वारा आयोजित प्रतिष्ठित मुशायरे में उनको दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित फ़िल्म गीतकार जनाब मजरूह सुल्तानपुरी की सदारत और प्रख्यात शायर वसीम बरेलवी की निज़ामत में उन्होंने अपनी पहचान पुख्ता की। आज देश विदेश में तकरीबन 1500 से ज्यादा स्टेज शो करने वाले पवन कुमार ‘पवन आगरी’ उपनाम काका हाथरसी ने आगरा का होने की वजह से दिया। बाद में उनकी प्रसिद्धि का भी कारण बना।
टीवी चैनल से लोकप्रियता टीवी चैनलों के कविता से जुड़े हर कार्यक्रम का हिस्सा बन चुके हैं। पहला बड़ा ब्रेक टीवी पर आयोजित युवा हास्य मुकाबले से मिला। 270 प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए वो मेगा फाइनल में पहुँचे और उपविजेता बने। उसके बाद मॉरीशस के राष्ट्रपति भवन में अपनी कविताओं की सीडी के विमोचन अवसर पर सम्मानित होने का अवसर मिला। आज हास्य-व्यंग्य के अनेक बड़े पुरस्कार उनके खाते में दर्ज हैं, जिनमें उज्जैन का ‘टेपा सम्मान’ प्रमुख है। लायंस क्लब, रोटरी क्लब और अनेक ख्याति प्राप्त संस्थाओं ने भी उनको सम्मानित किया है। छुपा रुस्तम अवार्ड से भी नवाज़ा जा चुका है। 2019 में दुबई के अंतर्राष्ट्रीय मुशायरे कवि सम्मेलन में भी पवन आगरी ने शिरकत की है, जिसमें दुनिया के अनेक देशों के कवि और शायर सम्मिलित हुए। टीवी चैनल्स पर आयोजित कार्यक्रम ‘केवी सम्मेलन’ ‘लपेटे में नेताजी’ में और ‘कवि युद्ध’ में अपनी त्वरित और समसामयिक विषयों पर की जाने वाली काव्य रचनाओं के लिए पवन आगरी को खासी लोकप्रियता मिली है। साहित्य सेवा के अलावा पवन आगरी सामाजिक सरोकारों से भी जुड़े हैं। नामचीन संस्था ‘आराधना’ के वे संस्थापक अध्यक्ष भी हैं।
लोकप्रिय पंक्तियां जम्मू एवं कश्मीर से धारा 370 और 35ए हटाए जाने पर उनकी चार पंक्तियां बहुत लोकप्रिय हुईं- केसर की घाटी में खुशहाली छा गई जंगली कुत्तों को गुजराती बिल्ली खा गई
इधर हम प्रियंका में इंदिरा को ढूंढते रहे उधर शाह में पटेल की आत्मा आ गई। पत्रिकाः मंच पर पहला मौका कब मिला? पवन आगरीः पिताश्री के साथ कविताएं सुनते-सुनते कविता लिखने की जिज्ञासा जगी। मैं लिखने लगा। फिर 1990 में रश्मिपुंज साहित्य परिषद द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में पहली बार कविता पढ़ने का मौका मिला।
पत्रिकाः आपने हास्य-व्यंग्य को ही क्यों चुना? पवन आगरीः आजकल आदमी परेशान है। विषम परिस्थितियों से जूझ रहा है। उसे सर्वाधिक जरूरत हास्य रचनाओं की है। चेहरे पर हँसी आती है तो यह परोपकार का काम है। निदा फाजली ने भी कहा है- घर से मस्जिद है बड़ी दूर तो चलो यूं कर लें, किसी रोते हुए बच्चे को हँसाया जाए। मुझे लगता है कि हँसाने से अधिक पुण्य और पुनीत काम हो भी नहीं सकता है। राजनीतिक और सामाजिक विसंगतियों से व्यंग्य निकाला जा सकता है और तंज कसा जा सकता है।
पत्रिकाः हास्य-व्यंग्यकार राजनेताओं और पुलिस को ही निशाना क्यों बनाते हैं? उनके पास और विषय कुछ होते ही नहीं हैं। पवन आगरीः सामाजिक स्थितियों के लिए जिम्मेदार यही लोग हैं। देश की सियासत को अगर आइना दिखाने की कोशिश की है तो सर्वाधिक हास्य-व्यंग्यकारों ने की है। हँसते-हँसाते बात कही और उन लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया।
पत्रिकाः कहते हैं कि साहित्य समाज का दर्पण होता है, लेकिन हमारे कवि किसी न किसी पार्टी के पोषक हो गए हैं, मंच पर उसी पार्टी की बात करते हैं, क्या आपको ऐसा नहीं लगता है?
पवन आगरीः मैं आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूं कि कुछ लोग राजनीतिक विचारधारा को लेकर चल रहे हैं। ऐसा होना नहीं चाहिए। किसी पार्टी के नेता अच्छा काम कर रहे हैं तो तारीफ करो। अगर वे ऐसा काम कर रहे हैं जो देश के अमनचैन के लिए घातक है तो विरोध भी करो।
पत्रिकाः देश और विदेश में कविता पाठ का क्या अनुभव है? पवन आगरीः दुबई में 26 जनवरी से पहले अंतरराष्ट्रीय मुशायरा और कवि सम्मेलन होता है। इसमें पाकिस्तान के लोगों को भी बुलाते हैं। राष्ट्रगान के साथ शुरुआत होती है। वहां कविता के प्रति दीवानगी है।
पत्रिकाः सवाल ये है कि सुधी श्रोता कहां के हैं, भारत के या विदेश के? पवन आगरीः कविता कहीं दीवानगी के साथ सुनी जाती है तो कहीं नहीं। इस मामले में बहुत ज्यादा लकीर नहीं खींची जा सकती है।
पत्रिकाः देश में सबसे अच्छे पांच कवि किन्हें मानते हैं? पवन आगरीः ये बड़ा मुश्किल काम है। मैं मंहगे कवि बता सकता हूं क्योंकि यही उनकी लोकप्रियता का आधार है। डॉ. कुमार विश्वास, शैलेश लोढ़ा, सुरेन्द्र शर्मा, हरिओम पवार, डॉ. अशोक चक्रधर। एक नम्बर से लेकर 10 नम्बर तक यही लोग हैं।
पत्रिकाः इन कवियों ने कविता के साथ चुटकुले सुनाकर लोकप्रियता हासिल की है, ये ठीक है क्या? पवन आगरीः ऐसी बात नहीं है। वे संदेश भी देते हैं। हँसाना कोई मामूली बात नहीं है। अगर वे हँसाकर लोगों को अपना दीवाना बना रहे हैं तो छोटी बात नहीं है।
पत्रिकाः 25 साल पहले और 25 साल बाद के मंच के स्तर में सुधार हुआ है या गिरा है? पवन आगरीः पहले मंच पर आने से पहले कवि गोष्ठियों में खुद को मांजता था। वरिष्ठ कवियों से सलाह करता था। पहले डर रहता था कि हल्की कविता पढ़ी या कविता के तत्वों से हटा तो डांट भी पड़ सकती है। आज ऐसा कुछ नहीं है। किसी तरह से मंच हासिल हो जाता है तो कोई लिहाज नहीं है।
पत्रिकाः साहित्य में चोरी बहुत होती है। क्या आपकी कविताएं चोरी हुई हैं? पवन आगरीः मेरी बहुत सारी कविताएं यूट्यब चैनल पर चोरी करके चलाई जा रही हैं। मेरी कविताओं पर अभिनय करके चलाया जा रहा है। मेरा कहना है कि जिसकी कविता है उसे तो श्रेय दिया जाना चाहिए। मैंने इस मामले में शिकायत भी की है।
पत्रिकाः आप कौन से कवि से प्रेरणा पाते हैं? पवन आगरीः काका हाथरसी से मेरी पहली मुलाकात हुई तो उन्होंने मुझे आगरी नाम दिया। मैं उनसे प्रेरणा पाता हूं। पत्रिकाः कवियों में बहुत पार्टीबंदी, धड़ेबंदी होती है, आप किस धड़े से हैं?
पवन आगरीः मैं किसी धड़े से नहीं है। अगर किसी को कोई कवि पसंद है तो उसे बुलाता है और बुलाना भी चाहिए। किसी गुट से जुड़ने पर ऐसा लगता है कि कोई लकीर खींची जा रही है, जो गलत है।
पत्रिकाः आपको लोकप्रियता टीवी पर आने के बाद अधिक मिली तो पहले से थे? पवन आगरीः मुझे टीवी पर आने के बाद अधिक लोकप्रियता मिली। जितने भी बड़े कवि हैं, उनके लिए टीवी बड़ा माध्यम रहा है। राजनीति से जुड़े काव्य कार्यक्रमों में मुझे लगातार मौका मिल रहा है।
पत्रिकाः अपनी लोकप्रिय कविता सुनाइए। पवन आगरीः हिन्दुस्तान में हर व्यक्ति कुछ न कुछ खा रहा है। केवल चिल्ला वह रहा है, जिसे खाने का मौका नहीं मिल रहा है। वीडियो में सुनिए पूरी कविता।
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