ये हैं इस रोग के लक्षण
इस रोग के लक्षण रोपाई करने के दो से तीन सप्ताह में दिखाई देने लगते हैं। इसमें रोग ग्रस्त पौधा अन्य पौधों की अपेक्षा अधिक लम्बा हो जाता है। जिसके कारण इसे झण्डा रोग भी कहते हैं। वातावरण में अत्याधिक आद्रर्ता होने पर सड़न भी देखी गयी है। जिससे संक्रमित पौधा सड़ कर समाप्त हो जाता है और यदि यह पौधा नष्ट नहीं हाता तो इसकी बढ़वार सामान्य से अधिक हो कर बालियां तो बनती है किन्तु इन बालियों में दाने नहीं पड़ते, जिससे फसल के उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। यह रोग फ्यूजेरियम नाम फफूंदी के संक्रमण से होता है तथा बीज जनित रोग है और संक्रमित बीज के द्वारा पौधों में संक्रमण होता है, तथा बाद में खड़ी फसल में इस रोग में बीजाणु हवा द्वारा फैलकर स्वस्थ्य पौधों को भी संक्रमित कर देते है।
उप निदेशक कृषि रक्षा ने बताया कि इस रोग की रोकथाम का कारगर एवं श्रेष्ठ उपाय बीज शोधन करके बीज की बुआई करना है, किन्तु वर्तमान में बीज उपचार की अवस्था निकल जाने के कारण खड़ी फसल में प्रोपीकोनॉजोल 25 प्रतिशत ईसी नामक फफूंदी नाशक की एक मिली लीटर मात्रा को एक लीटर पानी के हिसाब से घोलकर आवश्यकतानुसार छिड़काब किया जाए। सामान्य दशा में एक एकड़ में लगभग 200 लीटर पानी की आवश्यकता होगी जिसके लिए 200 मिली लीटर प्रोपीकोनॉजोल 25 प्रतिशतः ईसी प्रर्याप्त होगा। इसके अतिरिक्त कार्बन्डाजिम व मैन्कोजेब फॅफूदी नाशक रसायन की आधी-आधी मात्रा में मिलाकर दो ग्राम फॅफूदीनाशक रसायन को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर छिड़काब करने से भी इस रोग का निदान किया जा सकता है। आवश्यकता अनुसार 12-15 दिन के अन्तराल पर दो-तीन छिड़काब करना उचित होगा।