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US Presidential Election 2024 : अगर डोनाल्ड ट्रंप बने अमरीका के राष्ट्रपति तो भारत को होगा क्या फायदा, जानिए

US presidential Election 2024 : अमरीका में राष्ट्रपति चुनाव के चलते राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते भारत के साथ प्रगाढ रिश्ते रहे हैं। भारत और अमरीका एक दूसरे को दोस्त मानते आए हैं और मोदी व ट्रंप के कार्यकाल में इस दोस्ती के रिश्ते में कई बार उतार चढ़ाव भी रहे हैं। अगर डोनाल्ड ट्रंप अमरीका के राष्ट्रपति बने तो उस नजरिये से भारत को क्या फायदा हो सकता है ?

नई दिल्लीJun 01, 2024 / 04:58 pm

M I Zahir

PM Modi and Trump

PM Modi and Trump

US presidential Election 2024 : राष्ट्रपति पद के चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी ( Republican Party ) के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के राष्ट्रपति रहते भारत के साथ संबंध मधुर रहे हैं। ट्रंप और भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ( PM Narendra Modi) ने एक दूसरे के लिए गर्मजोशी का परिचय दिया है।

हाउडी मोदी (Howdy Modi ) कार्यक्रम

मोदी जब अमरीका गए थे तो हाउडी मोदी (Howdy Modi) कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 सितंबर 2019 को टेक्सास के ह्यूस्टन में एनआरजी स्टेडियम में आयोजित ‘हाउडी मोदी’ कार्यक्रम में पचास हजार से अधिक लोगों को संबोधित किया था। मोदी के साथ संयुक्त राज्य अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी शामिल हुए थे।

नमस्ते ट्रंप( Namaste Trump ) कार्यक्रम

ट्रंप जब भारत आए थे तो अहमदाबाद में भव्य नमस्ते ट्रंप( Namaste Trump ) कार्यक्रम आयोजित किया गया। ट्रंप के इस कार्यकाल में भारत और अमरीका के बीच रिश्तों की नई इबारत लिखी गई थी। इस कार्यकाल में मीठे रिश्तों के अलावा कुछ खटास भी रही।

ट्रंप की भारत में सुरक्षा के लिए 36 करोड़ ख़र्च किए

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान एक बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमरीका गए और एक बार डोनाल्ड ट्रंप का उन्होंने भारत में स्वागत किया व ट्रंप की भारत में सुरक्षा के लिए 36 करोड़ ख़र्च किए गए और 10 हज़ार पुलिसकर्मी तैनात किए गए थे। इन दो बड़ी भव्य और चर्चित मुलाक़ातों के अलावा भी मोदी और ट्रंप की कई अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मुलाक़ातें हुईं।

भारत अमरीका का व्यापारिक पार्टनर

भारत अमरीका का आठवां सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर देश है और डोनाल्ड ट्रंप के पहले भारत दौरे से कुछ दिन पहले ही ट्रंप ने यह स्पष्ट कर दिया कि भारत के साथ फिलहाल वो कोई बड़ी डील नहीं करने वाले. उन्होंने कहा था, ”भारत ने हमारे साथ कभी अच्छा व्यवहार नहीं किया, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी मुझे काफ़ी पसंद हैं और हम भारत के साथ ट्रेड डील कर सकते हैं लेकिन बड़ी डील हम आगे के लिए बचा रहे हैं।’

नमस्ते ट्रंप: डोनाल्ड ट्रंप भारत में

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप करीब ने अहमदाबाद में दुनिया के सबसे बड़े क्रिकेट मोटेरा स्टेडियम में एक लाख लोगों को संबोधित किया था और इस कार्यक्रम का नाम नमस्ते ट्रंप रखा गया था। डोनाल्ड ट्रंप भारत दौरे के दौरान पीएम मोदी से गर्मजोशी से मिले और वे पहले अहमदाबाद,उसके बाद उत्तर प्रदेश के आगरा शहर पहुंचे और ताजमहल देखा और शाम को दिल्ली पहुंचे। राष्ट्रपति ट्रंप के भारत दौरे के दौरान उनके साथ उनकी पत्नी मेलानिया ट्रंप, उनकी बेटी इवांका ट्रंप और दामाद जेराड कुशनर भी थे।

ट्रंप ने 22 किमी का सफ़र कार से तय किया था

ट्रंप के अहमदाबाद दौरे के दौरान शहर की सड़कों पर ट्रंप के स्वागत के लिए हजारों की संख्या में लोग मौजूद रहे। ट्रंप अहमदाबाद के सरदार वल्लभभाई पटेल स्टेडियम से निकल कर पहले साबरमती आश्रम गए थे और उसके बाद मोटेरा स्टेडियम गए और 22 किलोमीटर का यह सफ़र ट्रंप ने अपनी कार से तय किया था।

अमरीका ने चीनी उत्पादों पर बढ़ाया आयात कर

जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में अमरीकी, कनाडाई और लातिन अमरीकी स्टडी सेंटर में प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा के मुताबिक़ ट्रंप के कार्यकाल को भारत में तीन स्तर पर देखने की ज़रूरत है :
1 “सुरक्षा और रक्षा के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच संबंध बहुत अच्छे रहे। राजनयिक मुद्दों पर ट्रंप और मोदी सरकार के बीच बेहतर तालमेल देखने को मिला, लेकिन व्यापार और अर्थव्यवस्था के लिहाज से देखें, तो निराशा हाथ लगती है। मोदी और ट्रंप के बीच जिस तरह की पर्सनल कैमिस्ट्री देखने को मिली, बावजूद इसके दोनों देश चाह कर भी व्यापारिक रिश्तों को बेहतर नहीं कर पाए।”

ट्रंप का कार्यकाल भारत के लिए कैसा रहा?

इस सवाल के जवाब में आब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्टडीज़ विभाग के डायरेक्टर हर्ष पंत कहते हैं कि चूँकि भारत के संदर्भ में सबसे ज़्यादा चर्चा पाकिस्तान और चीन की होती है, तो इस संदर्भ में इन दोनों देशों के प्रति अमीहका का रुख़ भारत के रुख़ से मिलता जुलता रहा है।

ट्रंप कार्यकाल में पाकिस्तान के साथ रिश्ते

1 जनवरी 2018 की बात है. डोनाल्ड ट्रंप को अमरीका का राष्ट्रपति बने एक साल ही बीता था. नए साल के पहले दिन ही उन्होंने पाकिस्तान के लिए ट्वीट किया, जिसमें पाकिस्तान पर आंतकवाद को शह देने का आरोप लगाया था।
2 हर्ष पंत कहते हैं कि इस ट्वीट में भारत का ज़िक्र नहीं था? लेकिन भारत के लिए महत्वपूर्ण ज़रूर था। भारत दुनिया को पाकिस्तान के बारे में जो बात हमेशा से बताना चाहता था, वो बात दुनिया के सबसे ताक़तवर देश के राष्ट्रपति ने अपने ट्वीट में कही थी, ये अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत के लिए बहुत अहम बात थी।
ट्रंप ने ट्वीट के ज़रिये बताया कि पिछले डेढ़ दशक में कैसे अमरीका ने पाकिस्तान की 33 बिलियन डॉलर की राशि की मदद की और बदले में अमरीका के साथ पाकिस्तान ने कितना बड़ा धोखा किया। इसके बाद से अमरीका की तरफ़ से पाकिस्तान को मिलने वाली मदद में लगातार कटौती होती रही।
आँकड़ों के मुताबिक़ 2014 में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के समय जहाँ पाकिस्तान को 2.1 बिलियन डॉलर की मदद की गई थी, वहीं 2017 में डोनाल्ड ट्रंप के आने के बाद ये मदद घट कर 526 मिलियन डॉलर रह गई थी।

भारत को परोक्ष तौर पर फ़ायदा हुआ

प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं, “अमरीका के इस क़दम से भारत को परोक्ष तौर पर फ़ायदा हुआ तो भारत और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते में कड़वाहट की बड़ी वजह हमेशा से सीमा पार आतंकवाद को बताया जाता रहा है। अमरीका की तरफ़ से आर्थिक मदद का इस्तेमाल आतंकवाद को बढ़ावा देने में किया जा रहा था। अमरीका की कटौती की वजह से पाकिस्तान को काफ़ी दिक़्क़त का सामना करना पड़ा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसकी आलोचना भी हुई। इस वजह से अमरीका और पाकिस्तान के रिश्ते में थोड़ी तल्खी भी आई।

चीन के ख़िलाफ़ तनाव में भारत का साथ

अब बात भारत के दूसरे पड़ोसी देश चीन की बात करें तो साल 2020 में भारत के 20 सैनिकों की मौत, चीन और भारत की सीमा पर हुई। चीन ने इसके लिए भारत को ही ज़िम्मेदार ठहराया और भारत ने चीन को जिम्मेदार बताया। इस मुद्दे पर अमरीका का पहला बयान 19 जून 2020 को आया था, जो इतना सधा हुआ था कि ना तो चीन को निराशा हुई और न ही भारत को ख़ुशी हुई थी। तब अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बयान से भी वो आक्रमकता ग़ायब दिखी, जिसकी भारतीयों को उम्मीद थी। उन्होंने बस इतना कहा कि ये बहुत मुश्किल परिस्थति है, हम भारत से बात कर रहे हैं, हम चीन से भी बात कर रहे हैं, वहाँ उन दोनों के बीच बड़ी समस्या है, दोनों एक दूसरे के सामने आ गए हैं और हम देखेंगे कि आगे क्या होगा, हम उनकी मदद करने की कोशिश कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि ऐसी पेशकश पाकिस्तान के साथ तनाव पर भी ट्रंप ने पहले की थी, जिसे भारत ने सिरे से ख़ारिज़ कर दिया था।

ट्रंप ने चीन के ख़िलाफ़ खुल कर भारत का साथ नहीं दिया

प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं, “लद्दाख सीमा पर चीन से तनाव का मुक़ाबला करने में वैसे तो भारत ख़ुद में सक्षम था, लेकिन जिस तरह का सपोर्ट अमेरिका से मिला, वो डिप्लोमेटिक नज़रिये से भारत के लिए बेहतर साबित हुआ, लेकिन यह बात भी सच है कि ट्रंप ने चीन के ख़िलाफ़ खुल कर भारत का साथ नहीं दिया।” वैसे अमरीका चीन को अपना प्रतिद्वंदी मानता है और समय-समय पर दूसरे तरीक़ों से इसका अहसास चीन को कराता रहता है। चीन के प्रति ट्रंप प्रशासन के कड़े रवैए से भारत को परोक्ष रूप से फ़ायदा ही पहुँचा।

भारत को फ़ायदा मिला

हर्ष पंत कहते हैं कि अमरीका और चीन के बीच ट्रेड वॉर की बात हो या फिर टेक्नोलॉजी वॉर में 5जी की चीनी कंपनी को अलग-थलग करने की बात हो, अमरीका ने ऐसे क़दम उठाए, जिससे चीन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कटता चला गया, सीधे तौर पर ना सही, लेकिन अमरीका के इस क़दम का कुछ फ़ायदा भारत को भी मिला है। चीन के ख़िलाफ़ दूसरे पश्चिमी देशों का नज़रिया बदलने में ट्रंप के इन क़दमों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।” कोरोना महामारी को लेकर ट्रंप ने चीन पर जैसा निशाना साधा, वो भी अमरीका और चीन के रिश्तों में कड़वाहट की एक वजह है। हर्ष पंत मानते हैं कि चीन के ख़िलाफ़ ट्रंप के रवैये ने भारत को इस बात के लिए आश्वस्त कर दिया था कि अमरीका चीन के साथ पहले के मुकाबले ज़्यादा सख़्ती से पेश आएगा।

ट्रंप कार्यकाल में भारत के साथ व्यापारिक रिश्ते


भारत अमारका का आठवाँ सबसे बड़ा व्यापारिक पार्टनर देश है. लेकिन व्यापार के क्षेत्र में ट्रंप प्रशासन का भारत के साथ रिश्ता बहुत अच्छा नहीं माना जा सकता। ऐसा प्रोफ़ेसर चिंतामणि महापात्रा कहते हैं। अमरीका ने पाँच जून 2019 को व्यापार में सामान्य तरजीही व्यवस्था ( GSP ) जैसी चीज़ों पर भारत को शुल्क मुक्त आयात की सुविधा देनी बंद कर दी और इससे अमरीका में 5.6 अरब डॉलर का भारतीय निर्यात प्रभावित हुआ, जिसमें रत्न, आभूषण, चावल व चमड़ा आदि शामिल हैं। जीएसपी का मतलब है जेनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रेफ्रेंस लिस्ट,​यदि आसान शब्दों में समझें तो जीएसपी अमरीका की व्यापारिक वरीयता लिस्ट है। सन 2019 के इस फ़ैसले के बाद भारतीय निर्यातकों के उत्पादों पर अमरीका में 10 फ़ीसदी ज़्यादा शुल्क लग रहा है।

भारत अमरीका आर्थिक मोर्चे पर अलग-अलग

बीते साल फरवरी में डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे पर देशों के बीच एक ट्रेड डील पर दस्तख़त की बात भी चल रही थी, लेकिन वो समझौता नहीं हो सका। जानकार ट्रंप शासन के दौरान इस समझौते के ना होने को दोनों देशों के लिहाज़ से सही नहीं मानते। यही वजह है कि आर्थिक मोर्चे पर भारत अमरीका ट्रंप के कार्यकाल में ज़रूर अलग-अलग दिखते हैं।

H1B वीज़ा पर ट्रंप सरकार का फैसला

डोनाल्ड ट्रंप ने पद से जाते-जाते H1B वीज़ा की व्यवस्था में भी काफ़ी बदलाव किए। ट्रंप के इस फ़ैसले से सबसे ज़्यादा भारतीय प्रभावित हुए। यूएस सिटीज़नशिप एंड इमिग्रेशन सर्विसेज के डेटा के मुताबिक़ पाँच अक्तूबर 2018 तक 3,09,986 भारतीयों ने इस वीज़ा के लिए आवेदन दिए थे। यह संख्या दुनिया के किसी भी देश से ज़्यादा है। दूसरे नंबर पर चीन आता है, जहाँ के 47,172 लोगों ने इस वीज़ा के लिए आवेदन दिया था।

भारत के हित में नहीं

इस फैसले को कई जानकारों ने भारत के ख़िलाफ़ फैसला कहने के बजाय, ‘प्रो-अमरीकी’ फैसला करार दिया और नंवबर 2020 में हुए राष्ट्रपति चुनाव से जोड़ कर देखने की बात की. लेकिन वजह जो भी रही हो, इस फैसले को भारत के हित में नहीं माना जा सकता। इसके अलावा चाहे अमरीका ने ईरान पर जैसे भी प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत को चाबहार समझौते में शामिल रहने से नहीं रोका। कुछ जानकार मानते हैं कि ईरान पर प्रतिबंध की वजह से भारत का तेल ख़र्च ज़्यादा बढ़ गया है।

भारत के लिए नियम अलग रहे

डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में रूस से एस-400 की ख़रीद पर भी दूसरे देशों के लिए अमरीका के अलग नियम थे, लेकिन भारत के लिए नियम अलग रहे। हाल ही में भारत-अमरीका के बीच हुआ बेका समझौता और अमरीका, जापान, भारत और आस्ट्रेलिया के बीच क्वॉड समूह की दोबारा से शुरूआत भी ट्रंप कार्यकाल में भारत में किए गए कुछ ऐसे समझौते हैं, जो दोनों देशों के रिश्तें को नई पहचान देते हैं। गौरतलब है कि डोनाल्ड ट्रंप को बीते शनिवार को हश मनी केस (Trump Hush Money Case) के सभी 34 मामलों में दोषी घोषित किया गया है और अब उन्हें 11 जुलाई को सजा सुनाई जाएगी।

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