रानिल विक्रमसिंघे पूर्व में दो बार राष्ट्रपति बनते बनते रह गए थे, लेकिन जब गोटबाया राजपक्षे देश छोड़कर भाग गए और उनका परिवार भी देश में विरोध झेलने लगा तो सत्तारूढ़ SLPP ने उनकी उम्मीदवारी का जोरदार समर्थन किया। इस तरह से वो मैदान में खड़े हुए और जीत भी गए, लेकिन इस जीत के साथ ही ‘गो गोटा गो’ के नारे ‘रानिल गो होम’ के नारे में तब्दील हो गए।
प्रदर्शनकारियों ने विक्रमसिंघे को अपना राष्ट्रपति स्वीकार करने से ही इनकार कर दिया है। इसके पीछे का कारण ये है कि देश की जनता उन्हें गोटबाया राजपक्षे का करीबी मानती है। वर्तमान में राजपक्षे परिवार को ही देश के हालात के लिए जिम्मेदार मानने वाली जनता आखिर उसी परिवार के सदस्य के करीबी को कैसे अपनाए? गुस्सा जाहिर है और सड़कों पर ये गुस्सा प्रदर्शनकारियों में देखने को भी मिल रहा है।
कासुमी रानासिंघे नाम की एक ऐक्टिविस्ट ने गुस्सा जाहिर करते हुए कहा, ‘विक्रमसिंघे को अवसर मिला और वो राष्ट्रपति बन गए उनकी इच्छा पूरी हुई लेकिन श्रीलंका की जनता की इच्छाओं का क्या? हम लड़ेंगे उस हक के लिए जो हमारा अधिकार है।’ ऐसे में प्रदर्शनकारियों का कहना है कि वो चुप नहीं बैठने वाले, बल्कि आवाज को और तेज करेंगे।
भारत ने श्रीलंका के राष्ट्रपति चुनाव को प्रभावित करने के दावों से किया इनकार, कहा- ये कोरी कल्पना है
प्रदर्शनकारियों को शांत करने की चुनौतीऐसे में रानिल विक्रमसिंघे को अपना कद बढ़ाने पर जोर देना होगा। उन्हें राजपक्षे का करीबी से अधिक श्रीलंका के राष्ट्रपति के रूप में खुद को स्थापित करने की आवश्यकता होगी। विक्रमसिंघे के सामने कई चुनौतियां हैं। श्रीलंका के हालात को सुधारने और राजपक्षे परिवार को भागने पर विवश होना पड़ा, इस घटनाक्रम को न दोहराने के लिए उन्हें कई अहम फैसले लेने होंगे।
रानिल विक्रमसिंघे बने श्रीलंका के नए राष्ट्रपति, जानें कौन हैं ये जिनके सामने है बड़ी चुनौती
विक्रमसिंघे को राजपक्षे परिवार से ऊपर उठना होगापोलिटिकल एक्स्पर्ट्स का कहना है कि भले ही विक्रमसिंघे को राजपक्षे के समर्थकों के कारण राष्ट्रपति पद मिला हो, लेकिन उन्हें इससे ऊपर उठना होगा। इसके लिए पोलिटिकल रिफॉर्म की आवश्यकता है और राष्ट्रपति से जुड़े अधिकारों में भी बड़े बदलाव की आवश्यकता है। इसके साथ ही आर्थिक पुनरुद्धार के लिए भी विक्रमसिंघे को बड़े फैसले लेने होंगे। उनके खिलाफ विरोध इसलिए भी है क्योंकि जनता ने उन्हें नहीं चुना। जब हालात में सुधार हो तब उन्हें फिर से नए सिरे से चुनाव करवाने की आवश्यकता होगी क्योंकि जनता के जनादेश से चुना गया नेता ही अब जनता के गुस्से को शांत कर कर सकता है।
बेलआउट पैकेज पर नजर
रानिल विक्रमसिंघे के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये IMF से बेलआउट पैकेज किसी तरह हासिल किया जा सके। विक्रमसिंघे ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि वो IMF से बातचीत कर जल्द ही पैकेज के लिए प्रोसीजर को आगे बढ़ाएंगे। हालांकि, अब तक इसपर कोई बड़ा अपडेट सामने नहीं आया है।
ये बेलआउट पैकेज ही श्रीलंका की आर्थिक स्थिति को कम से कम डेंजर जोन से बाहर निकाल सकेगा। उम्मीद की जा रही है कि एक राजनीतिक नेता के रूप में चार दशकों से अधिक का उनका अनुभव विदेशी सहायता को सुनिश्चित करने में मददगार साबित होगा। अब ऐसा संभव हो पाता है या नहीं ये आने वाले समय में ही पता चल सकेगा।