बचपन से ही लेखन व साहित्य में रुचि
सुनीता श्रीवास्तव बताती हैं, मध्यप्रदेश के छोटे से गांव ‘राजगढ़’ (ब्यावरा) में माता प्रेमलता बाई श्रीवास्तव और पिता दुर्गाप्रसाद श्रीवास्तव के यहां जन्म हुआ। सुनीता बचपन से ही लेखन व साहित्य में रुचि रखती थीं। यदि हम सुनीता के लेखन पूंजी पर गौर करे तो वह बताती हैं कि उनके संस्मरण “मेरा पहला उद्बोधन” है, उसमें उनकी साहित्यिक रुचि पर प्रकाश डाला गया हैं।ऐसे बदली उनकी जिंदगी
उन्होेंने बताया, जब वह कक्षा आठ में थी तब उनके विद्यालय में शिक्षा विभाग ने निरीक्षण किया था, तब उन्हें उद्बोधन के लिए कार्यभार संभालना था। उन्होंने स्टेज से अपनी बड़ी बहन का उल्लेख करते हुए अपनी बहन (हिंदी एम. ए. छात्र) की ओर से याद करवाए गए साहित्यिक सिद्धांतों का जिक्र किया। इस घटना ने मानो सुनीता की पूरी जिंदगी ही बदल डाली… दरअसल सुनीता के उदबोधन को सुन शिक्षा निरीक्षक काफी प्रभावित हुए जिसके लिए उन्हें पुरस्कार भी मिला। इस घटना ने सुनीता को साहित्यिक जिज्ञासा की मधुर चाशनी में डुबो दिया, जिससे वह साहित्यिक संसार में रुचि लेने लगीं। इसी जिज्ञासा की प्यास को मिटाने के लिए वह अपनी बड़ी बहनों की पुस्तके पढ़ने लगीं, लेकिन सुनीता के माता-पिता इस क्षेत्र से पूर्ण रूप से अलग विज्ञान की दुनिया में उसका भविष्य देखना चाहते थे।“भारत- नेपाल” का पुस्तक का संपादन
सुनीता श्रीवास्तव ने बताया कि उन्होंने नेपाल व दुबई (UAE) में प्रवास किया और कई विदेश यात्राएं कीं। उन्होंने नेपाल प्रवास के दौरान वहां भ्रमण तो किया ही, साथ ही साहित्य में विशिष्ट योगदान दिया। इसके अलावा नेपाल में 2 अंतरराष्ट्रीय साहित्य संगोिष्ठयों का आयोजन कर पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर “भारत- नेपाल” का पुस्तक का संपादन किया। इस पुस्तक का हाल ही में शांत हुई पद्मश्री मालती जोशी जी ने हाल ही में भारत में विमोचन किया। ध्यान रहे कि सुनीता नेपाल में उनके अनुभवों इस पुस्तक में लिख चुकी हैं।“दुबई प्रवास” रच डाला
उन्हें नेपाल में इस विशिष्ट योगदान के लिए नेपाल की प्रसिद्ध प्रज्ञान संस्था और नेपाल की “राष्ट्रीय साहित्य व कला विश्वविद्यालय नेपाल” से उन्हें सम्मानित भी किया गया। नेपाल संगोष्ठी के दौरान वे भारत से कुल 20-25 और नेपाल से लगभग 500 साहित्यकारों और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों को एकत्रित कर उन्होंने वहां भव्य पुस्तक विमोचन, सम्मान समारोह व रचना पाठ का आयोजन किया। इसी प्रवास के कुछ वर्षों बाद वे दुबई पहु्चींं और अपने भारत वापसी पर लेखिका ने “दुबई प्रवास” रच डाला जिसमें उन्हें अपने कई अनुभवों के बारे में बताया।संस्मरण उनके लिए बहुत खास
वे मानती हैं कि हिंदी साहित्य की विधा संस्मरण उनके लिए बहुत खास है। संस्मरण एक ऐसी विधा है, जिसमे हमारी बीती स्मृतियां और सुनहरे लम्हे पुनः ताज़ा हो जाते हैं और जब हम उन्हें कलम से पन्नों पर लिखने बैठते हैं, तब हमें अपनी गलतियों और अच्छाइयों का एहसास होता है, जिससे हमें कुछ नया करने की प्रेरणा मिलती है।उनका परिचय उनके संस्मरणों में बसता है
सुनीता श्रीवास्तव कहती हैं कि उनका परिचय उनके संस्मरणों में बसता है, क्यों कि हमारी जिंदगी में कई उताव-चढ़ाव होते हैं जिन्हें हम लिख कर आगे की सोच सकते हैं और अपनी जिंदगी के परिचय के लिए यही काफी होता हैं। वे कई साहित्यिक विधाओं में लिख चुकी हैं जिनमें कहानी, लघुकथा, कविता, आलेख व सुविचार शामिल हैं।एक भी संस्मरण संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ
वे बताती हैं ,उनका एक भी संस्मरण संग्रह प्रकाशित नहीं हुआ है, लेकिन कई पत्रिकाओं, प्रतियोगिताओं, समाचार पत्रों में आदि… में प्रकाशित हो चुका हैं। सुनीता ने कहानी विधा पर अच्छा रचना संसार कर डाला है, उनकी कहानी “बूढ़ा बचपन” सृजन ऑस्ट्रेलिया पुरस्कार 2013 से पुरस्कृत है। उन्हें कई लघुकथा प्रतियोगिताओं में प्रशंसनीय स्थान मिला है। उनके आलेख व कविताएं सक्रिय रूप से प्रकाशित होते रहते हैं।साहित्य की ओर ही बढ़ती चली गईं
सुनीता श्रीवास्तव कहती हैं, उनके पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे। वे बचपन से ही पढ़ने लिखने में माहिर थीं। इस कारण उन्होंने खुशी-खुशी BSc तथा MSc की डिग्री हासिल कर आयुर्वेद में कोर्स किया, प्रारंभिक रूप से वे आर्थिक रूप से अस्थाई होने के बावजूद अच्छे संस्कारों व नैतिक मूल्यों को प्राथमिकता देती थीं, लेकिन माता-पिता के जाने के बाद वे अपने जुनून की चाह साकार करने में साहित्य की ओर ही बढ़ती चली गईं और सफलता के कई मुकाम हासिल किए। अपनी बीएससी और एमएससी की डिग्री और साहित्य में रुचि के सदुपयोग करने के लिए उन्होंने बी एड कर कुल 8 वर्षों तक विद्यालयों में हिंदी साहित्य, कैमिस्ट्री व बायोलॉजी पढ़ाई।पति के सहयोग से आगे चला सफर
जब सुनीता की शादी हुई, उनके पति का काफी सहयोग रहा। अपने परिवार और बच्चों को संभालने के साथ उन्होंने अपना व्यवसाय नहीं त्यागा, और ऐसे ही वह आगे बढ़ती रहीं । कई पुस्तकों के लेखन से उनकी साहित्यिक पूंजी बढ़ती ही जा रहीं थी। साथ ही इसी वक्त सुनीता ने साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ना शुरू किया। वहीं अपनी संस्था “शुभ संकल्प समूह” की स्थापना की, आज शुभ संकल्प का समूह मध्य भारत की सर्वोत्तम साहित्यिक- सामाजिक संथाओं मेंशुमार होता है।