परंपराएं
एक तथ्य यह है कि पाकिस्तान के लगभग सभी लोग मुसलमान या कम से कम इस्लामी परंपराओं का पालन करते हैं, और इस्लामी आदर्श और प्रथाएं पाकिस्तानी जीवन के लगभग सभी हिस्सों में व्याप्त हैं। अधिकांश पाकिस्तानी मुस्लिम हैं सुन्नी संप्रदाय, इस्लाम की प्रमुख शाखा। यहाँ भी महत्वपूर्ण संख्या में सुन्नी हैं। शिया मुसलमान। उदार और कट्टर
बांग्लादेश के
मुसलमान विचारधारा के स्तर पर कट्टर नहीं हैं। पाकिस्तान के मुसलमानों की कट्टर छवि है।
कार्यकारी सारांश संविधान इस्लाम को राज्य धर्म घोषित करता है, लेकिन धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत कायम रखता है। यह धार्मिक भेदभाव रोकता है और सभी धर्मों के लिए समानता प्रदान करता है। धर्मनिरपेक्ष न्यायालयों में लागू पारिवारिक कानून में विभिन्न धार्मिक समूहों के लिए अलग-अलग प्रावधान हैं।
कहां अधिक हैं ?
अब सवाल यह है कि भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में कहां ज्यादा मुस्लिम है? स्टेटिस्टा की रिपोर्ट के हिसाब से पाकिस्तान में साल 2022 तक 225.62 मिलियन मुस्लिम थे, यानी 22.5 करोड़ मुसलमान। पाकिस्तान की कुल आबादी में मुस्लिम आबादी का हिस्सा 96.34 फीसदी है। वहीं, अगर बांग्लादेश की बात करें तो यहां 155.38 मिलियन मुस्लिम हैं यानी 15.53 करोड़ मुसलमान।
कितने अलग
भले पड़ोसी देश बांग्लादेश आरक्षण की आग में जल रहा हो लेकिन, पड़ोसी देश के इस आंदोलन से भारत या फिर बिहार अछूता नहीं है। हालांकि चाहे बांग्लादेश से बिहार का रोटी-बेटी का संबंध नहीं रहा हो, लेकिन, बांग्लादेश से रिश्ता इतना गहरा है कि उसे नकारा नहीं जा सकता । यह संबंध बहुत पुराना नहीं है।
बांग्लादेश में बिहारी मुसलमान
जानकारी के अनुसार बांग्लादेश में 7.5 लाख बिहारी मुसलमान हैं। यदि वक्त के तराजू पर इस संबंध को तोला जाए तो महज पांच दशक पहले जो बिहारी मुसलमान बांग्लादेश गए थे, उनकी स्थिति आज बेहतर नहीं कही जा सकती। समूचे बांग्लादेश में लगभग 7.5 लाख बिहारी मुसलमान रहते हैं। बिहारी मुसलमान कहने का मतलब यह है कि वह मुसलमान जो उर्दू भाषी हैं, जिनकी भाषा उर्दू है, ना कि बांग्ला है।
नया नाम ‘बांग्लादेश
जब ‘बांग्लादेश’ अस्तित्व में आया : अब थोड़ा आपको पीछे लिए चलते हैं। दरअसल, जब भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो उस समय पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान बनाया गया। यह पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान एक दूसरे से बिल्कुल अलग थे। बीच में भारत था। उसे बाद सन 1971 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समय पाकिस्तान के साथ युद्ध में भारत ने विजय हासिल की थी तो उस समय पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान को अलग कर दिया गया। पूर्वी पाकिस्तान को नया नाम दिया गया ‘बांग्लादेश।’ क्यों गए बिहारी ?
बांग्लादेश को भाषा के आधार पर बांटा गया था। बांग्लादेश में बंगाली मुसलमान की तादाद अच्छी खासी है। एक रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश दुनिया का आठवां सबसे बड़ा जनसंख्या वाला देश है। ऐसे में भारत-पाकिस्तान की बंटवारे में जो मुसलमान पाकिस्तान जाना चाह रहे थे, उनमें बिहारी मुसलमानों ने पश्चिमी पाकिस्तान के बजाय पूर्वी पाकिस्तान में शरण ली। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान बिहार से काफी नजदीक था। कोलकाता से ढाका महज 300 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे में बिहार व उत्तर प्रदेश सहित आसपास के राज्यों से जो मुसलमान पाकिस्तान में बसाना चाह रहे थे वे वहां चले गए।
कैम्प में रहते हैं बिहारी मुसलमान
जब बांग्लादेश भाषा के आधार पर बना तो इन मुसलमानों की स्थिति खराब होती गई। क्योंकि उर्दू भाषी मुसलमान मजहब, तहजीब और भाषा को लेकर बहुत सजग रहते हैं। ऐसे में इन्होंने बांग्लादेश के मुसलमान के साथ घुलना-मिलना बहुत पसंद नहीं किया। दुश्मनी यहीं से शुरू हो गई,जब स्थिति बिगड़ने लगी तो उर्दू भाषी मुसलमानों के लिए बांग्लादेश में ना तो रहने का ठिकाना बना और ना ही रोजगार की व्यवस्था थी।
‘अटका बाड़ो पाकिस्तानी’
अब हालत ऐसी हो गई कि बिहारी मुसलमान को 1971 से अपना गुजारा कैम्प में करना पड़ रहा है। बांग्लादेश के मुसलमान उर्दू भाषी मुसलमान को ‘अटका बाड़ो पाकिस्तानी’ कह कर संबोधित करते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि ना तो वह पाकिस्तान के रहने वाले हैं और ना ही बांग्लादेश के रहने वाले हैं, ये अटके हुए पाकिस्तानी हैं, जिनका कोई ठिकाना नहीं है। जमीन लेने का भी हक नहीं
पाकिस्तानियों और बांग्लादेशियों में अंतर यह है कि दोनों के मुसलमान अलग हैं। मसलन बंटवारे के बाद मुंगेर से गए रियाजुद्दीन का जन्म बांग्लादेश में ही हुआ था। उनके वालिद बांग्लादेश गए। उसके बाद उनका जन्म हुआ। उम्र के 65 बसंत देख चुके रियाजुद्दीन को बांग्लादेश का पहचान पत्र 2015 में बन कर मिला। रियाजुद्दीन बताते हैं कि उनके वालिद बंटवारे के समय बिहार के मुंगेर से पूर्वी
पाकिस्तान में आए थे, जहां उनका जन्म हुआ।
भाषा को लेकर भेदभाव
‘सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन, 1971 के बाद स्थिति खराब होती गई. अब ना तो हम पाकिस्तान जा सकते हैं और ना ही बांग्लादेश ने हमें पूरी तरह से अपनाया है, हमारे साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। भले यहां सभी मुसलमान हैं लेकिन हम लोगों को अटका पड़ा पाकिस्तानी कहा जाता है। पिछले 65 बरसों से किराये के मकान में रहते हैं। वो छोटी सी दुकान चला रहे हैं, उनके चार बच्चे हैं, लेकिन, सरकार की तरफ से बहुत सुविधा नहीं मिलती। यहां शिक्षा में उर्दू नहीं पढ़ाई जाती है। यहां भाषा को लेकर भेदभाव होता है।”- रियाजुद्दीन, बिहारी मुस्लिम।
‘उर्दू नहीं पढ़ाई जाती’
बांग्लादेश में रहने वाले मोहम्मद जाबादुल्लाह मुशर्फी बताते हैं कि वे पटना के रहने वाले हैं, अभी जो भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार चल रही है, वह बेहतर है, पड़ोसी देश है अच्छा लगता है, वहां सब कुछ बेहतर हो रहा है। यहां नौकरी को लेकर बहुत परेशानी है। सरकारी नौकरी (गवर्नमेंट जॉब) नहीं मिलती है। बिहार मुसलमान को नौकरी नहीं दी जाती है, यहां बांग्ला, इंग्लिश,अरबी पढ़ाई जाती है और उर्दू नहीं पढ़ाई जाती।
शरणार्थी शिविर
‘बांग्लादेश में ज्यादातर लोग शरणार्थी शिविरमें रहते हैं, उन्हें स्थाई तौर पर बना दिया गया है, महज 10 फीट के कमरे में छह लोगों का परिवार साथ-साथ रहता है। इन्हें अपना प्रॉपर्टी लेने का अधिकार नहीं है। दरअसल, इनका अपना पहचान पत्र ही नहीं मिला है, तो ऐसे में यह लोग शरणार्थी की तरह जीवन व्यतीत कर रहे हैं.”- मोहम्मद जाबादुल्लाह मुशर्फी, बिहारी मुस्लिम।
मताधिकार
विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा नहीं है कि बिहार मुसलमान या फिर उर्दू भाषा मुसलमान के अधिकार के लिए बांग्लादेश में आंदोलन नहीं हो रहे हैं। इसे लेकर उर्दू स्पीकिंग पीपल्स यूथ रिहैबिलिटेशन मूवमेंट चलाया जा रहा है। इसी संस्थान ने बांग्लादेश के हाईकोर्ट में एक रिट याचिका दायर कर के अधिकार की मांग की थी। उसके बाद 2008 में बांग्लादेश हाई कोर्ट ने सबसे बड़ा फैसला सुनाते हुए बिहारी मुसलमान को बांग्लादेश की नागरिकता और वोटिंग देने का राइट दिया। इसके बावजूद भी वहां की स्थिति नहीं बदली ।
बिहार के कई जिलों के मुस्लिम
बांग्लादेश के मीरपुर जैसे इलाकों में 39 ऐसे कैम्प है, जहां बिहारी मुसलमान रहते हैं। ये सभी बिहार के बेगूसराय, मुंगेर, पटना, गया, छपरा, दरभंगा व भागलपुर सहित कई इलाकों से जाकर पाकिस्तान में बसे थे। हालांकि, बाद में जब बांग्लादेश बना तो उनकी स्थिति बद से बदतर होती गई।
‘शेख हसीना का सॉफ्ट कार्नर दिखा’
किशनगंज के वरिष्ठ पत्रकार शक्तिप्रसाद ज्वारदार कहते हैं कि जो स्थिति वहां उत्पन्न हुई है वह तत्काल कारणों से नहीं हुई है। इसका बीजारोपण पहले से होता गया है, उसके बाद यह आग बना है। वे बताते हैं कि जिस तरह से शेख हसीना की सरकार उदार होती जा रही थी और लगातार हिंदुओं के प्रति और उर्दू स्पीकिंग मुसलमान के प्रति उनका सॉफ्टनेस बढ़ता जा रहा था, जो कट्टरपंथी मुसलमान थे, उन्हें यह रास नहीं आ रहा था। ऐसे में भले बहाना आरक्षण का हो लेकिन, अंदर ही अंदर आग सुलग रही थी और स्थिति यह हो गई कि शेख हसीना को बांग्लादेश छोड़ना पड़ा, इस्तीफा देना पड़ा। बहरहाल पाकिस्तानी मुसलमान की छवि कटटर है तो बांग्लादेशी मुसलमान की छवि उदार है।