इस युद्ध में श्रीकृष्ण पापियों का नाश करना चाहते थे, लेकिन उन्हें एक बात की चिंता निरंतर सता रही थी। महाभारत की लड़ाई अपनों में थी। इसमें भाई के हाथों भाई की हत्या होनी थी, गुरु और शिष्य भी एक-दूसरे के सामने होते। सभी परिजन युद्ध भूमि में आपस में लड़ाई करते। ऐसे में इनमें दया या करूणा की भावना न आ जाए और ये संधि न कर बैठें।
श्रीकृष्ण इस डर के चलते ऐसी युद्ध भूमि का चयन करना चाहते थे जहां क्रोध और द्वेष के संस्कार बहुत अधिक मात्रा में हों। ऐसी भूमि का पता लगाने के लिए श्री कृष्ण ने कई दूत अनेकों दिशाओं में भेजें।
एक दूत ने आकर उन्हें सुनाया कि कुरूक्षेत्र में एक बड़े भाई ने अपने छोटे भाई को खेत की मेंड़ टूटने पर बहते हुए बारिश के पानी को रोकने के लिए कहा था। ऐसा करने से छोटे भाई ने साफ इंकार कर दिया। जिससे बड़ा भाई क्रोधित हो गया।
गुस्से में आकर बड़े भाई ने चाकू से छोटे भाई की हत्या कर दी। मारने के बाद भाई की लाश को घसीटते हुए उस मेंड़ के पास ले गया और जहां से पानी निकल रहा था वहां उस पानी को रोकने के लिए लाश को लगा दिया।
श्रीकृष्ण ने जब यह कहानी सुनी तो उन्हें लगा कि यही भूमि भाई-भाई के युद्ध के लिए उपयुक्त है। वह निश्चित हो गए कि इस भूमि के संस्कार युद्ध में भाइयों के एक-दूसरे के प्रति प्रेम उत्पन्न नहीं होने देंगे। अंत में उन्होंने महाभारत के युद्ध के लिए कुरूक्षेत्र में इसी भूमि का चुनाव किया।