मोस्टामानू मंदिर के परिसर में पहुंचते ही मन को असीम शांति मिलती है। चारों ओर से पर्वत शिखरों, चौड़ी-चौड़ी घाटियों से घिरे इस मंदिर से पूरे सोर के दर्शन होते हैं। बता दें कि इस मंदिर की स्थापना के पीछे एक रोचक कथा जुड़ी है। मान्यता है कि मोस्टादेवता वर्षा के देवता हैं। उन्हें इंद्र का पुत्र माना जाता है। माना जाता है कालिका मोस्टा देवता की माता हैं। मान्यता तो यह भी है कि कालिका जी भूलोक में मोस्टा देवता के साथ निवास करती हैं। इंद्र ने पृथ्वी लोक में उसे भोग प्राप्त करने हेतु मोस्टा को अपना उत्तराधिकारी बनाया। दंत कथाओं में कहा जाता है कि इस देवता के साथ चौंसठ योगिनी, बावन वीर, आठ सहस्त्र मशान रहते हैं। कहते हैं भुंटनी बयाल नामक आंधी-तूफान उसके बस में हैं वो जब चाहें उसे ला सकते हैं। शिव की तरह मोस्टा देवता अगर रूठ जाएं तो वे सर्वनाश कर देते हैं।
मान्यता है वहां जिस पत्थर को ऊंगलियों के दम पर उठा लिया जाता है, उसे बड़े से बड़े बाहुबली भी नहीं उठा पाते हैं और वो भी तब तक जब तक शिव के मंत्रों का जाप ना किया जाए। लोगों का दावा है कि बाहुबली भी उस पत्थर को हिला नहीं पाता, वहीं महादेव का नाम लेकर कोई भी उसे ऊंगलियों पर उठा सकता है। ये चमत्कार शिव के धाम में है। उस जाप में है या उस पत्थर में है। इसका पता तो वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए।