कौन हैं हरभजन सिंह
आपको बता दें कि हरभजन सिंह (Baba harbhajan singh) का जन्म 30 अगस्त, 1946 को जिला गुजरावाला में हुआ था, जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है। वे वर्ष 1966 में पंजाब रेजिमेंट की 24वीं बटालियन में भर्ती हुए थे। उन्हें देश की सेवा करते हुए सिर्फ 2 ही साल हुए थे कि एक दुर्घटना में वे शहीद हो गए। दरअसल, जब हरभजन सिंह खच्चर पर बैठकर नदी पार कर रहे थे तो वह खच्चर सहित नदी में बह गए थे और दो दिन तक उनकी लाश का पता नहीं चला था। बताया जाता है कि जब दो दिन तक उनकी लाश नहीं मिली तो उन्होंने खुद आकर अपने शव के बारे में बताया। इसके बाद उनके शव की पहचान की और उनका अंतिम संस्कार किया गया।
क्या है मान्यता
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, 1968 में हरभजन का निधन होने के बाद पिछले 52 साल से उनकी आत्मा देश की सीमा पर भारतीयों की रक्षा कर रही है। भारतीय सैनिकों का कहना है कि हरभजन की आत्मा, चीन की तरफ से होने वाले खतरे के बारे में पहले से ही उन्हें आगाह कर देती है। इतना ही खुद चीनी सैनिक भी इस बात पर खूब विश्वास करते हैं।
लगाई जाती हैं अलग से कुर्सी
रिपोर्ट्स के बताया जाता है कि जब भी भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच किसी मसले को लेकर मीटिंग होती हैं तो हरभजन सिंह के लिए एक चेयर अलग से लगाई जाती है। उनका मानना है की इस मीटिंग में हरभजन सिंह भी आते है और मीटिंग का हिस्सा होते है।
प्रसिद्ध है हरभजन बाबा का मंदिर
शहीद सैनिक हरभजन की आत्मा को लेकर जैसे-जैसे लोगों में आस्था बढ़ी उनका एक मंदिर बनवाया गया। ये मंदिर हरभजन सिंह के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है। बता दें कि यह मंदिर गंगटोक में जेलेप्ला दर्रे और नाथुला दर्रे के बीच, 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर में उनकी फोटो और कुछ सामान रखा है। लोगों का मानना है कि हरभजन आज भी सीमा पर ड्यूटी देते हैं और उनको तनख्वाह भी दी जाती है। इतना ही कुछ लोगों का कहना है कि सेना में उनके लिए एक कमरा अलग से दिया हुआ है उस कमरे की रोज सफाई होती है। वहां पर चादर में सलवटे पड़ी रहती है और जूते कीचड़ में सने हुए होते हैं।