रामायण के सुंदरकांड के सप्तम अध्याय में पुष्पक विमान के बारे विस्तृत रूप से कहा गया है। पुष्पक विमान की सजावट करने के लिए तरह-तरह के बहुमूल्य रत्नों का इस्तेमाल किया गया था। इन रत्नों से कई प्रकार के पक्षी और अलग-अलग प्रजातियों के सर्प इस पर बनाए गए थे। इसके साथ ही रत्नों से पुष्पक में कई घोड़े भी बनाए गए थे।
पुष्पक एक चमत्कारी वाहन था। यह मन की गति से चलता था। यानि कि किसी जगह के बारे में महज सोचने से वह उस स्थान पर पहुंचा देता था। इससे आप समझ सकते हैं कि यह एक दिव्य विमान था। सिर्फ इतना ही नहीं यह स्वामी की इच्छा के अनुसार छोटा या बड़ा भी हो सकता था। शायद इसी के चलते रावण की पूरी सेना इस पर सवार होकर एक स्थान से दूसरे स्थान का भ्रमण कर सकती थी।
पुष्पक विमान की गति को मन के अनुसार कम या ज्यादा किया जा सकता था। वायु के समान वेगपूर्वक आगे बढ़ने वाला पुष्पक को पाना आसान नहीं था। केवल बड़े-बड़े तपस्वियों और महान आत्माओं को ही यह प्राप्त हो सकता था। सोने से निर्मित इस विमान की बात ही कुछ और थी।
पौराणिक कथाओं के बारे में विज्ञान की खोज करने वालों का ऐसे मानना है कि पहले के जमाने में विज्ञान और भी अधिक उच्चकोटि का हुआ करता था। ऐसे में इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि इस प्रकार को कोई वाहन नहीं था। हालांकि इसकी मौजूदगी का कोई प्रमाण अभी तक नहीं मिल सका है।