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अजब गजब

इस मंदिर में होती है बिना सिर वाली मूर्तियों की पूजा, मुख्य द्वार पर लिखी है हैरान कर देने वाली चीज

मूर्तियों के सिर को औरंगजेब के सैनिकों ने धड़ से अलग कर दिया
पुजारी ने इस तरह से मुगल सेना को झांसा देने का प्रयास किया था
आखिरकार इस चीज पर पड़ी मुगलों की नजर तो कर दिया सबकुछ तहस-नहस

Mar 23, 2019 / 11:08 am

Arijita Sen

इस मंदिर में होती है बिना सिर वाली मूर्तियों की पूजा

इस मंदिर में होती है बिना सिर वाली मूर्तियों की पूजा, मुख्य द्वार पर लिखी है हैरान कर देने वाली चीज

नई दिल्ली। औरंगजेब को मुगलकाल के सबसे कट्टर शासक के तौर पर जाना जाता है। वह छठा मुगल बादशाह था जिसका शासनकाल 1658 से 1707 ई. तक चला। हम जानते हैं कि धार्मिक दृष्टिकोण से औरंगजेब काफी कट्टर था। इतिहास में उसकी छवि कुछ इस तरह से है जिसे देखकर लगता है कि उसे हिंदुओं से नफरत थी।

औरंगजेब

आज हम आपको उस मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां की मूर्तियों के सिर को औरंगजेब ने कटवा दिया था। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि तब से आज तक उन मूर्तियों को सुरक्षित रखा गया है। आज भी लोग मंदिर में बिना सिर वाली मूर्तियों की पूजा करते हैं। वैसे तो लोग टूटी हुई या खंडित मूर्तियों की पूजा नहीं करते हैं, लेकिन यहां इस मंदिर में भक्त ऐसा करते नजर आते हैं।

अष्टभुजा धाम मंदिर

यह मंदिर लखनऊ से 170 किलोमीटर की दूरी पर स्थित प्रतापगढ़ के गोंडे गांव में स्थित है। मंदिर का नाम अष्टभुजा धाम मंदिर है। मंदिर में मौजूद सिर कटी मूर्तियों को 900 सालों से संरक्षित किया जा रहा है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में मौजूद रिकॉर्ड्स के मुताबिक, वर्ष 1699 में मुगल शासक औरंगजेब ने हिंदू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया था। ऐसे में उस दौर में इस मंदिर को बचाने के लिए यहां के पुजारी ने मंदिर के मुख्य द्वार का निर्माण मस्जिद की तरह करवाया ताकि मुगल सैनिक इसे मंदिर न समझ पाए।

ऐसा हुआ भी था, जब मुगल सेना की नजर इस पर पड़ी तो वे इसे मस्जिद समझकर आगे बढ़ गए, लेकिन इस बीच एक सेनापति की नजर मंदिर में टंगे घंटियों पर पड़ी। बिना देर किए उसने बाकी सैनिकों को वहां भेजकर मंदिर में स्थापित देवी-देवताओं की मूर्तियों के सिर को धड़ से अलग कर दिया। आज भी इन मूर्तियों को देखकर लोग उस पुराने किस्से को याद करते हैं।

 बिना सिर वाली मूर्तियां

इस मंदिर के बारे में एक और भी रोचक बात है और वह यह कि मंदिर के मुख्य द्वार पर कुछ लिखा हुआ है, लेकिन इसे जिस भाषा में लिखा गया है उसे आज तक कोई नहीं जान सका है। पुरातत्वविद और इतिहासकारों ने इसे समझने की बहुत कोशिशें की, लेकिन सफलता उनके हाथ नहीं लगी।

मंदिर का मुख्य द्वार

साल 2007 में दिल्ली से पुरातत्वविदों की एक टीम यहां आई हुई थी। उन्होंने परीक्षण कर बताया कि यह मंदिर 11वीं शताब्दी का है। सिन्धु घाटी सभ्यता में भी कुछ इस तरह के मंदिर मिले हैं।

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