मप्र शासन संस्कृति विभाग मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में विदिशा जिले की गंजबासौदा तहसील के उदयपुर गांव में 0.795 हेक्टेयर में फैले प्राचीन महल के बारे में लिखा है कि मप्र प्राचीन स्मारक पुरातत्वीय स्थल तथा अवशेष अधिनियम 1964 के प्रावधानों के तहत राज्य शासन की अधिसूचना द्वारा इस प्राचीन स्मारक को राज्य संरक्षित स्मारक घोषित करने के आशय की सूचना जारी की गई थी, जिसका प्रकाशन मप्र राजपत्र में किया गया था।
शासन की इस अधिसूचना के संबंध में निर्धारित समयावधि में कोई भी आपत्ति प्राप्त नहीं हुई है। अत: राज्य शासन मप्र प्राचीन स्मारक, पुरातत्वीय स्थल और अवशेष अधिनियम 1964 की धारा 3 में प्रदत्त शक्तियों को प्रयोग में लाते हुए इस प्राचीन स्मारक को राज्य संरक्षित स्मारक के रूप में घोषित करता है।
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इतिहासकार की नजर ने पकड़ी थी साजिश
इतिहासकार डॉ सुरेश मिश्र अब नहीं हैं। लेकिन उनकी एक नजर ने महल पर कब्जे की साजिश को पकड़ लिया था। 4 जनवरी 2021 को डॉ मिश्र, राज्य सूचना आयुक्त विजय मनोहर तिवारी के साथ उदयपुर मंदिर के बाद गलियों में घूम रहे थे। तभी उनकी नजर महल पर पड़ी और इसे देखते हुए जब वे आगे बढ़े थे तो उस पर टंगे एक बोर्ड ने उनके कदम रोक दिए थे। बोर्ड पर लिखा था-उदयपुर पैलेस, निजी संपत्ति और उस पर काजियों के नाम लिखे थे। यह देखकर वे चौंके थे और सूचना आयुक्त तिवारी से कहा था-ये क्या है? किसी स्मारक या हजार साल पुराना महल किसी की निजी संपत्ति कैसे हो सकता है। इसके बाद तिवारी ने अपनी पूरे दौरे, महल पर निजी संपत्ति के बोर्ड के फोटो सहित सोशल मीडिया पर एक पोस्ट लिखी थी। बस, यही पोस्ट जानकारी में आते ही पत्रिका ने पूरी पड़ताल शुरू की, जो अब पूरी तरह मुकम्मल हुई है।
पत्रिका ने काजी के अवैध निर्माण में पहुंच कर बताया था हाल
उदयपुर के महल पर काजी के अवैध कब्जे की खबर को पत्रिका ने हर एंगल से पड़ताल करते हुए उजागर किया। उदयपुर महल के अंदर की पहली तस्वीरें और महल का पूरा वीडियो पहली बार पत्रिका ने ही सबके सामने उजागर किया था। महल का वह हिस्सा जहां काजी ने करीब डेढ़ हजार वर्गफीट में अवैध निर्माण किया था, उस छत पर पहुंचकर भी पत्रिका ने तस्वीरें और वीडियो में खुलासा किया था और बताया था कि कैसे प्राचीन स्मारक को तोड़कर उसमें गेट लगाए गए, छत बना ली, सीढ़ियां बना लीं और अवैध निर्माण बढ़ता जा रहा है। यह सब सबूत सामने आने पर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को भी काम करने का बल मिला था, और नतीजा अब सामने है।
कलेक्टर ने आपत्ति की थी खारिज
महल को संरक्षित करने के लिए अधिसूचना जारी कर आपत्तियां मांगी गई थीं। कलेक्टर उमाशंकर भार्गव के पास काजी इरफान अली ने अपनी आपत्ति लगाते हुए पत्रिका की खबरों को झूठा बताते हुए अपना कब्जा वाजिब बताया था। लेकिन तथ्यों के अभाव में कलेक्टर ने काजी की आपत्ति को खारिज कर सरकार को इस महल को अपने अधीन करने की अधिसूचना जारी करने के लिए आदेश भेज दिया था। कलेक्टर का यह फैसला भी बहुत महत्वपूर्ण था।
हर एंगल से पड़ताल, सबका मिला साथ
पत्रिका ने अपनी मुहिम की पहली खबर 6 जनवरी 2021 को प्रकाशित की थी, जिसका शीर्षक था- राजा उदयादित्य का एक हजार साल पुराना महल अब किसी की निजी संपत्ति घोषित…। इस मुहिम में पत्रिका ने इतिहासकार डॉ मिश्र, सूचना आयुक्त तिवारी, पुरातत्वविद डॉ. नारायण व्यास, पुरातत्व आयुक्त, कलेक्टर, बासौदा एसडीएम, कुरवाई विधायक हरिसिंह सप्रे सहित जिले के पुरातत्व प्रेमियों और अनेक लोगों से चर्चा कर लगातार पूरी ताकत के साथ पत्रिका में प्रकाशित किया गया। परिणाम भी सामने आते गए। काजी ने धमकियां भी दीं। लेकिन अपने क्षेत्र की विरासत को सहेजने और संरक्षित करने के पत्रिका के प्रयास नहीं रुके। जिले के लोगों ने भी पत्रिका की इस मुहिम को पूरा साथ देकर हौंसला बढ़ाया।