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मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापना की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। अंग्रेजों के शासनकाल में मुखर्जी परिवार पश्चिम बंगाल से आकर बनारस के मदनपुरा में बस गया था। परिवार ने अपने आवास पर नवरात्र के छठे दिन मां दुर्गा की एक प्रतिमा स्थापित करायी। महिषासुर का वध करती माता की प्रतिमा के साथ भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, कार्तिकेय की भी प्रतिमा थी। परिवार ने कलश स्थापना करके मां की विधि-विधान से पूजा की। तीन दिन बाद जब विसर्जन का दिन आया तो सभी लोग प्रतिमा को उठाने के लिए वहां पर पहुंचे। लोगों ने सारी ताकत लगा दी लेकिन प्रतिमा अपने जगह से जरा भी नहीं हिली। काफी प्रयास करने के बाद भी लोगों को सफलता नहीं मिली। इसके बाद लोगों ने कहा कि किसी ब्राह्मण से पूछेंगे और फिर वैसा ही करेंगे। रात में मुखर्जी परिवार के सबसे बुजुर्ग सदस्य के सपने में मां आदि शक्ति आती है और कहती है कि वह काशी में वास करना चाहती है इसलिए प्रतिमा को नहीं हटाया जाये। बुजुर्ग ने कहा कि मां आपकी सेवा कैैसे करनी होगी। इस पर माता ने कहा कि मेरी एक बार आरती करना और चना व गुड को भोग लगाना। बाकी सारी व्यवस्था हो जायेगी। इसके बाद से 252 साल हो गये हैं। मां ने जैसा बताया था वैसे ही उनकी सेवा हो रही है। मां आदि शक्ति की ही महिमा है कि मिट्टी, सुतली, बांस और पुवाल की प्रतिमा आज भी सुरक्षित है और माता की प्रतिमा का लगातार तेज बढ़ता जा रहा है।
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