पहले नदियों में दुर्गा प्रतिमाओं का विर्सजन होता था। प्रतिमा निर्माण में केमिकल रंगों का प्रयोग किया जाता था जिससे विसर्जन के बाद नदी में प्रदूषण बढ़ जाता था। जल प्रदूषण को रोकने के लिए कोर्ट ने नदियों में मूर्ति विसर्जन पर रोक लगायी हुई है ऐसे में अब तलाब, कुंड या फिर अस्थायी बनाये गये तलाब में प्रतिमा विसर्जित की जाती है। जहां का पानी भी प्रदूषित हो जाता है। प्रदूषण रोकने के अभियान को गति देने के लिए ही गीता मंदिर में इको फ्रेंडली ढंग से बनायी गयी प्रतिमा को स्थापित किया गया है। प्रतिमा के निर्माण में हवन सामग्री का उपयोग किया गया है। भोजपत्र से माता की साड़ी बनायी गयी है जबकि सांकला से मूर्ति को पूरा आकार दिया गया है। साड़ी का बार्डर काली तिल व चावल से तैयार की गयी है। कपड़े की आउटलाइन को कमलगट्टे से बनाया गया है। मूर्तिकार शीतल चौरसिया ने बताया कि मूर्ति के रंगने में किसी तरह के केमिकल रंग का प्रयोग नहीं किया गया है। माता की प्रतिमा पूरी तरह से इको फें्रडली है और जब प्रतिमा का विसर्जन किया जायेगा तो पर्यावरण को किसी तरह का नुकसान नहीं होगा। गीता मंदिर की प्रतिमा अन्य दुर्गा पंडाल के लिए नजीर बन गयी है यदि सभी जगहों से ऐसी ही इको फ्रेंडली प्रतिमा बनायी जाये तो पर्व का मजा और बढ़ जायेगा।
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