#Once upon a time काशी में इन देवी के मंदिर की स्थापना स्वयं काशी विश्वनाथ ने की, यहीं करते हैं वह रात्रि विश्राम
-इस शक्ति पीछ में ही काशीवास की मिलती है इजाजत-बाबा विशालाक्षीश्वर देते हैं मोक्ष-दक्षिण भारत से है गहरा लगाव-कामाक्षी, मिनाक्षी की तीसरी बहन हैं विशालाक्षी
डॉ अजय कृष्ण चतुर्वेदीवाराणसी. धर्म नगरी काशी के बारे में कहा गया है कि यहां कण-कण में शंकर विद्यमान हैं। यह हकीकत भी जान पड़ता है। या तो इस नगरी में भगवान शंकर हैं या फिर मां भगवती। वैसे भी शास्त्रों में कहा गया है या भगवान शंकर खुद कहते हैं कि शक्ति के बिना शिव का अस्तित्व नहीं। ऐसे में जहां शिव वहीं शक्ति। शिव बिन शक्ति अधूरी तो शक्ति बिन शिव। दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं। अब अगर काशी के शक्ति पीठ विशालाक्षी मंदिर की ही बात करें तो बताया जाता है कि इस शक्ति पीठ की स्थापना स्वयं भगवान शंकर ने की। इतना ही नहीं माता पार्वती के लिए ही उन्होंने काशी नगर की स्थापना की। काशीं द्वादश ज्योतिर्लिंग के रूप में बाबा विश्वनाथ की स्थापना तो बाद में हुई। यहीं विलाक्षीश्वर देते हैं मोक्ष।
महर्षि वेदव्यास ने कुछ इस तरह किया है इस शक्ति पीठ का बखान स्कंद पुराण के 4 अध्याय में स्थित काशी खंड में महर्षि वेदव्यास बताते हैं कि काशी क्षेत्र ममें विशाल फल देने वाला विशालाक्षी तीर्थ है। इसी काशी खंड के अध्याय 83 में उन्होंने कहा है कि वहां पर स्नान और विशालाक्षी के दर्शन करने से फिर कभी गर्भ में वास नही करना पड़ता।
अध्याय 97 में श्लोक संख्या 240 में काशी वास पूर्ण होने के लिए अनुमति देने के लिए विशालाक्षीश्वर नाम से उसी मंदिर में विश्वेश्वर विराजमान हैं। यह विश्वेश्वर महादेव स्वयंभी हैं। अध्याय 79 के श्लोक संख्या 77 में बताया गया है कि भगवान विश्वनाथ कहते हैं कि विशालाक्षी देवी का बड़ा मंदिर ही मेरे विश्राम का स्थान है। वहां पर मं संसार से रिक्त लोगो को विश्राम (मुक्ति) वितरण करता हूं।
काशी में वासपूर्ण होने के लिए अनुमति देने के लिए विशालाक्षीश्वर ना से उसी मंदिर में विशेश्वर विराजमान हैं। निरुपण है कि भाद्र पद तृतीया तिथि में विशालाक्षी (धनेश्वर पीठ) मंदिर की यात्रा कर उसी स्थान में रात्रि जागरण करके प्रातः काल में 14 कुमारियों की पूजा, वस्त्र, भोजन, पुष्प देने से सभी मनोकामनाएं (सौभाग्य, काशीवास पूर्ण आदि) पूर्ण होती हैं। काशी में विशालाक्षी महापीठ में यथाशक्ति सेवा (धर्म, तप, हवन, स्तुति, पूजा आदि) मोक्षादि की प्राप्ति होती है।
IMAGE CREDIT: patrikaबाबा विश्वनाथ ने की थी शक्ति पीठ की स्थापना मंदिर के महंत सुरेश कुमार तिवारी बताते हैं कि यह मंदिर अनादि काल से यहीं है। धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि यहीं पर माता अर्थात मां पार्वती का मुख गिरा था और तभी से वह यहीं विराजमान हैं। एक बार घूमते हुए जब भगवान शंकर यहां आए तो माता को देख चकित हुए। फिर उन्होंने माता के लिए काशी नगरी की स्थापना की। यह तो पहले आनंद वन था। महंत ने बताया कि पहले बाबा ने विशाक्षी की स्थापना की उसके बाद ही ज्योतिर्लिंग की स्थापना बाबा विश्वनाथ के रूप में हुई।
IMAGE CREDIT: patrikaशंकराचार्य ने स्थापित की है एक और प्रतिमा वह बताते हैं कि यह माता का शक्ति पीठ है। यहां मां विशालाक्षी की प्राचीन प्रतिमा भी है उसके ठीक आगे 1971 में शंकराचार्य ने माता की एक और मूर्ति की स्थापना की, अब दोनों प्रतिमाओं का पूजन अर्चन होता है।
बाबा विश्वनाथ इस पीठ में करते हैं रात्रि विश्राम महंत तिवारी बताते हैं कि इस शक्ति पीठ में रात्रि में बाबा विश्वनाथ विश्राम करते हैं। उस वक्त कोई यहां आता नहीं। दादा-परदादा बताते थे कि उन्होंने भी रात के तीसरे प्रहर में खड़ाऊं पहन कर किसी को चलते सुनने का अहसास किया है। इस मंदिर में विशालाक्षीश्वर महादेव का शिवलिंग भी है।
IMAGE CREDIT: patrikaदक्षिण भारत से गहरा जुड़ाव, कामाक्षी, मिनाक्षी के दर्शन के बाद विशालाक्षी के पूजन को आते हैं श्रद्धालु बताया कि इस मंदिर का दक्षिण भारत से गहरा जुड़ाव है। दरअसल मान्यता है कि कांची कामाक्षी, मदुरै मिनाक्षी और काशी विशालाक्षी तीनों सगी बहनें हैं। ऐसे में दक्षिण भारतीय वहां मिनाक्षी और कामाक्षी का दर्शन तो कर लेते हैं लेकिन विशालाक्षी के दर्शऩ के लिए काशी आना होता है। ऐसे में कोई दक्षिण भारतीय काशी आता है तो विशालाक्षी देवी का दर्शऩ जरूर करता है ताकि तीनों बहनों के तीर्थ का पुण्य लाभ अर्जित हो सके।
नाटकोट चट्टियार की होती है दो प्रहर की पूजा इसके अलावा दक्षिण भारत के नाटकोट चट्टियार नामक संस्था ने ही इस मंदिर का निर्माण कराया था। अब भी नाटकोट चट्टियार की ओर रोजाना दो प्रहर का भोग और पूजा होती है। दो प्रहर यानी मंगला आरती और शयन आरती हम लोग करते है शेष दो पूजा नाटकोट चट्टियार की ओर से होती है। बताया कि इस नाटकोट चट्टियार के द्वारा बाबा विश्वनाथ मंदिर में भी पूजा होती है।
IMAGE CREDIT: patrikaहर तरह के कष्टों से मिलत है मुक्ति उन्होंने बताया कि माता का शांत स्वभाव है। ऐसे में जो भी भक्त व्यथित हैं, निःसंतान हैं, मुकदमा आदि के चक्कर में फंसा है निःसंतान है, किसी वजह से मन खिन्न है, दुखी हैं तो यहां आ कर पूजन-अर्चन करने से भी यहां प्रार्थना करने से शांति मिलती है। सारे दुःखों का नाश होता है, मुकदमा आदि में जीत मिलती है। इसके अलावा मां विशालाक्षी योग्य वर व संतान भी प्रदान करती हैं।
IMAGE CREDIT: patrikaमणि-कुंडल नहीं माता का गिरा था मुख महंत तिवारी ने बताया कि यह पूरी तरह से गलत धारणा है कि यहां पर माता की मणि और कुंडल गिरा था। ऐसा नहीं यहां माता का मुख गिरा था। मणि और कुंडल गिरने का प्रसंग मणिकर्णिका से जुड़ा है। वहीं भगवान विष्णु द्वारा निर्मित सरोवर में स्नान करते वक्त माता पार्वती का कुंडल व बाबा की मणि गिरी थी, उसी से उसे मणिकर्णिका नाम हुआ।
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