scriptकौन था वह DSP जिसने मुख्तार अंसारी से ले लिया पंगा, छोड़नी पड़ी नौकरी, फिर करने लगे खेती | Former DSP Shailendra Singh is the cop who had invoked POTA on gangste | Patrika News
वाराणसी

कौन था वह DSP जिसने मुख्तार अंसारी से ले लिया पंगा, छोड़नी पड़ी नौकरी, फिर करने लगे खेती

मुख्तार अंसारी के आतंक की कमर 2004 में ही टूट जाती लेकिन उस समय की सरकार ने उसे बचा लिया और नतीजा एक ईमानदार पुलिस अधिकारी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा।

वाराणसीApr 21, 2023 / 12:40 pm

Krishna Pandey

ansari_with_shaillendra.jpg

1991 बैच के पीपीएस अधिकारी शैलेंद्र सिंह ने इस्तीफा देने के बाद कुछ दिन तक राजनीति में भी हाथ अजमाए

प्रयागराज में माफिया डॉन अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ की हत्या के बाद जेल में बंद अपराधियों में खौफ बढ़ता जा रहा है। अतीक अहमद के बाद बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी के परिवार पर यूपी पुलिस ने नकेल कसना शुरू कर दिया है।
मुख्तार परिवार के 5 सदस्यों पर अभी क्रिमिनल केस
मुख्तार की पत्नी अफशां अंसारी पर यूपी पुलिस ने ईनामी राशि 25 हजार से बढ़ाकर 50 हजार कर दिया है। एक समय वाराणसी-गाजीपुर और मऊ समेत पूर्वांचल की सत्ता का केंद्र रहे मुख्तार परिवार के 5 सदस्यों पर अभी क्रिमिनल केस है।
मुख्तार, उसके बेटे अब्बास और अब्बास की पत्नी निखत जेल में बंद है, जबकि मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी जमानत पर हैं।
कौन है वह अधिकारी जिसने अंसारी से लिया ‌था पंगा, क्यों देना पड़ा इस्तीफा
सबसे पहले जानते हैं आखिर कौन है वह अधिकारी जिसने अंसारी से लिया ‌था पंगा, जिसे पुलिस की नौकरी भी छोड़नी पड़ी। और जॉब छोड़ने के बाद खेती करने लगे। कहानी पीसीएस अधिकारी शैलेंद्र सिंह की है जो 1991 बैच के अधिकारी हैं। शैलेंद्र के दादा राम रूप सिंह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे। शैलेंद्र खुद एक बहादुर पुलिस अफसर थे और वे सिस्टम के खिलाफ जाकर मुख़्तार अंसारी से तब भिड़ गए थे, जब कोई यह हिम्मत भी नहीं कर पाता था। लेकिन अंत में राजनैतिक दबाव के कारण उन्हें पीछे हटना पड़ा और अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा।
2004 में मुख्तार अंसारी के खिलाफ पोटा के तहत केस की सिफारिश
शैलेंद्र सिंह ने 2004 में ही एक मामले में मुख्तार अंसारी के खिलाफ पोटा के तहत केस दर्ज करने की सिफारिश सरकार को भेज दी थी। उस समय वे एसटीएफ में डीएसपी पद पर तैनात थे। हांलाकि राजनैतिक कारणों की वजह से सरकार की ओर से मुख्तार पर से मुकदमा हटाने का दबाव बनाया गया, लेकिन शैलेंद्र सिंह ने इससे इनकार कर दिया और इस्तीफ़ा दे दिया।
मुख्तार पर कानूनी शिकंजा तो वैसे साल 2004 में एलएमजी केस से कस गया था पर उस वक्त मुलायम सिंह की सरकार में मुख्तार बच गया। बाद में यही केस मुख्तार के आपराधिक साम्राज्य को हिलाने में नींव साबित हुआ।
क्या था लाइट गन मशीन (एलएमजी) कांड?
2004 में यूपी एसटीएफ की ओर से दर्ज एफआईआर में कहा गया था कि मुख्तार अंसारी उस वक्त तत्कालीन बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या करना चाहता था। राय के पास बुलेटप्रूफ कार थी, जिसे एलएमजी के बिना भेदना आसान नहीं था। इसलिए मुख्तार इसे खरीदना चाहता था।
सर्विलांस के जरिए मुख्तार के मंसूबे का पता
यूपी एसटीएफ के वाराणसी जोन का प्रभार उस वक्त डीएसपी रहे शैलेंद्र सिंह के पास था। सिंह ने सर्विलांस के जरिए मुख्तार के इस मंसूबे का पता लगाया और टीम को एक्टिव कर दिया। मुख्तार और उससे जुड़े फोन कॉल रिकॉर्ड किया जाने लगा। इसी दौरान एसटीएफ को एक बड़ा सुराग हाथ लगा।
एसटीएफ को पता चला कि जम्मू-कश्मीर 35 राइफल्स से एक सिपाही बाबूलाल एलएमजी चुराकर मुख्तार के करीबी और गनर मुंदर यादव को बेचना चाहता है। यह सौदा करीब एक करोड़ रुपए में हुआ है। इसके बाद एसटीएफ मुंदर और बाबूलाल की गतिविधियों पर नजर रखने लगी।
एलएमजी के साथ ही 200 कारतूसों का सौदा
25 जनवरी 2004 को वाराणसी के चौबेपुर इलाके में एसटीएफ ने एक छापा मारा और इस छापे में बाबू लाल यादव, मुन्नर यादव को दबोच लिया। दोनों एलएमजी के साथ ही 200 कारतूसों का सौदा कर रहे थे। यूपी एसटीएफ ने इस केस में मुंदर के साथ ही मुख्तार अंसारी पर नकेल कस दिया और उन पर पोटा के तहत केस दर्ज करने की सिफारिश सरकार को भेज दी।
2005 में कृष्णानंद राय की हत्या
एसटीएफ के पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह ने बाद में पत्रकारों को बताया कि अगर एलएमजी कांड का खुलासा नहीं होता तो राय की हत्या 2004 में ही हो जाती। 2005 में कृष्णानंद राय की हत्या एक कार्यक्रम से लौटने के दौरान कर दी गई।
इस केस में मुख्तार अंसारी और उसके भाई अफजाल अंसारी को आरोपी बनाया गया। 2019 में सीबीआई की अदालत ने दोनों भाइयों को सबूत के अभाव में बरी कर दिया।

आज कृष्णनानंद राय जिंदा होते, अगर…
एक मीडिया रिपोर्टस के अनुसार शैलेंद्र सिंह कहते हैं- 2004 में जब एलएमजी कांड हुआ उस वक्त अगर मुलायम सिंह सरकार के खिलाफ बीजेपी दबाव बनाती और मुख्तार पर कार्रवाई से नहीं रोकती तो आज कृष्णनानंद राय जीवित होते।
सरकार मुख्तार के सपोर्ट में आई, डीएसपी ने इस्तीफा दिया
मुख्तार अंसारी पर पोटा लगने के बाद मुलायम सिंह की सरकार हरकत में आ गई। दरअसल, विधायकों के जोड़तोड़ पर टिकी मुलायम सरकार के लिए मुख्तार संजीवनी की तरह थे। इसलिए सरकार ने एसटीएफ की सिफारिश मानने से इनकार कर दिया और वाराणसी के कई पुलिस अधिकारियों को हटा दिया।
इस्तीफा सीधे राज्यपाल को भेजा था
उस वक्त एसटीएफ के डीएसपी शैलेंद्र सिंह ने मुख्तार पर से मुकदमा हटाने से इनकार कर दिया और अपने पद से इस्तीफा दे दिया। सिंह ने अपना इस्तीफा सीधे राज्यपाल को भेजा था, जिसे मजबूरन सरकार को स्वीकार करना पड़ा था। सिंह के इस्तीफे पर विधानसभा में जमकर हंगामा हुआ था।
उस वक्त सरकार के संसदीय कार्यमंत्री आजम खान ने विधानसभा में बयान देते हुए कहा था कि पोटा के खिलाफ हमारी सरकार है और इस पर हम अपने स्टैंड पर कायम रहेंगे। सरकार ने शैलेंद्र के इस्तीफे पर किसी भी तरह के बयान देने से इनकार कर दिया था।
सरकार बैकफुट पर आ गई
सिंह 1999 में भी अंसारी के साम्राज्य पर कार्रवाई को लेकर सरकार के निशाने पर आए थे। उस वक्त बाराबंकी में सिंह की टीम ने अवैध तरीके से कोयला ले जा रहे 70 ट्रकों को जब्त किया था, जिसे सरकार ने छोड़ने का दबाव बनाया था। सिंह ने इस्तीफे की धमकी दे दी, जिसके बाद सरकार बैकफुट पर आ गई थी।
एमएलजी केस में मुख्तार के गनर को मिली थी सजा
2014 में वाराणसी की एक अदालत ने मुख्तार के गनर रहे मुंदर यादव और सप्लायर बाबू लाल को एलएमजी कांड में दोषी पाया था। बाबूलाल का कोर्ट मार्शल हुआ और उसे 10 साल की सजा मिली। बाबूलाल रिश्ते में मुंदर के मामा थे।
मुंदर यादव को इस केस में 5 साल की सजा मिली और उस पर 20 हजार का जुर्माना लगाया गया था। कोर्ट ने पाया कि यह एलएमजी का सौदा गलत तरीके से हो रहा था। हालांकि, इस केस में मुख्तार और उसके परिवार के किसी भी व्यक्ति को दोषी नहीं पाया गया था।
राजनीति में हाथ अजमाए, लेकिन नहीं मिली सफलता
1991 बैच के पीपीएस अधिकारी शैलेंद्र सिंह ने इस्तीफा देने के बाद कुछ दिन तक राजनीति में भी हाथ अजमाए, लेकिन सफलता नहीं मिली। 2009 में शैलेंद्र को कांग्रेस ने चंदौली से मैदान में उतारा, लेकिन हार गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में भी उन्हें सैयदराजा सीट से उम्मीदवार बनाया गया, लेकिन जीत नहीं पाए।
कांग्रेस ने शैलेंद्र सिंह को यूपी आरटीआई सेल का चीफ भी बनाया था। इसी दौरान सिंह मायावती सरकार के मूर्ति बनाने के फैसले के खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की थी।

7 दिन तक जेल में भी रहना पड़ा
2008 में सिंह पर वाराणसी जिला कलेक्टर में मारपीट और तोड़फोड़ का आरोप लगा था, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इस दौरान उन्हें 7 दिन तक जेल में भी रहना पड़ा। कोर्ट ने शैलेंद्र को बेल देते हुए यूपी सरकार को जमकर फटकार लगाई थी।
2013 में बीजेपी में शामिल
कांग्रेस से मोहभंग के बाद सिंह 2013 में बीजेपी में शामिल हो गए और वाराणसी में सोशल मीडिया देखने लगे। वाराणसी से जब पीएम मोदी ने चुनाव लड़ने की घोषणा की तो बीजेपी कंट्रोल रूम का जिम्मा सिंह को मिला। हालांकि, संगठन और सरकार में अब तक सिंह को कोई भी बड़ी जिम्मेदारी नहीं मिली।
जैविक खेती को बनाया जीवनयापन का जरिया
सिंह वर्तमान में जैविक खेती के जरिए जीवनयापन कर रहे हैं। सिंह एक गौशाला को भी ऑपरेट कर रहे हैं। हाल ही में उन्होंने लखनऊ में एक रेस्टोरेंट खोला है, जिसका उन्होंने गाय से उद्धघाटन करवाया।
सिंह शून्य बजट के कांसेप्ट पर खेती कर रहे हैं। सिंह के मुताबिक ऑरगेनिक खेती के जरिए कृषि क्षेत्र में युवाओं के लिए स्वरोजगार के अवसरों की अधिकतम संभावनाएं हैं। सिंह का नवाचार नंदी रथ हाल ही में सुर्खियों बटोरी थी। इस रथ से बैलों के माध्यम से बिजली बनाने का काम किया जाता है।

Hindi News / Varanasi / कौन था वह DSP जिसने मुख्तार अंसारी से ले लिया पंगा, छोड़नी पड़ी नौकरी, फिर करने लगे खेती

ट्रेंडिंग वीडियो