वाराणसी के इंटरनेशनल एयरपोर्ट का विस्तारीकरण जमीन की कमी के चलते रुका हुआ है। इसे अन्तर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट की मान्यता तो दे दी गयी, पर जमीन की कमी के चलते इसके रनवे को अपेक्षित रूप से अब तक बढ़ाया नहीं जा सका। मसला ये है कि हवाई अड्डे का विस्तारीकरण यदि पूर्व में होता है तो इधर रेलवे लाइन है और पश्चिम में इसका रास्ता नेशनल हाइवे 56 ने रोक रखा है। विस्तारीकरण रेलवे लाइन की ओर संभव न होने से संभावनाएं पश्चिम में हाइवे की ओर ही तलाशी जा रही थीं। अब हाइवे के ऊपर रनवे बनाने की अनुमति के बाद एयरपोर्ट के विस्तारीकरण का रास्ता साफ हो गया है। इससे दोहरा फायदा यह बताया जा रहा है कि एक तरफ तो हाइवे के ऊपर से रनवे गुजरेगा और दूसरी ओर हाइवे का भी अपेक्षित चौड़ीकरण किया सकेगा।
‘रनवे ओवर द हाइवे’ बन जाने से वाराणसी का एयरपोर्ट न सिर्फ भारत में बल्कि विश्व पटल पर जाना जाएगा। अब तक इस कड़ी में जिब्राल्टर और लिपजिंग हाल्ले एयरपोर्ट के नाम लिये जाते रहे हैं। इसके अलावा इससे जमीन की बचत होगी। यदि हाइवे को हटाकर रनवे का विस्तार किया जाता तो हाइवे के लिये फिर अलग जमीन की जरूरत पड़ती। उसे एयरपोर्ट कि किनारे-किनारे ले जाना पड़ता। जमीन के साथ-साथ दूरी भी बढ़ जाती। इसके अलावा अंडरपास हाइवे होने के चलते इसे चार लेन करने में भी आसानी होगी।