ये भी पढ़ें- यूपी में हॉटस्पॉट बना लखनऊः कोरोना संक्रमितों की संख्या 50000 पार, सबसे ज्यादा 21-40 वर्षीय लोग संक्रमित 24 सितंबर को काशी के दक्षिण में रमना गांव के पास गंगा में यह मछली मछुआरों के महाजाल में फंस गई। इस अजीबो गरीब मछली को देख कर मछुआरों ने इसकी सूचना गंगा प्रहरी दर्शन निशाद को दी। देहरादून के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट में प्रशिक्षित दर्शन निशाद इसे देखते ही पहचान गए। उन्होंने उसे जीवित अवस्था में बीएचयू के जंतु विज्ञानियों तक पहुंचाया। साथ ही इस मछली की फोटो व वीडियो देहरादून के वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट की मछली विशेषज्ञ डॉ. रुचि बडोला को भी भेजी है। इससे पहले 3 सितंबर को सुनहरी रंग की सकर कैटफिश गंगा में सूजाबाद के पास मिली थी। बीएचयू के जंतु विज्ञानियों ने इस मछली के कारण होने वाले पारिस्थितिकीय परिवर्तनों के बारे में पता लगाने का काम शुरू कर दिया गया है। बीएचयू के जंतु विज्ञानी प्रो. बेचन लाल का कहना है कि उन्होंने बताया कि इन मछलियों को नदियों से समाप्त करना अब असंभव हो गया है।
ये भी पढ़ें- 180 किमी पैदल ‘दौड़ाने’ के बाद पुलिस ने बुजुर्ग की दर्ज की एफआईआर जलीय पारिस्थितिकी में असंतुलन का कारण- बेचन लाल ने बताया कि यह जलीय पारिस्थितिकी में भयानक असंतुलन का कारण है। यह अपने से छोटी मछलियों ही नहीं बल्कि अन्य जलीय जीवों को भी खा जाती हैं। देसी मछलियों को प्रजनन के लिए विशेष परिस्थिति की जरूरत होती है, लेकिन हाइपोस्टोमस प्लोकोस्टोमस के साथ ऐसा नहीं है। ये मछलियां जल में किसी भी परिस्थिति में और कहीं भी प्रजनन कर सकती हैं।