डुमराव के रहने वाले थे कमरुद्दीन डुमराव में पैदा हुए कमरुद्दीन काशी में आकर उस्ताद बन गए। उस्ताद के छोटे बेटे काजिम हुसैन ने बताया कि अब्बा हुजूर बचपन में ही बनारस आ गए और यहां रहने लगे। हमारे दादा ने उनके हुनर को पहचाना और जब वो शहनाई बजाने लगे तो उन्हें उस्ताद का लक़ब दिया। उस्ताद का जन्म 21 मार्च 1916 को हुआ था।
बालाजी मंदिर पर किया उम्र भर रियाज काजिम हुसैन ने बताया कि अब्बा हुजूर सुबह उठकर गंगा जी जाते थे और वहीँ रियाज करते थे। मंगला गौरी और बालाजी मंदिर में अब्बा गंगा नदी में स्नान और वजू के बाद रियाज के लिए बैठते तो घंटों यहां शहनाई का रियाज करते। यहाँ उनके चाहने वाले भी आकर बैठते थे जिनकी फरमाइश पर व शाहनाई में राग छेड़ते थे।
भारत का स्वर्णिम इतिहास जयंती पर उस्ताद को श्रद्धांजलि अर्पित करने पहुंचे कांग्रेस के प्रांतीय अध्यक्ष अजय राय ने कहा कि बिस्मिल्लाह खां साहब को हम लोग हर वर्ष उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हैं। काशी के संगीत घराने को जिस मुकाम पर उस्ताद ने पहुंचाया वह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता है। वो स्वयं में भारत का स्वर्णिम इतिहास थे और रहेंगे।