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उदयपुर

बप्पा रावल से पड़ा रावलपिंडी का नाम

मेवाड़ राज्य के संस्थापक व वीर योद्धा बप्पा रावल की महानता का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है

उदयपुरJan 02, 2016 / 05:43 am

मुकेश शर्मा

udaipur

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उदयपुर।मेवाड़ राज्य के संस्थापक व वीर योद्धा बप्पा रावल की महानता का अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान का प्रमुख शहर रावलपिंडी उनके ही नाम पर बना था। विदेशी आक्रमणकारियों को नाकों चने चबवाने वाले वीर बप्पा रावल का सैन्य ठिकाने वहां होने के कारण रावलपिंडी को यह नाम मिला। आठवीं सदी में मेवाड़ की स्थापना करने वाले बप्पा भारतीय सीमाओं से बाहर ही विदेशी आक्रमणों का प्रतिकार करना चाहते थे। बप्पा ने सिंध तक आक्रमण कर अरब सेनाओं को खदेड़ा था। कई इतिहासकार इस बात को निर्विवाद स्वीकार करते हैं कि रावलपिण्डी का नामकरण बप्पा रावल के नाम पर हुआ था।


 इससे पहले तक रावलपिंडी को गजनी प्रदेश कहा जाता था। तब कराची का नाम भी ब्रह्माणावाद था। इतिहासकार बताते हैं गजनी प्रदेश में बप्पा ने सैन्य ठिकाना स्थापित किया था। वहां से उनके सैनिक अरब सेना की गतिविधियों पर नजर रखते थे। उनकी वीरता से प्रभावित गजनी के सुल्तान ने अपनी पुत्री का विवाह भी उनसे किया था। मेवाड़ में बप्पा व दूसरे प्रदेशों में इस वीर शासक को बापा भी पुकारा जाता था। अबुल फजल ने मेवाड़ राजवंश को नौशेरवा की उपाधि प्रदान की थी।

हारीत ऋषि का आशीर्वाद मिला: बप्पा के जन्म के बारे में अद्भुत बातें प्रचलित हैं। बप्पा जिन गायों को चराते थे, उनमें से एक बहुत अधिक दूध देती थी। शाम को गाय जंगल से वापस लौटती थी तो उसके थनों में दूध नहीं रहता था।


बप्पा दूध से जुड़े हुए रहस्य को जानने के लिए जंगल में उसके पीछे चल दिए। गाय निर्जन कंदरा में पहुंची और उसने हारीत ऋषि के यहां शिवलिंग अभिषेक के लिए दुग्धधार करने लगी। इसके बाद बप्पा हारीत ऋषि की सेवा में जुट गए। ऋषि के आशीर्वाद से बप्पा मेवाड़ के राजा बने।

कर्नल टॉड का मत

महान इतिहासकार कर्नल जैम्स टॉड ने बप्पा के बारे में लिखा है कि ईडर के गुहिल वंशी राजा नागादित्य की हत्या के बाद उनकी पत्नी तीन साल के पुत्र बप्पा को लेकर बडऩगरा (नागर) जाति के कमलावती के वंशजों के पास ले गईं। उनके वंशज गुहिल राजवंश के कुल पुरोहित थे। भीलों के आतंक से फलस्वरूप कमला के वंशधर ब्राह्मण, बप्पा को लेकर भांडेर नामक स्थान पर आ गए। यहां बप्पा गायें चराने लगे। इसके बाद नागदा आए और ब्राह्मणों की गायें चराने लगे।

मोरियो से जीता चित्तौड़

नैणसी ने भी इस वृत्तांत को लिखा है कि हारीत ऋषि द्वारा बताए गए स्थान से बप्पा को 15 करोड़ मूल्य की स्वर्ण मुद्राएं मिलीं। बप्पा ने इस धन से सेना निर्माण कर मोरियों से चित्तौड़ का राज्य लिया। यहीं से मेवाड़ राजवंश की नींव पड़ी।

बप्पा रावल का सैन्य ठिकाना था

 बप्पा के कराची तक जाने और अरब सेनाओं को खदडऩे का जिक्र मिलता है। इस बात को पूरी तरह स्वीकार किया जा सकता है कि रावलपिण्डी का नामकरण बप्पा रावल के नाम पर हुआ। यहां बप्पा का सैन्य ठिकाना था। – प्रो. केएस. गुप्ता, इतिहासकार

 बप्पा बहुत ही शक्तिशाली शासक थे। बप्पा का लालन-पालन ब्राह्मण परिवार के सान्निध्य में हुआ। उन्होंने अफगानिस्तान व पाकिस्तान तक अरबों को खदेड़ा था। बप्पा के सैन्य ठिकाने के कारण ही पाकिस्तान के शहर का नाम रावलपिंडी पड़ा। – प्रो. जीएन माथुर, इतिहासकार

रमाकांत कटारा

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