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टीकमगढ़

अलमारियों में बंद होकर रह गईं 25 हजार किताबें, 450 साल पुराने हस्त लिखित ग्रंथ

टीकमगढ़. जिले का शासकीय देवेंद्र पुस्तकालय संभवत: देश के सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक है। राजशाही दौर में लोगों को साहित्य और शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए इसकी स्थापना की गई थी। समय के साथ पुस्तकालय में कई बदलाव आए, लेकिन जगह की कमी एवं लोगों के पुस्तकों से दूर होने के चलते यहां पर रखी तमाम विषयों की लगभग 25 हजार पुस्तकों का आज उपयोग नहीं हो पा रहा है।

टीकमगढ़Jan 13, 2025 / 06:25 pm

Pramod Gour

शासकीय देवेंद्र पुस्तकालय।

शासकीय देवेंद्र पुस्तकालय।

8 कमरों में सिमट कर रह गया 95 साल पुराना पुस्तकालय

टीकमगढ़. जिले का शासकीय देवेंद्र पुस्तकालय संभवत: देश के सबसे पुराने पुस्तकालयों में से एक है। राजशाही दौर में लोगों को साहित्य और शिक्षा के प्रति जागरूक करने के लिए इसकी स्थापना की गई थी। समय के साथ पुस्तकालय में कई बदलाव आए, लेकिन जगह की कमी एवं लोगों के पुस्तकों से दूर होने के चलते यहां पर रखी तमाम विषयों की लगभग 25 हजार पुस्तकों का आज उपयोग नहीं हो पा रहा है।
नगर भवन के 8 कमरों में संचालित हो रहे इस पुस्तकालय में वर्तमान में पुस्तकों को रखने के लिए भी पर्याप्त जगह नहीं है। पुस्तकालय को किसी प्रकार से संचालित करने के लिए इन कमरों से लगी तीन गैलरियों का उपयोग कर आने वाले लोगों को पढऩे के लिए जगह बनाने की कोशिश की गई है। इन गैलरियों को हरी मेट से ढका गया है, ऐसे में बारिश एवं सर्दियों के मौसम में यहां पर परेशानी होती है। सालों से इस पुस्तकालय को उपयुक्त जगह पर शिफ्ट करने की मांग की जा रही है।
पत्रिका व्यू: गीता भवन का मिले लाभ

इस पुस्तकालय में जगह की कमी के साथ ही शहर के अंतिम छोर पर स्थित होने के कारण यहां पर बच्चों का पहुंचना मुश्किल होता है। ऐसे में इस पुस्तकालय को शहर में ऐसी जगह व्यवस्थित किया जाए, जो आमजन की पहुंच में है। विदित हो कि हाल ही में सरकार ने हर नगरीय क्षेत्र में गीता भवन निर्माण कराने के निर्देश दिए हैं। ऐसे में यह प्रशासन और नगरीय निकाय मिलकर इसे शहर के बीच में स्थापित करते हैं और इसी में पुस्तकालय आता है तो गीता भवन का वास्तविक उद्देश्य पूर्ण होने के साथ ही यह पुस्तकें भी एक बार फिर से बच्चों के काम आ सकेंगी।
यह है देवेंद्र पुस्तकालय का इतिहास

वर्ष 1930 में तत्कालीन नरेश मधुकर शाह द्वितीय ने इसकी स्थापना की थी।

नजरबाग मंदिर में इसे शुरू किया गया था।

इसके बाद कोतवाली के सामने इसका खुद का भवन बनाया गया।
वर्ष 2000 में यह भवन जर्जर हो जाने पर इसे तोड़ दिया गया और पुस्तकालय नगर भवन पहुंच गया।

इसका नया भवन बनाने की जगह यहां पर पार्क बना दिया गया।

वर्ष 2014 में यह पुस्तकालय पूरी तरह से ऑनलाइन हो गया।
वर्ष 2018 में चलित लाइब्रेरी शुरू की गई। ऐसे में बच्चों के पास पुस्तकें खुद जाने लगे।

वर्ष 2022 से नव मधुकर पत्रिका का प्रकाशन शुरू हुआ।

वर्ष 2024 में युवा विमर्श पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया।
यह है खासियत

इस पुस्तकालय में कई पुस्तकें 450 सालों से अधिक पुरानी हैं। यहां पर कई पांडुलिपियां भी हैं। पुस्तकालय में उस समय के कई हस्तलिखित ग्रंथ हैं। इसमें सर्वाधिक धार्मिक विषयों पर विभिन्न टीकाकारों के अनुवाद हैं। पुस्तकालय में हाल ही में आईपीसी की भी हस्त लिखित प्रति प्राप्त हुई हैं। इसके साथ ही तुलसीकृत विनय पत्रिका सहित अन्य ग्रंथों की हस्त लिखित प्रतियां हैं। विभिन्न विषयों की 25 हजार से अधिक पुस्तकें हैं।

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