मान्यता है कि 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ ने भी यहां तप किया था और परिनिर्वाण प्राप्त किया। इसकी वजह से यह जैन धर्म का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल माना जाता है। जैन धर्म के मानने वाले अपने जीवन में कम से कम एक बार यहां जरूर आना चाहता है। यह अमरतीर्थ कहा जाता है, यहां करीब 2000 साल पुराने मंदिर है।
ये भी पढ़ेंः Sammed Shikharji: सिद्ध क्षेत्र है सम्मेद शिखरजी, जानें इससे जुड़ी मान्यताएं अयोध्या (Ayodhya): जैन धर्मावलंबियों के अनुसार सम्मेद शिखरजी और अयोध्या का अस्तित्व सृष्टि के समानांतर है। जब से सृष्टि की रचना हुई, तभी से ये दोनों तीर्थ भी अस्तित्व में हैं। मान्यता है कि जैन धर्म के पहले तीर्थंकर ऋषभदेव (आदिनाथ) का जन्म यहीं चैत्र कृष्ण 9 को अयोध्या में नाभिराज और मरुदेवी के यहां हुआ था। यहां अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ का भी जन्म हुआ था। इसलिए यह जगह जैन धर्म का दूसरा बड़ा तीर्थ स्थल है। जैन परंपरा के अनुसार ऋषभदेव के पुत्र भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा।
कैलाशः जैन धर्मावलंबियों का तीसरा प्रमुख तीर्थ कैलाश है। भगवान शिव और ऋषभदेव दोनों को आदिनाथ कहा जाता है। इससे बहुत सारे लोग दोनों का संबंध स्थापित करते हैं। बहरहाल आदिनाथ ऋषभदेव को कैलाश पर ही कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ था। इसीलिए यह जैन धर्म के लिए तीर्थ स्थल है, जैन परंपरा में नाभिराज से ही इक्ष्वाकु वंश की शुरुआत मानी जाती है, जिसमें बाद में भगवान राम का अवतार हुआ।
वाराणसीः जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म वाराणसी में हुआ था। मान्यता है कि उनसे पूर्व श्रमण धर्म को आम लोगों में पहचाना नहीं जाता था। पार्श्वनाथ ने चार संघों की स्थापना की थी,जो गणधर के अंतर्गत कार्य करते थे। जैन धर्मावलंबियों का मानना है भगवान गौतम बुद्ध के पूर्वज भी पार्श्वनाथ धर्म के अनुयायी थे। पार्श्वनाथ ने चैत्र कृष्ण चतुर्थी को कैवल्य प्राप्त किया और चातुर्याम की शिक्षा दी, बाद में श्रावण शुक्ल अष्टमी को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त किया।
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कुंडलपुरः जैन धर्म के 24वें और आखिरी तीर्थंकर महावीर स्वामी का जन्म वैशाली (बिहार) के कुंडलपुर गांव में चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन पिता सिद्धार्थ और माता त्रिशला के घर हुआ था। इसलिए इसे भी तीर्थ स्थल मानते हैं। इन्होंने 527 ईं. पू. पावापुरी में निर्वाण प्राप्त किया। इनके निर्वाण दिवस पर जैन धर्म के अनुयायी घरों में दीये जलाते हैं और दीपावली मनाते हैं।
पावापुरीः नालंदा जिले में स्थित इस तीर्थ स्थल में जैन धर्म के आखिरी तीर्थंकर महावीर स्वामी ने निर्वाण प्राप्त किया था। यहां तीर्थंकर के निर्वाण का ***** स्तूप बना हुआ है, जिसके भीतर जल मंदिर है। माना जाता है कि अंतिम संस्कार इसी कमल सरोवर में किया गया था। यहां समवशरण जैन मंदिर समेत कई अन्य मंदिर हैं।
गिरनार पर्वतः यहां 22वें तीर्थंकर नेमिनाथ ने मोक्ष प्राप्त किया था, यह सिद्ध क्षेत्र माना जाता है। जैन मान्यता के अनुसार यहां से 72 करोड़ 700 मुनि मोक्ष प्राप्त किए हैं।
चंपापुरीः 12वें तीर्थंकर भगवान वासुपूज्य ने यहां कैवल्य और निर्वाण प्राप्त किया था। इनका जन्म इक्ष्वाकुवंश में हुआ था।
ये भी पढ़ेंः Mahavir Birth Anniversary: महावीर जयंती कल, जानें भगवान महावीर का वह संदेश जिससे मिट सकती है आर्थिक विषमता श्रवणबेलगोलाः यह प्राचीन तीर्थ कर्नाटक के मंड्या जिले के श्रवणबेलगोला के गोम्मटेश्वर में है। यहां एक चट्टान काटकर बनाई गई बाहुबली की विशाल प्रतिमा है। इन्हें गोमटेश्वर भी कहा जाता है। मान्यता है कि ऋषभदेव के दो पुत्र थे भरत और बाहुबली, ऋषभदेव के वन चले जाने पर दोनों में राज्य के लिए युद्ध हुआ।
इसमें बाहुबली की विजय हुई, लेकिन युद्ध से उन्हें विरक्ति हो गई और भरत को राज्य देकर तपश्चरण में लीन हो गए। इसके बाद इन्हें कैवल्य प्राप्त हुआ। बाद में भरत ने बाहुबली के सम्मान में पोदनपुर में 525 धनुष की बाहुबली की मूर्ति की स्थापना की। भयानक जंगल के कारण यहां लोग पहुंच नहीं पाते थे, इसके चलते गंगवंशीय रायमल्ल के मंत्री चामुंडा राय ने श्रवणबेलगोला में पोदनपुर जैसी मूर्ति स्थापित कराई।
बावनगजाः मध्य प्रदेश के बड़वानी शहर से 8 किमी दूर पवित्र तीर्थ स्थल बावनगजा में एक ही पत्थर को तराशकर बनाई गई पहले तीर्थंकर ऋषभदेव की 84 फीट ऊंची उत्तुंग प्रतिमा है। आदिनाथ की खड्गासन प्रतिमा भी है। बड़े मंदिर के पास 10 जिनालय भी हैं।
चांदखेड़ीः कोटा के पास खानपुर नाम का प्राचीन नगर है, खानपुर से 2 फर्लांग की दूरी पर चांदखेड़ी नाम की पुरानी बस्ती है। यहां विशाल जैन मंदिर है, और कई जैन प्रतिमाएं हैं।