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रावण की कुलदेवी का एक अद्भुत मंदिर आज भी मौजूद है यहां

– राम युद्ध के दौरान इन्हीं देवी की पूजा कर आशीर्वाद प्राप्त करने गया था मेघनाथ- यहां ये कहलाती हैं मां नारसिंही

Nov 21, 2022 / 02:29 pm

दीपेश तिवारी

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राम रावण युद्ध की कथा आपने भी कई बार सुनी होगी, इसी युद्ध के दौरान रावण का पुत्र मेघनाथ एक विशेष पूजा के तहत आशीर्वाद प्राप्ति के लिए अपनी कुलदेवी निकुंबला के मंदिर में भी गया था। जहां हनुमान जी सहित अन्य योद्धाओं ने उसे यज्ञ बीच में छोड़ने के लिए विवश कर दिया था। मान्यताओं के अनुसार रावण की कुल देवी निकुंबला देवी का एक मंदिर जिसमें मेघनाथ पूजा करने गया था वह श्रीलंका में ही मौजूद था।

इन्हीं निकुंबला देवी का एक मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में भी बना हुआ है, यहां इन्हें मां नारसिंही के नाम से जाना जाता है। वहीं इस मंदिर को कई मायनों में अत्यंत विशेष माना जाता है। इस मंदिर की बनावट और शैली देख कर ही लगता कि यह मंदिर काफी प्राचीन और ऐतिहासिक है।

यहां मौजूद इस मंदिर के बाहर प्रांगण में अनेक छोटे मंदिर भी बने हुए हैं। कुमाऊं के प्रसिद्ध इतिहासकार श्री बद्रीदत्त पांडेय जी ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ,”कुमाऊं का इतिहास ” में लिखा है कि, अल्मोड़ा का यह प्रसिद्ध देवी मंदिर चंदवंशीय राजा देवीचंद ने बनवाया था।

वहीं वर्तमान में भी यहां स्थानीय लोग पूजा – पाठ कथा पुराण आदि इस मंदिर में समय समय पर आयोजित करते रहते हैं। साथ ही स्थानीय लोग मां नारसिंही देवी के दर्शार्थ यहां आते रहते हैं।

दरअसल अल्मोड़ा जिले में गोलुछीना की घाटी में गल्ली बस्यूरा की तलहटी में बसा, माता के इस मंदिर के दोनों तरफ छोटी नदियां बहती हैं। ये यहां एक अतुलनीय रमणीक वातावरण का निर्माण करती हैं। तो चलिए जानते हैं, कौन है यह मां नारसिंही देवी ? मां नारसिंही देवी की पौराणिक कथा…

निकुंबला देवी : नारसिंही देवी की पौराणिक कहानी –
नारसिंही देवी का ही एक नाम प्रत्यंगिरा देवी भी है। इन्हें ही निकुंबला देवी के नाम से भी जाना जाता है। दशानन रावण की कुल देवी भी प्रत्यंगिरा देवी थीं। इनका सर शेर का और बाकि शरीर नारी का है। प्रत्यंगिरा देवी शक्ति स्वरूपा देवी हैं। यह देवी विष्णु ,शिव, दुर्गा का एकीकृत रूप है।

यह बात उस समय की जब भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा और लोगों को हिणाकश्यप के अत्याचार से मुक्ति देने के लिए नरसिंह का अवतार लिया था। श्रीहरि विष्णु का यह अवतार अत्यंत रौद्र और क्रोधी था। हिणाकश्यप के वध के पश्चात भी नरसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ। और वे अत्यंत रौद्र रूप में आ गए। विनाश की आशंका से डर कर, सभी देवता भगवान भोलेनाथ के पास जा पहुंचे। उन्होंने वहां भगवान शिव से प्रार्थना की वे भगवान नरसिंह का क्रोध शांत करें। तब भोलेनाथ ने शरभ का रूप धारण किया जो आधा पक्षी और आधा सिंह था। तब भगवान शिव का अवतार शरभ और विष्णु अवतार नरसिंह के बीच महायुद्ध शुरू हो गया।

दोनों काफी समय तक बिना निर्णय के लड़ते जा रहे थे। भगवान शिव और भगवान् विष्णु की शक्तियों का महायुद्ध धीरे धीरे इतना उग्र हो गया था कि, सृष्टि पर प्रलय का संकट मंडराने लगा था। ऐसे में इन दोनों महाशक्तियों को रोकना असम्भव लग रहा था। तब देवताओं ने आदिशक्ति, महाशक्ति योगमाया दुर्गा का आवाहन किया। क्योंकि इन दो शक्तियों को रोकने की क्षमता महाशक्ति दुर्गा के पास थी।

महाशक्ति ने आधा सिंह और आधा मानव रूप लेकर अवतार धारण किया, और अत्यंत तीव्र वेग और तीव्र हुंकार के साथ उनके बीच में प्रकट हो गई,ये देख दोनों स्तब्ध हो गए और उनके बीच का युद्ध समाप्त हो गया।

देवी ने दोनों के क्रोध आवेश और रौद्रता को अपने में शामिल करके दोनों को शांत कर दिया। इस प्रकार नरसिंह को शांत करने वाला देवी माता का यह रूप नारसिंही देवी के नाम से जगत में विख्यात हुआ। प्रत्यंगिरा देवी भगवान शिव और विष्णु की संयुक्त विनाशकारी शक्ति को अपने अंदर धारण करती है। प्रत्यंगिरा देवी को अघोर लक्ष्मी, सिद्ध लक्ष्मी, पूर्ण चंडी और अथ्वर्ण भद्रकाली के नाम से भी पुकारा जाता है।

यहां मौजूद है देवी मां का ये मंदिर
मां नारसिंही का ऐतिहासिक मंदिर देवभूमि उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के गोविंदपुर क्षेत्र, गल्ली बस्यूरा नामक गांव में स्थित है। अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 28-30 किलोमीटर दूर, अल्मोड़ा-द्वाराहाट मोटरमार्ग के पास स्थित मां नारसिंही देवी अपने आप में अति विशेष है।

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