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सुकमा

नक्सलियों ने बदली अपनी रणनीति, अब पुलिस नहीं इन लोगों को बना रहे निशाना

Chhattisgarh Naxalite: गौरतलब है कि बस्तर में माओवादी और पुलिस के बीच चल रहे घोषित युद्ध में दोनों ही तरफ से समय-समय पर परिस्थिति के अनुसार रणनीति में बदलाव किया जाता है। अब तक बारिश में शांत रही पुलिस ने जहां वर्ष 2018 में बड़ा रणनीतिक बदलाव करते हुए ऑपरेशन मानसून चलाया था।

सुकमाOct 02, 2019 / 04:29 pm

Karunakant Chaubey

नक्सलियों ने बदली अपनी रणनीति, अब पुलिस नहीं इन लोगों को बना रहे निशाना

नक्सलियों ने बदली अपनी रणनीति, अब पुलिस नहीं इन लोगों को बना रहे निशाना

जगदलपुर. Chhattisgarh Naxalite: बस्तर में पिछले 15 दिनों में माओादियों ने जिस तरह से 7 लोगों की हत्या की है वह उनकी बड़ी रणनीतिक बदलाव की तरफ इशारा कर रहा है। सिर्फ सितंबर माह के अंतिम पंद्रह दिनों में ही माओवादियों ने बस्तर के अलग-अलग जिले में मुखबिरी का आरोप लगाकर 7 लोगोंं की हत्या कर दी। इस तरह की हत्याओं में जहा तेजी आई हैं वहीं मुठभेड़ की संख्या में बड़ी कमी।

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इससे साफ है कि माओवादी अब सीधी लड़ाई से बचना चाह रहे हैं। गौरतलब है कि बस्तर में माओवादी और पुलिस के बीच चल रहे घोषित युद्ध में दोनों ही तरफ से समय-समय पर परिस्थिति के अनुसार रणनीति में बदलाव किया जाता है। अब तक बारिश में शांत रही पुलिस ने जहां वर्ष 2018 में बड़ा रणनीतिक बदलाव करते हुए ऑपरेशन मानसून चलाया था।

जिसमें बड़ी सफलता भी हाथ लगी। वहीं अब माओवादी अपने निशाने पर सुरक्षाबल के जवानों से ज्यादा पुलिस के मुखबिर को रखे हुए हैं। पिछले एक महीने में माओवादियों ने जिन सात लोगों की हत्या कम से कम इसी ओर इशारा कर रही है।

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नहीं मिलता सम्मान

मुखबिर के नाम मारे गए लोगों के साथ सबसे बड़ी समस्या है कि पुलिस उन्हें अपना मुखबिर ही नहीं मानती। यदि मानती है भी तो गिने-चुने लोगों को। लेकिन पुलिस के साथ मिलकर काम करने वाले इन लोगों की जब मुखबिर के नाम पर हत्या होती है तो इनमें से किसी को सम्मान नहीं मिलता। इसे लेकर कुछ परिवारों ने अपनी नाराजगी भी जताई थी। सम्मान ही नहीं बहुत से मारे गए ग्रामीणों के परिवार को राहत राशि तक नहीं मिलती और मरने के बाद न कोई इनके परिवार की तरफ पटलकर देखता है।

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दोनों की रीढ़ हैं ‘मुखबिर’

बस्तर का अधिकतर इलाका सघन जंगलों से घिरा हुआ है। ऐसे में यहां कई इलाके तक सरकार की पहुंच नहीं है। यहीं वजह भी रही कि माओवादियों ने इसे अपना गढ़ बना लिया। ऐसे में यदि फोर्स जंगल की ओर आ रही हो तो मुखबिर ही जानकारी देते हैं। वहीं माओवादियों की मूवमेंट की जानकारी भी मुखबिर पुलिस तक पहुंचाते हैं। बड़े ऑपरेशन इन्हीं की निशानदेही पर चलाई जाती है। मुखबिर ग्रामीण होते हैं इसलिए माओवादी इन्हें ताड़कर आसानी से निशाना बना लेते हैं। लेकिन सूचना के मामले में माओवादी व पुलिस द्वारा बनाए गए उनके मुखबिर उनकी रीढ़ होते हैं।

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कब-कब हुई हत्या

15 सितंबर – मिडिया मंजाल – किरंदूल
20 सितंबर – तातली बुधराम – किरंदूल
24 सितंबर – मरकाम रोहित – सुकमा
24 सितंबर – माड़वी लच्छा – सुकमा
26 सितंबर – केदार मंडावी – बीजापुर
28 सितंबर – मुचाकी लिंगा – सुकमा
1 अक्टूबर – माड़वी रामलू – बीजापुर

सीधी लड़ाई से बच रहे माओवादी, अब विकास कार्यों में आगजनी

बस्तर में माओवादियों से निपटने के लिए बस्तर में इस वक्त करीब 70 हजार जवान तैनात हैं। वहीं धीरे-धीरे माओवादियों के प्रभाव वाले इलाकों में भी रणनीति के तहत कैंप खोला जा रहा है। ऐसे में माओवादियों का इलाका सिमटता जा रहा है।

यही वजह है कि अब वे सीधी लड़ाई से बच रहे हैं और गांव में रहने वाले मुखबिरों को निशाना बना रहे हैं। इतना ही नहीं विकास के लिए हो रहे निर्माण कायस्थल में पहुंचकर इसमें लगे वाहनों में आगजनी भी इसी बौखलाहट का नतीजा है।

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