दक्षिण अफ्रीका के 2010 में जुडऩे के बाद यह समूह ‘ब्रिक’ से ‘ब्रिक्स’ बन गया। अब दुनिया के 40 से अधिक देशों ने इस समूह में शामिल होने में रुचि दिखाई है। अब तक 20 से अधिक देशों ने औपचारिक रूप से ब्रिक्स का सदस्य बनने के लिए आवेदन किया है। इन देशों में सऊदी अरब, ईरान, यूएइ, अर्जेंटीना, इंडोनेशिया, मिस्र और इथियोपिया शामिल हैं।
एक दशक से अधिक के विकास के बाद ब्रिक्स सहयोग काफी मजबूत हुआ है। अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने ब्रिक्स को व्यापक रूप से मान्यता दी है और उसका समर्थन किया है। यह संगठन अंतरराष्ट्रीय मामलों में एक सकारात्मक, स्थिर और रचनात्मक शक्ति बन गया है। जी7 से अलग, ब्रिक्स की भावना में आपसी सम्मान और समझ, समानता, एकजुटता, खुलापन, समावेशिता और सर्वसम्मति शामिल है, इसलिए कई देश इस तंत्र में शामिल होना चाहते हैं।
कई देश दशकों से वैश्विक अर्थव्यवस्था पर अमरीका के प्रभुत्व से थक गए हैं, जो डॉलर के लेनदेन को मजबूर करता है। ब्रिक्स के विस्तार से अमरीकी डॉलर को बड़ा झटका लग सकता है। यदि ब्रिक्स अपनी मुद्रा लॉन्च करता है, तो यह डॉलर का विकल्प बन सकती है। हालांकि तमाम चर्चाओं के बावजूद इस बारे में कोई ठोस प्रस्ताव सामने नहीं आया है। वहीं रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी प्रतिबंधों के चलते भारत सहित कई देश व्यापार के लिए वैकल्पिक मुद्राओं का इस्तेमाल करने लगे हैं।