वे काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के आसपास के इलाके में रहती हैं, यह क्षेत्र पर्यटक केन्द्र है। इस क्षेत्र में नियमित रूप से भारी मात्रा में फेंका गया प्लास्टिक कचरा देखा जाता है। 17 वर्ष पहले उन्होंने इस प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने के बाद बुनने की कोशिश की। जब उन्हें इसकी तकनीक समझ आई तो उन्होंने कई अन्य महिलाओं को इस काम से जोड़ा।
35 गांवों में शुरुआत की
रूपज्योति असम के साथ देश के अन्य राज्यों से भी करीब 2300 महिलाओं को प्रशिक्षित कर चुकी हैं। उन्होंने असम के 35 गांवों में प्लास्टिक कचरा बुनने की पद्धति की शुरुआत की। उन्होंने सभी प्रकार के प्लास्टिक कवर और रैपर का उपयोग किया है, जो उत्पाद को एक रंगीन फिनिश देते हैं।
‘विलेज वीव्स’ दिया नाम उन्होंने अपने इस काम को ‘विलेज वीव्स’ नाम दिया। वे कहती हैं कि मैंने इस काम के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं लिया है। मैं पर्यावरण को लेकर चिंतित रहती थी। इस समस्या से निपटने के लिए मैंने यह काम शुरू किया और यह आइडिया अच्छा निकला।