मुंबई। मन को छू लेने वाली सादगी से भरपूर बॉलीवुड की दिग्गज अदाकारा दीप्ति नवल हर मायने में एक ‘कलाकार’ हैं। उन्होंने न केवल रूपहले पर्दे पर अभिनय की छाप छोड़कर एक उम्दा कलाकार के तौर पर अपने हुनर को साबित किया, बल्कि अपने मन के विचारों को खूबसूरती से कागज पर अल्फाजों के रूप में उतारा भी। जहां अपने फोटोग्राफी के शौक को पूरा किया, वहीं कैनवस पर जीवंत रंग भरकर एक नई पहचान बनाई। एक नजर बहुआयामी शख्सियत की धनी दीप्ति नवल के जीवन सफर पर…
पंजाब में जन्म, न्यूयॉर्क में पढ़ाई…
3 फरवरी, 1957 को पंजाब के अमृतसर में जन्मीं दीप्ति नवल ने अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा ‘सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट’ और उसके बाद हिमाचल प्रदेश में पालमपुर से की। उसके बाद उनके पिता को न्यूयॉर्क के सिटी यूनिवर्सिटी में नौकरी मिलने के बाद वह अमरीका चली गर्इंं। वहां उन्होंने न्यूयॉर्क की सिटी यूनिवर्सिटी से शिक्षा हासिल की और मैनहट्टन के हंटर कॉलेज से ललित कला में स्नातक की डिग्री हासिल की।
कॉलेज की पढ़ाई खत्म होने पर उन्होंने वहां एक रेडियो स्टेशन में काम करना शुरू कर दिया, जिस पर हिंदी कार्यक्रम भी आते थे। न्यूयॉर्क में कॉलेज खत्म करने के बाद उन्होंने मैनहट्टन के ‘जीन फ्रैंकल एक्टिंग एंड फिल्म मेकिंग कोर्स’ में दाखिला ले लिया। कोर्स शुरू करने के एक महीने बाद ही उन्हें भारत आने का मौका मिला और इसी दौरान उनके अभिनय कॅरियर की शुरुआत हुई।
अभिनय का ‘जुनून’
लेकिन श्याम बेनेगल की फिल्म ‘जुनून’ से बॉलीवुड में कदम रखने वाली दीप्ति के लिए फिल्मों में कदम रखना आसान नहीं था। बचपन से ही अभिनेत्री बनने का सपना पाले दीप्ति ने अपनी इस इच्छा को अपने मन में ही रखा था। स्नातक की पढ़ाई करने के बाद जब उन्होंने अपने माता-पिता के सामने अपनी यह इच्छा रखी, तो उनके पिता ने समझाया कि अभिनय केवल एक उम्र तक ही उनका साथ देगा, जबकि पेंटिंग वह ताउम्र कर सकती हैं। समझाने के बाद पिता ने फैसला बेटी पर ही छोड़ दिया।
‘एक बार फिर’ से मिली शोहरत…
दीप्ति को अभिनय का कोई अनुभव नहीं था। ‘जुनून’ में केवल दो तीन दृश्यों में दिखीं, दीप्ति ने अपने अभिनय की वास्तविक शुरुआत 1979 में ‘एक बार फिर’ से की, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। खूबसूरत चेहरे-मोहरे के कारण उन्हें अभिनेत्री के रूप में सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। दीप्ति ने अपने फिल्मी कॅरियर में लगभग 60 फिल्मों में अपने स्वाभाविक अभिनय से हर किरदार को जीवंत कर दिया।
‘चश्मे बद्दूर’, ‘मिर्च मसाला’, ‘अनकही’, ‘मैं जिंदा हूं’, ‘साथ-साथ’ और ‘कमला’ जैसी दीप्ति की उल्लेखनीय फिल्मों में मानी जाती हैं। इनके अलावा हाल ही ‘लीला’ और ‘फ्रीकी चक्र’ में काम किया है और फिल्म ‘भिंडी बाजार में’ नकारात्मक किरदार भी बखूबी निभाया। ‘लीला’, ‘फिराक’, ‘मेमरीज इन मार्च’ और ‘लिसन अमाया’ जैसी कई फिल्मों में अपनी भूमिकाओं के लिए उन्हें कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार दिया गया।
थिएटर, निर्माण और डायरेक्शन…
शबाना आजमी, स्मिता पाटिल, मार्क जुबेर, सईद मिर्जा जैसे थिएटर के मंझे हुए कलाकारों के बीच उन्होंने अपनी अभिनय प्रतिभा साबित की और समानांतर सिनेमा के लिए भी शबाना आजमी और स्मिता पाटिल के समान ही निर्देशकों की पहली पसंद बन गईं। उन्होंने फिल्मों में केवल अभिनय ही नहीं, किया बल्कि लेखन, निर्माण और निर्देशन में भी हाथ आजमाया और इसी क्रम में महिलाओं पर आधारित एक टीवी धारावाहिक ‘थोड़ा सा आसमान’ का लेखन और निर्देशन किया व एक यात्रा शो ‘द पाथ लेस ट्रैवल्ड’ का निर्माण किया।
प्यार…मोहब्बत, रिश्ते-नाते…
दीप्ति पहले फिमकार प्रकाश झा के साथ परिणय-सूत्र में बंधीं, बाद में तलाक हो गया। प्रकाश झा से उनके एक बेटा प्रियरंजन झा और एक बेटी दिशा झा हैं। तलाक के बाद वह प्रख्यात शास्त्रीय गायक पंडित जसराज के बेटे विनोद पंडित के करीब आईं। विवाह भी तय हो गया, लेकिन विवाह से पहले ही विनोद का देहांत हो गया। कला के अलावा वह मानसिक रूप से बीमार लोगों के बारे में जागरूकता फैलाने के काम में भी लगी हैं और साथ ही वह लड़कियों की शिक्षा के लिए अपने दिवंगत मंगेतर विनोद पंडित की याद में स्थापित ‘विनोद पंडित चैरिटेबल ट्रस्ट’ भी चलाती हैं।
कैनवस पर भरे जीवंत रंग और पन्नों पर अल्फाज…
फोटाग्राफी के शौक के चलते अपने कैमरे से खींची तस्वीरों से और अपनी कूची से उम्दा चित्रकारी कर उसमें रंग भरकर खाली कैनवस को जीवंत करके भी दीप्ति ने अपने कलाकार मन का परिचय दिया है। कला की गहराइयों में डूबीं दीप्ति ने तब अपने दोनों शौक पूरे करने का निर्णय लिया।
फोटाग्राफी के शौक को पूरा करते हुए उन्होंने ‘इन सर्च ऑफ स्काय’, ‘रोड बिल्डर्स’ और ‘शेड्स ऑफ रेड’ तस्वीर श्रृंखलाओं के माध्यम से अपनी फोटोग्राफी का हुनर दिखाया। हिमाचल और लद्दाख की पहाडिय़ों में ट्रैकिंग भी सादगी पसंद दीप्ति के शौक में शुमार हैं। बतौर चित्रकार उन्होंने कई कला प्रदर्शनियों में उम्दा पेंटिंग्स बनाकर चित्रकारी के रंगों की छटा बिखेरी।
कवयित्री के रूप में 1983 में उनका कविता संकलन ‘लम्हा-लम्हा’ प्रकाशित हुआ और 2004 में उनका एक कविता संग्रह ‘ब्लैक विंड एंड अदर पोयम्स’ प्रकाशित हुआ। वर्ष 2011 में उनकी लघु कथाओं का एक संग्रह प्रकाशित हुआ ‘द मैड तिब्बन स्टोरीज फ्रॉम देन एंड नाउ’।
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