बता दें कि वायु प्रदूषण को लेकर चिंतित पर्यावरण एक्टिविस्ट ने मार्च में जब कोरोना के चलते लॉकडाउन घोषित किया गया उसके कुछ दिन बाद से ही केंद्र व राज्य सरकारों को सलाह देना शुरू किया था कि प्रकृति ने धरती को स्वच्छ कर जिस तरह से प्रदूषण मुक्त किया है, उसे बरकरार रखने के लिए अब जरूरी कदम उठाने ज्यादा जरूरी हैं। इस संबंध में वर्षों तक सिंगरौली और आस-पास के इलाकों में वायु प्रदूषण के लिए काम करने वाली वाराणसी की पर्यावरण एक्टिविस्ट केयर 4 एयर की प्रमुख एकता शेखर व शानिया अनवर ने केंद्र और राज्य सरकारों को पत्र भी लिखा था। लेकिन उस पर कोई गौर नहीं फरमाया गया। नतीजा सामने है।
ग्रीन पीस की ताजा रिपोर्ट के अनुसार सल्फर डाई ऑक्साइड के उत्सर्जन में सिंगरौली को देश का पहला और विश्व का छटवां शहर बताया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले दो सालों से सिंगरौली में इसकी लगातार ग्रोथ हो रही है। ग्रीन पीस की इस रिपोर्ट ने ऊर्जांचल की आबो हवा को सबसे प्रदूषित करार देते हुए प्रदूषण की रोकथाम के लिए शासन व प्रशासन के स्तर से हो रहे प्रयासों का खुलासा कर दिया है।
ग्रीन पीस इंडिया और सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर की सालाना रिपोर्ट के अनुसार देश में एसओटू का उत्सर्जन 2018 की तुलना में 2019 में रिकॉर्ड 6 प्रतिशत कम हुआ है। यह पिछले चार साल में सबसे बड़ी गिरावट है। बावजूद इसके भारत लगातार पांचवें साल दुनिया के सबसे बड़े एसओटू उत्सर्जक देशों की सूची में शीर्ष पर है।
रिपोर्ट बताती है कि 2019 में यहां (भारत) दुनिया के कुल मानव निर्मित एसओटू का सर्वाधिक 21 प्रतिशत उत्सर्जन हुआ, जो इसी सूची में भारत के बाद दूसरे स्थान पर मौजूद रूस का लगभग दोगुना है। वहीं चीन तीसरे नंबर पर है। वार्षिक रिपोर्ट में सल्फर डाइऑक्साइड को सबसे बड़ा कार्बन उत्सर्जक बताया गया है। जानकारों के मुताबिक एसओटू एक जहरीली हवा प्रदूषक है जो स्ट्रोक, हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर और अकाल मौत के जोखिम को बढ़ाती है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में इसके बड़े उत्सर्जन केंद्र सिंगरौली, नेवेली, सिपथ, मुंद्रा, कोरबा, बोंडा, तमनार, तालचेर, झारसुगुड़ा, कच्छ, चेन्नई, रामागुंडम, चंद्रपुर, विशाखापत्तनम और कोराडी के थर्मल पावर स्टेशन हैं। ग्रीन पीस इंडिया के क्लाइमेट कैंपेनर अविनाश चंचल कहते हैं, हम तीन शीर्ष उत्सर्जक देशों में एसओटू में कमी देख रहे हैं। भारत में हमें इसकी झलक मिलती है कि किस तरह से इसमें कमी आई है। 2019 में अक्षय ऊर्जा की क्षमता में विस्तार हुआ, कोयले पर निर्भरता कम हुई और हमने वायु की गुणवत्ता में सुधार देखा लेकिन अभी हम सुरक्षित हवा के लक्ष्यों से दूर हैं। हमें अपनी सेहत और अर्थव्यवस्था के लिए कोयले से दूरी बनाकर नवीकरणीय स्रोत को गति देनी चाहिए। उन्होंने बताया है कि 2015 में पर्यावरण मंत्रालय ने कोयले से चलने वाले बिजली स्टेशनों के लिए एसओटू के उत्सर्जन की सीमा तय की थी लेकिन ये पावर प्लांट अपने यहां दिसंबर 2017 की समय सीमा तक एफजीडी इकाइयां नहीं लगा सके। ऐसे में यह समय सीमा 2022 तक बढ़ा दी गई, क्योंकि जून 2020 तक अधिकांश बिजली संयंत्र तय मानकों का बिना पालन किए काम कर रहे थे। सिंगरौली के पावर प्लांट्स में एफजीडी अभी पूरी तरह से एक्टिवेट नहीं हैं।