करमैती बाई गौने की पहली रात घर छोड़ वृंदावन पहुंची
कठिन काल कलियुग्ग में, करमैती निकलंक रही, नस्वर पति रति त्यागि, कृष्ण पद सौं रति जोरी…। यह पंक्ति श्रीनाभाजी के भक्तमाल ग्रंथ की है जो खंडेला निवासी भक्त शिरोमणी करमैती बाई के बारे में लिखी है। करमैती बाई कृष्ण भक्ति में अपने गौने की पहली रात को ही घर छोड़कर पैदल ही वृंदावन पहुंच गई थी।
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भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हुए और भोजन करवाया
ग्रंथ के अनुसार 18 दिन भूखी-प्यासी रहने के बाद खुद भगवान श्रीकृष्ण ने संत वेश में प्रकट होकर उन्हें भोजन करवाया था। उन्हीं करमैती बाई की श्रीकृष्ण प्रतिमा की बांके बिहारी मंदिर में करीब 600 साल से पूजा हो रही है जिसे करमैती बाई ने वृंदावन से उन्हें लौटाने पहुंचे पिता परशुरामजी को भक्ति का उपदेश देते हुए दी थी।
ब्रम्हापुरी में जन्मी थी करमैती बाई
भक्तमाल ग्रंथ के अनुसार करमैती बाई खंडेला के शेखावत राजा के पुरोहित परशुरामजी की बेटी थी जो बचपन से ही कृष्ण भक्त थी। 12 वर्ष की उम्र में जयपुर के सांगानेर के जोशी परिवार में विवाह के बाद जब पति गौना करवाने आए तो पहली रात को ही वह पैदल घर से निकल गई और रास्ते में मिले तीर्थयात्रियों के साथ वृंदावन पहुंचकर कृष्ण भक्ति करने लगी। यहां भक्तमाल के अनुसार 18 दिन तक भूखी- प्यासी रहने के बाद खुद भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें संत वेश में दर्शन दिए और अपने हाथ से प्रसाद ग्रहण करवाया था।
राजा भी बने भक्त
भक्तमाल के अनुसार करमैती बाई के वृंदावन पहुंचने की सूचना पर पहले पुरोहित पिता परशुराम उन्हें लेने गए जहां करमैती बाई के लौटने से इनकार करने पर उन्होंने खाली हाथ घर नहीं लौटने की बात कही। इस पर करमैती बाई ने यमुना नदी से ये मूर्ति निकालकर भक्ति के उपदेश के साथ पिता को दी, जिसे खंडेला में प्रतिष्ठित कर पिता भी कृष्ण भक्ति में लीन रहने लगे। जब शेखावत राजा को इसकी जानकारी हुई तो वे भी पहले परशुरामजी से मिलकर करमैती बाई से मिलने वृंदावन गए जहां वह यमुना नदी के पास श्रीकृष्ण वियोग में आंसू बहाती मिली। करमैती बाई की भक्ति से राजा का भाव भी भक्तिमय हो गया और हठ करके उन्होंने ब्रम्हाकुण्ड के पास करमैती बाई के लिए एक कुटिया बनवा दी, फिर वापस लौटकर वे भी कृष्ण भक्ति में ही लग गए।
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