डॉ.रूचि शुक्ला ने बताया कि साइटिका इन कारणों से होता है जिसमें लबर हर्निएटेड डिस्क, स्पोंडिलोसिस, डीजेनरेटीव डिजीज, पिरिफोर्मिस सिंड्रोम, लम्बर स्पाइनल स्टेनोसिस, सैक्रोइलिअक ज्वाइंट डिसफं क्शन, प्रेगनेंसी, घाव का निशान, मांसपेशियों में तनाव, स्पाइनल ट्यूमर, कमर में संक्रमण, लंबर वेर्टेब्रा में फैक्चर, कई घंटो तक बैठ कर कार्य करना आदि शामिल हैं। इसके लक्षण कमर में दर्द, पांव के पंजे में वीकनेस और दर्द, पैर के अंगूठे और उंगलियो का मुड़ा होना, पेशाब एवं मल त्याग करने में तकलीफ, पैरों और पंजों का संवेदी प्रतिक्रिया की अनुभूति की क्षमता की आंशिक या पूर्ण हानि हो जाती है, रोगी को बेचैनी सुई चुभने जैसा दर्द होता है।
रोग उग्र होने पर रोगी को संपूर्ण विश्राम कराना चाहिए, फि जियोथेरेपी चिकित्सा लेनी चाहिए जिससे मांसपेशियां सक्रिय होती है, पंचकर्म चिकित्सा में नाड़ी स्वेद कटि बस्ती एवं बस्ती लेने पर संपूर्ण रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है, लहसुन किसी भी प्रकार केसूजन में इसकी 4 कली कच्ची सुबह अथवा 4 कली शाम को 200 ग्राम दूध में उबाल कर ठंडा होने पर सेवन करने पर लाभ होता है। मेथी इसमें फास्फेट फोलिक एसिड जिंक कॉपर आदि न्यूट्रिएंट होते हैं। एक चम्मच मेथी दाना सुबह में लेने पर लाभ होता है। हरसिंगार पारिजात के पत्ते 250 ग्राम 1 लीटर पानी में उबालकर ठंडा होने पर 1-2 रत्ती केसर मिला कर रोज सुबह-शाम एक कप पीने पर विशेष लाभ होता है। नियमित व्ययाम करने से मसल मजबूत बनते हैं, इसके लिए भुजंगासन, बज्रासन, मत्यासन, व्युमुद्रासन आदि रोगी को करना चाहिए और साइटिका के लिए लगातार अधिक समय तक काम न कर आराम करें, आगे झुकने पर परहेज करना चाहिए और भारी सामान नही उठाना चाहिए, गर्म पानी से सिकाई करनी चाहिए, कुर्सी शौंचालय का उपयोग करना चाहिए।