गुरु के इस परीश्रम का कारण ये है कि, स्कूल तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है। इसलिए दिव्यांग छात्र किसी वाहन या व्हील चेयर जैसे संसाधन से स्कूल नहीं पहुंच सकता। शिक्षक का कहना है कि, अगर ऐसी परिस्थिति में वो अपने छात्र का साथ छोड़ते हैं तो उसके भविष्य का नुकसान होगा। ये कोई भी शिक्षक नहीं चाहेगा कि, उसके शिष्य का भविष्य बर्बाद हो।
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जटिल रास्तों से गुजरते हुए स्कूल आते जाते हैं बच्चे
बता दें कि, सीधी जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर अगरियान टोला कंजवार नाम का आदिवासी बाहुल्य गांव मझौली विकासखंड में आता है। गरियान टोला कंजवार में बनी शासकीय प्राथमिक पाठशाला तक जाने के लिए अबतक सड़क नहीं बनी है। यहां बच्चों को खेत की मेड़ से गुजरत हुए ऊबड़-खाबड़ रास्ते से होते हुए शिक्षा हासिल करने जाना पड़ता है। खासतौर पर स्कूल में पढ़ने वाले छोटे छोटे बच्चों को बारिश के दिनों में आवागमन के दौरान खासा परेशानी का सामना करना पड़ता है।
बारिश के दिनों में आती है असली परेशानी
वहीं, स्कूल की कक्षा-5वीं में पढ़ने वाला छात्र कुशल कुमार मिश्रा दोनों पैर से दिव्यांग है। सूखे मौसम में तो अकसर वो किसी तरह घिसटते हुए या ट्रायसायकल से स्कूल पहुंच जाता है, लेकिन बारिश के दिनों में न तो ट्रायसायकल काम की रहती और न ही वो जमीन पर घिसटकर स्कूल पहुंच सकता। बताया ये भी जा रहा है कि, कुशल के माता-पिता मजदूरी करते हैं, ऐसे में अकसर वो सुबह से ही काम पर निकल जाते हैं, इसलिए खासतौर पर बारिश के दिनों में स्कूल के शिक्षक शैलेंद्र सिंह बालेंदु खुद उसे अपने कंधों पर बैठाकर स्कूल तक ले जाते हैं।
पढ़ने में बेहद होशियार है कुशल
शिक्षक शैलेंद्र सिंह बालेंदु के अनुसार, कुशल को पढ़ने का बहुत शौक है और वो आगे काफी पढ़ना चाहता है। वो पढ़ने में काफी होशियार और उसके पढ़ने की ललक को देखते हुए मैं उसके सपने को अपने कांधों पर उठाकर स्कूल तक लाता हूं। इसलिए उसको मैं कंधे में बैठाकर स्कूल लाता हूं, ताकि उसकी पढ़ाई बाधित न हो।