पत्रिका के फैक्ट चैक में पता चला है कि यह प्रथा कई वर्षों तक थी, अब इस प्रकार के मामले नहीं आते हैं…।
हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले के एक गांव की, जहां से कोई भी शख्स अपने लिए किराए पर बीवी मिलती थी। इस प्रथा का नाम ‘धड़ीचा’ है। प्रथा के तहत, देश का कोई भी अमीर शख्स इस गांव की लड़कियों को बतौर बीवी किराए पर ले सकते थे, लेकिन ये बंधन जिंदगीभर का नहीं होता। ये सौदा महीने या साल के हिसाब से होता था।
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एग्रीमेंट खत्म होने पर पुरुष तय करता है ये बात
प्रथा के तहत किराए पर पत्नी लेने के लिए यहां पुरूष और लड़की के घरवालों में पहले एक रकम तय की जाती थी, जो 500 से 50 हजार रुपए तक हो सकती है। यहां किराए पर बीवी लेने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं और जिसे जितने समय के लिए लड़की चाहिए, वो उसे ले जा सकता है। 10 रूपए के स्टांप पेपर पर शर्ते लिखकर दोनों पक्ष हस्ताक्षर करते थे। सौदा तय होने के बाद उस महिला को तय वक्त तक बीवियों वाली सारी जिम्मेदारियां निभानी होती थी। एग्रीमेंट खत्म होने पर ये पुरूष पर निर्भर करता है कि, वो आगे नया एग्रीमेंट करके उसी महिला के साथ रहना चाहता है या फिर दूसरी बीवी किराए पर लेता है।
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दूसरे राज्यों में भी थी यह प्रथा
आपको बता दें कि, इस प्रथा का चलन सिर्फ मध्य प्रदेश के शिवपुरी में ही नहीं, बल्कि गुजरात के भी कुछ गांव ऐसे हैं, जहां ‘धड़ीचा प्रथा’ थी। हैरानी की बात है कि किराए पर बीवी की कुप्रथा कई दशकों से लगातार ऐसे ही चली थी। लेकिन, कई सामाजिक संगठनों के आवाज उठाने पर यह प्रथा-धीरे-धीरे बंद हो गई।
फैक्ट चैकः
फैक्ट चैक में यह पता चला है कि यह कुप्रथा कई वर्षों पहले तक होती थी, जिसमें स्टांप पैपर पर बकायदा एग्रीमेंट होता था। क्योंकि जब एग्रीमेंट होता था तो पुलिस को भनक लग जाती थी और दोनों पक्षों को गिरफ्तार कर लिया जाता था। इसलिए एग्रीमेंट करके लड़कियों को किराए पर लेने की प्रथा बंद हो गई। सूत्रों के मुताबिक यह प्रथा दबे-छुपे भी होने की संभावना है। फिर भी पुलिस इस प्रकार के लोगों पर निगरानी रखती है।