माता के भक्तों में सबसे बड़ी संख्या निसंतान दंपतियों की होती है। मान्यता है कि जो लोग दवा कराकर थक चुके होते है और जब कोई उपाय नहीं होता तब लोढ़ीमाता उनके लिये उम्मीद बन जाती है। माता के दर से आज तक कोई खाली हाथ नहीं लौटा है। जो भी मन्नत लेकर यहां आया वह पूरी जरूरी होती है। मनौती के लिये मंदिर के पीछे गोबर से हाथे लगाए जाते हैं और जब मनौती पूरी हो जाती है तो फिर भक्त माता का आभार जताने नरवर आते हैं और अठवाई का प्रसाद चढ़ाकर माता की पूजा करते हैं।
शिवपुरी जिले के इस प्राचीन नगर नरवर का ऐतिहासिक महत्व भी है। लोढ़ीमाता के मंदिर से जुड़ी एक पौराणिक कथा है जो नरवर के राजा राजा नल से जुड़ी है। इस कहानी की पुष्टि एक पुरातत्व अभिलेख से भी होती है कि लोढ़ी माता पूर्व में नटनी थी, जो कई जादुई शक्तियों की मालिक थी। एक बार राजा और नटनी के बीच शर्त लगी कि पहाड़ पर बने राजा के किले तक अगर कच्चे दागे पर नाचकर पहुंच गई तो राजा क्या देंगे। राजा नल ने बिना सोचे समझे कह दिया कि अगर एसा हुआ तो वह अपना सारा राजपाट उसे दे देंगे।
कोरोना के चलते लोड़ी माता ट्रस्ट कमेटी ने मंदिर को बंद कर दिया था, लेकिन श्रद्धालुओं का नरवर आना बंद नहीं हुआ मंदिर बंद होने के बाद भी लोग बाहर से पूजा करते रहे। हर दिन हजारों की संख्या में मंदिर के बाहर पहुंचे भक्तों ने बाहर से ही पूजा कर लौट जाते।