वेरियर एल्विन की पढ़ाई लिखाई ऑक्सफोर्ड में हुई। एल्विन ने डीन क्लोज स्कूल और मेरटन कॉलेज जो कि ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के ही हिस्से हैं वहां से पढ़ाई की। एल्विन ने अंग्रेजी लिटरेचर में बीए प्रथम श्रेणी और एमए की डिग्री हासिल की। वहीं से डीएसडी की डिग्री भी ली। वह 1925 में ऑक्सफोर्ड में इंटर कॉलिजिएट क्रिश्चियन यूनियन का प्रेसिडेंट भी रहा। एल्विन ने ऑक्सफोर्ड में ही एक साल तक पढ़ाया भी।
एल्विन का भारत आगमन
वेरियर एल्विन 1927 में मिशनरी के तौर पर भारत आए। उन्होंने यहां आकर पुणे में क्रिश्चियन सर्विस सोसायटी ज्वाइन की। इसके बाद उन्होंने एक भारतीय ईसाई के साथ मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, पूर्वी महाराष्ट्र का भ्रमण किया। एल्विन ने यहां पर आदिवासियों के बारे में जानकारी ली और मानवशास्त्रियों द्वारा पूर्व में किए गए शोध का भी गहन अध्ययन किया।
आदिवासियों के बीच काम करते हुए एल्विन गांधीवादी विचारधारा से काफी प्रभावित हुए। रबीन्द्र नाथ टैगोर ने भी उन्हें काफी प्रभावित किया। इस दौरान एल्विन ने स्वतंत्रता आंदोलन में भी भाग लिया। गांधी जी ने एक बार कहा कि वे एल्विन को अपने बेटे की तरह प्यार करते हैं। इस दौरान एल्विन ने कई आदिवासी समुदायों के बीच काम किया, लेकिन मारिया और बैगा आदिवासी समुदाय के बीच किए गए काम को सबसे अच्छा माना जाता है।
मध्यप्रदेश के डिंडोरी जिले में काम करते हुए वेरियर एल्विन ने अपनी गृहस्थी भी बसा ली। वे अपनी ही छात्रा जो गोंड आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखती थी, उसे दिल दे बैठे। कोशी बाई नाम की उस लड़की से ४ अप्रैल १९४० को उन्होंने शादी कर ली। डिंडोरी जिले के रैठवार गांव में एल्विन ने स्कूल खोला था, कोशी बाई उसी स्कूल की छात्रा थी। वर्ष1941 में उनको एक बेटा हुआ, जिसका नाम रखा गया जवाहरलाल।
कोशी से तलाक और बेटे की मौत
कोशी और एल्विन का साथ बहुत लंबे समय तक नहीं रहा। एल्विन ने वर्ष 1949 में कोशी एल्विन को तलाक दे दिया। इस तलाक पर मुहर लगाई कलकत्ता हाईकोर्ट ने। इस मामले से एल्विन काफी आहत थे। उन्होंने आत्मकथा में लिखा कि ‘मैं जीवन के उस हिस्से को आज भी जब याद करता हूं तो गहरे दर्द और अवसाद में डूब जाता हूं। कोशीबाई जीवन भर एल्विन की याद में तनहा जीती रहीं। इस बीच उनके बेटे की भी मृत्यु हो गई।
कोशीबाई से तलाक के बाद एल्विन ने एक दूसरी आदिवासी लड़की लीला से 1950 में फिर शादी कर ली। इसके बाद वे लीला के साथ शिलांग में रहने लगे। लीला से तीन बेटे हुए, वसंत, नकुल और अशोक। एल्विन 22 फरवरी 1964 को एल्विन की हार्ट अटैक से दिल्ली में मौत हो गई। लगभग 80 साल की उम्र में उनकी दूसरी पत्नी लीला की भी मुंबई में मौत हो गई। इससे कुछ दिन पहले ही उनके सबसे बड़े बेटे वसंत की मौत हुई थी।
वेरियर एल्विन काफी विवादास्पद भी रहे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने के लिए उन्हें पादरी समुदाय से बहिष्कृत कर दिया गया। इसके बाद एल्विन ने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया। वे गांधी आश्रम में रहने लगे। एल्विन ने आदिवासी समुदाय के बीच काफी काम किया। उन्होंने मध्यप्रदेश, उड़ीसा और पूर्वोत्तर के क्षेत्रों में आदिवासी जीवन पर अध्ययन किया। वे नेफा (नार्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) के साथ जुड़े और उसके बाद वे शिलांग में ही बस गए।