इसलिए दिया ‘सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग’ नाम
हैमिल्टन बताती हैं कि उन्होंने इसे ‘सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग’ की बजाय कोई और नाम क्यों नहीं दिया। उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उस दौर में साइंस और विज्ञान के क्षेत्र में महिलाओं को अपनी काबिलियत साबित करने के लिए ढेरों चुनौतियों का सामना करना पड़ता था। मैंने भी सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग को सम्मान और वैधता दिलाने के लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी ताकि यह और इसे बनाने वाले लोगों को इसका उचित आदर मिले। यही वजह है कि मैंने इसे हार्डवेयर और अन्य प्रकार की इंजीनियरिंग से अलग करने के लिए खासतौर से ‘सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग’ शब्द का इस्तेमाल करना शुरू किया। जब मैंने पहली बार इस शब्द का उपयोग करना शुरू किया तो इसका काफी मजाक बनाया गया। लेकिन आखिर में इसे सभी ने आदर के साथ स्वीकार किया। उन्होंने बताया कि शुरुआती दिनों में इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग जानते ही नहीं थे कि वे किस पेशे में है। इसलिए वे शुरू से यह चाहती थीं कि इसे इंजीनियरिंग के किसी अन्य क्षेत्र के रूप में सम्मान दिया जाए। हैमिल्टन ने बताया कि सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग शुरुआत में नासा के अपोलो कार्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा नहीं था। लेकिन 1965 आते-आते स्पष्ट हो गया था कि इसके बिना वे चांद पर कभी नहीं पहुंच पाएंगे। जब हैमिल्टन इसप्रोग्राम में शामिल हुईं तब नासा को उम्मीद हुई कि वे अब दुनिया का सबसे पहला चंद्र मिशन भेजने में कामयाब हो सकते हैं।
चुनौती चांद तक पहुंचने जितनी बड़ी
मारग्रेट और उनकी टीम के विकसित किए गए अंतरिक्ष मिशन सॉफ्टवेयर का मैन्युअली मूल्यांकन किया जाना था। इसलिए यह जरूरी था कि उनके कोड और प्रोग्राम न केवल काम करें बल्कि ये पहली ही बार में सफल भी होने चाहिए थे। इसके लिए न केवल सॉफ्टवेयर को खुद बिल्कुल सटीक और फुल-प्रूफ होना चाहिए था बल्कि यह मिशन के दौरान रियल टाइम में किसी भी तकनीकी खराबी का पता लगाने और उसे ठीक करने में भी सक्षम होनी चाहिए थी। लेकिन हमारी ‘लैग्वेज’ (Software Language or सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग में एक टर्म जो कोड और प्रोग्राम बनाने में काम आती है) ने हमें त्रुटियों को दूर करने की हिम्मत दी। हमने अपने दम पर सॉफ्टवेयर बनाए अपनी गलतियों से रोज सीखा। उनके सॉफ्टवेयर ने सफलतापूर्वक काम किया और जब दुनिया का पहला चंद्रयान अपोलो 11 चंद्रमा पर उतरने वाला था तब मारग्रेट के सॉफ्टवेयर प्रोग्राम ने सामान्य ऑपरेशन को ओवररोड किया ताकि अंतरिक्ष यात्रियों को किसी भी संभावित परेशानी का पता चल सके। इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह थी कि मारग्रेट ने यह सारे कोड अपोलो प्रोजेक्ट के लीड सॉफ्टवेयर इंजीनियर के तौर पर 1969 में अपनी टीम की मदद से हाथों से लिखे थे।
ऐसे बनाया चंद्र मिशन को सफल
अपोलो 11 मिशन इंसान का अंतरिक्ष में पहला कदम था इसलिए इसे किसी भी कीमत पर सफल होना जरूरी था। लेकिन मिशन के दौरान परेशानी तब आई जब नील आर्र्मस्ट्रॉंग उतरने की तैयारी में थे। लेकिन धरती पर नासा के मुख्यालय में मौैजूद कंप्यूटर रेंडेजवियस राडार और लैंडिंग सिस्टम से मिले कमांड के कारण ओवरलोड हो गया था। इसे ठीक करने के लिए कंप्यूटर को अधिक से अधिक प्रोसेसिंग पॉवर की जरुरत थी। उस समय राडार अपनी 13 फीसदी क्षमता पर और लैंडिंग सिस्टम 90 फीसदी क्षमता पर चल रहे थे लेकिन इसे संतुलित करने के लिए प्रोसेसिंग को बढ़ाना आवश्यक था। लेकिन हैमिल्टन ने कंप्यूटर को क्रमबद्ध काम करने की बजाय किसी खास समय की जरुरत और महत्त्व के अनुसार काम करने के लिए प्रोग्राम किया था। जब कम्प्यूटर और लैंडिंग सिस्टम पर प्रायोरिटी प्रदर्शित होती है तभी अंतरिक्ष यात्रियों को यान से उतरने या न उतरने का निर्णय लिया जाता है। लेकिन हैमिल्टन के सॉफ्टवेयर्स ने स्थिति को संभाल लिया और इस तरह मानव का पहला कदम चांद पर पड़ा और हमेशा के लिए अमर हो गया।