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विज्ञान और टेक्नोलॉजी

भारतीय खगोलविज्ञानी जिसने नासा के सूर्य मिशन में निभाई अहम भूमिका

बीते साल नासा के महत्त्वकांक्षी सोल मिशन की सफलता में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी

Dec 10, 2019 / 05:22 pm

Mohmad Imran

भारतीय खगोलविज्ञानी जिसने नासा के सूर्य मिशन में निभाई अहम भूमिका

भारतीय खगोलविज्ञानी जिसने नासा के सूर्य मिशन में निभाई अहम भूमिका

मानव सभ्यता के लिए सूरज हमेशा से ही कौतूहल बना रहा है। बीते साल अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इतिहास बनाते हुए पहला सूर्य मिशन पार्कर सोलर प्रोब मिशन सूरज पर भेजा है। इस मिशन की सफलता में एक भारतीय महिला खगोल विज्ञानी मधुलिका गुहाठाकुरता ने सबसे अहम भूमिका निभाई थी। कोलकाता में जन्मी और मुंबई, दिल्ली एवं कोलारैडो से पढ़ाई करने वाली मधुलिका के पास दिल्ली विश्वविद्यालय से खगोल विज्ञान में मास्टर्स डिग्री और डेनवर विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री है। उन्होंने नासा की महत्वाकांक्षी परियोजना लिविंग विद द स्टार्स का 15 वर्षों तक नेतृत्व किया है। इस परियोजना का उद्देश्य सौर परिवर्तन की समझ को बढ़ाना और उसका अनुमान लगाने के अलावा पृथ्वी, मानव तकनीक और अंतरिक्ष यात्रियों पर उसके असर का अध्ययन करना था।
यह परियोजना एक दूसरी पहल की वजह भी बनी जिसे ‘इंटरनेशनल लिविंग विद स्टार्स’ का नाम दिया गया। इसके चलते दुनिया भर की अंतरिक्ष एजेंसियों को एकसाथ आकर अंतरिक्ष के मौसम को समझने के वैज्ञानिक लक्ष्य के लिए काम करने का मौका मिला। मधुलिका ने चार वर्षों तक इस समूह की अध्यक्षता की और अब भी इसकी संचालन समिति की सदस्य हैं।
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वे ‘सोलर टेरेस्ट्रियल रिलेशंस ऑब्जरवेटरी(स्टेरियो), ‘सोलर डायनॉमिक्स ऑब्जरवेटरी] (एसडीओ), वेन एलन प्रोब्स, सोलर ऑरबिटर, बीते साल गए पार्कर सोलर प्रोब और नासा के अन्य स्पेस मिशन में प्रोग्राम साइंटिस्ट रह चुकी हैं। वह नासा के हेलियोफिजिक्स डिवीजन की प्रवक्ता भी हैं। उन्होंने इस नए क्षेत्र के बारे में ग्रेजुएट स्तर की किताबें भी लिखी हैं। इसे खगोल भौतिकी और मौसम विज्ञान का मिलाजुला रूप कहा जा सकता है। मधुलिका के शोध में सूर्य को एक तारा मानते हुए उसके पृथ्वी पर असर के साथ सूर्य की सबसे बाहरी सतह कोरोना का अध्ययन भी शामिल है।
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सूर्य के अध्ययन में बिताई जिंदगी
मधुलिका बताती हैं कि उन्होंने ग्रेजुएशन में सूरज के अध्ययन का विकल्प इसलिए चुना क्योंकि यही एकमात्र तारा है जिसके बारे में विस्तार से अध्ययन किया जा सकता है। उनके निजी शोध का उद्देश्य सोलर विंड और कोरोनल मास इजेक्शन के उत्पन्न होने के क्षेत्रों का पता लगाने और विभिन्न ग्रहों के बीच उनके आगे बढऩे को समझना था। सोलर विंड और कोरोनल मास इजेक्शन की वजह से पैदा हुए ऊर्जावान कण ही अंतरिक्ष और पृथ्वी समेत अन्य ग्रहों पर मौसम की वजह होते हैं। इसका सीधा असर पृथ्वी और बड़े ग्रहों पर पड़़ता है। यही नासा की लिविंग विद स्टार प्रोग्राम की थीम है। वे कहती हैं कि जब मैं सोलर प्रोब मिशन के बारे में सोचती थी तो बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि एक दिन मैं ही इस मिशन को हकीकत में बदलूंगीं। एक रिसर्च साइंटिस्ट के रूप में मैं स्पेस शटल के पांच स्पार्टन 201 मिशनों मे शामिल हुई जो पृथ्वी से सोलर कोरोना में वाइट लाइट और अल्ट्रावायलट किरणों के विकिरण के अध्यययन करने के लिए थे। इसके अलावा मैं आठ ग्रहणों के अध्ययन के अभियानों में भी शामिल रही।
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अंतरिक्ष के अनछुए पहलुओं को किया उजागर
नासा में मधुलिका ने 1998 से एक खगोल विज्ञानी के रूप में काम किया। इस दौरान उन्हें एक वैज्ञानिक, मिशन डिजाइनर, उपकरण निर्माता, विज्ञान के कार्यक्रमों के निर्देशन और प्रबंधन, अध्यापक और हेलियोफिजिक्स डिवीजन के मिशन और विजन के प्रवक्ता के रूप में काम करने का मौका मिला। हमने लिविंग विद ए स्टार कार्यक्रम के बारे में बताते हुए कुछ ऐसी तस्वीरें दिखाई जो दूसरे किसी के पास नहीं थीं। मैंने तारामंडल से जुड़े दो मुख्य शो कॉस्मिक कोलिजन और जर्नी टू द स्टार्स को बनाने में भी मदद की। उन्होंने 3 डी आईमैक्स और स्टीरियो मिशन पर बने प्लेनेटेरियम शो 3 डी सन को तैयार करने में भी मदद की। ये शो पूरी दुनिया में चल रहे हैं। इनसे बच्चों, आम लोगों, बुजुर्गों सभी को अंतरिक्ष के बारे में जानने समझने का मौका मिल रहा है जो शायद उन्हें कहीं और से नहीं मिल पाता। वे लिविंग विद ए स्टार की वर्ष 2001 में पहली प्रोग्राम साइंटिस्ट बनी और 2016 तक इस पद पर कायम रहीं। अब वे नासा के सिलिकॉन वैली स्थित रिसर्च सेंटर में काम कर रही हैं। लिविंग विद ए स्टार कार्यक्रम इसलिए महत्त्वपूर्ण था कि इसमें अध्ययन का दायरा पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी (15 करोड़ किलोमीटर) तक फैला हुआ है। इसमें परमाणु से लेकर तारों के अध्ययन तक शामिल है। कॉस्मिक किरणों और सौर ऊर्जा कणों में होने वाले बदलावों को समझना, सूर्य और जलवायु के संबंधों को समझना कि कैसे विद्युत-चुंबकीय विकिरण और सौर ऊर्जा कणों का असर थर्मोस्फेयर, मेसोस्फेयर, ऊपरी वायुमंडल और पृथ्वी की जलवायु को प्रभावित करता है। इसके अलावा इससे पृथ्वी की विकिरण पट्टी के हालात का पूर्वानुमान लगाया जाता है जहां से अंतरिक्ष यान अक्सर जाते हैं। इसी से पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल पर एसडबल्यूएक्स के प्रभाव का आकलन संभव होता है जो उपग्रहों की सुरक्षा और जीपीएस जैसे नैविगेशन की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण होता है। वे हेलियोफिजिक्स से जुड़े एक और मिशन पर भी काम कर रही हैं। इसके अलावा मधुलिका अभी यूरोपियन स्पेस एजेंसी के साथ साझेदारी में एक सोलर ऑरबिटर को तैयार कर उसे लांच करने पर भी काम कर रही हैं जो सूर्य की विषुवत रेखा से सौर गतिविधियों पर निगाह रखेगा।
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सौर मिशन को सफल बनाया
पार्कर सोलर प्रोब एक ऐततिहासिक मिशन है क्योंकि इसके माध्यम से भौतिकी के कई मूलभूत सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की गई है। इनमें प्रमुख रूप से हमारे तारों का वायुमंडल उनकी सतह के मुकाबले हजारों गुना गर्म क्यों है, सौर हवाएं क्यों चलती हैं जिससे पृथ्वी और हमारे सौर मंडल पर असर पड़ता है। हम ऐसे सवालों से दशकों से जूझ रहे हैं और उम्मीद है कि इस मिशन से हमें इन सवालों के जवाब मिल जाएंगे। 1983 से सोलर प्रोब मिशन के बारे में सोच रहीं मधुलिका ने बताया कि वर्ष 2001 में जब उन्हें एलडब्ल्यूएस प्रोग्राम का दायित्व मिला तभी से इस मिशन के प्रोग्राम साइंटिस्ट की जिम्मेदारी भी संभाली। मिशन के प्रोग्राम साइंटिस्ट के रूप में उन्होंने इसे सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
उन्होंने नई पीढ़ी के वैज्ञानिकों के लिए हेलियोफिजिक्स पर पांच किताबें भी तैयार की हैं। इससे तुलनात्मक हेलियोफिजिक्स के नए शोध क्षेत्र का आधार तैयार होता है। मधुलिका का मानना है कि जैसे-जैसे मानव या हमारे बनाए रोबोट सौर मंडल में फैलते जाएंगे तब हमें ऐसे नजरिए और समझ की जरूरत होगी ताकि हम जहां जाने की सोचें उस जगह को समझ सकें और साथ ही उससे जुड़े खतरों का भी अनुमान लगा सकें। जैसे कि आज टाइटन पर कैसा मौसम होगा या सौर तूफान से यूरोप के बर्फीले इलाके पर कैसा असर पड़ेगा या किस उपग्रह पर उतरना सुरक्षित होगा। सोलर प्रोब मिशन से विकिरण वाले उस वातावरण को समझने में मदद मिलेगी जिसमें भविष्य के अंतरिक्ष अन्वेषियों को काम करना है और रहना है। मधुलिका का कहना है कि सोलर प्रोब जैसे मिशनों की बदौलत एक दिन मानव केवल पृथ्वी का निवासी बन कर नहीं रह जाएगा बल्कि सुदूर अंतरिक्ष तक उसकी पहुंच कायम हो पाएगी।
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