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जोधपुर

Jodhpur News: सैनिक कभी थकता नहीं, सरहदों की रक्षा कर छुट्टियों में घर आने वाले जवान चला रहे हैं ऐसा मिशन

सालवा कलां के रामनगर निवासी पारस चौधरी वर्तमान में भारतीय सेना की 6वीं जाट रेजीमेंट में हैं। चौधरी छुट्टियों में गांव में बने रामबाग एवं खेल स्टेडियम में पौधारोपण अभियान चलाने के साथ ही इनकी नियमित साफ-सफाई व सौंदर्यकरण भी करते हैं।

जोधपुरJan 15, 2025 / 10:16 am

Rakesh Mishra

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पत्रिका फोटो

सालवा कलां के रामनगर निवासी पारस चौधरी वर्तमान में भारतीय सेना की 6वीं जाट रेजीमेंट में हैं। चौधरी छुट्टियों में गांव में बने रामबाग एवं खेल स्टेडियम में पौधारोपण अभियान चलाने के साथ ही इनकी नियमित साफ-सफाई व सौंदर्यकरण भी करते हैं।
देश की सरहद पर राष्ट्र की रक्षार्थ तैनात सैनिक अपने गांवों और ढाणियों को भी संवारने में किसी से पीछे नहीं हैं। वे छुट्टियों में जब भी घर आते हैं तो सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्य में जुट जाते हैं। उनकी मेहनत का ही नतीजा है कि गांवों में कहीं बगीचे लहलहा रहे हैं तो कहीं युवाओं को सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित भी करते हैं। प्रस्तुत है राजस्थान के जोधपुर जिले की कुछ ऐसी कहानियां।

ड्यूटी पर मातृ भूमि और छुट्टियों में जन्मभूमि की सेवा

जोधपुर जिले के भोपालगढ़ क्षेत्र के गांव सालवा कलां को ‘सैनिकों का गांव’ अथवा ‘फौजियों के गांव’ के नाम से भी पहचाना जाता है। यहां के युवाओं में देश की रक्षा करने के लिए सैनिक बनने का जज्बा इस कदर है कि सेना की हरेक भर्ती रैली में इस गांव से 8-10 युवाओं का चयन तो पक्का ही होता है।
सालवा कलां के रामनगर निवासी पारस चौधरी वर्तमान में भारतीय सेना की 6वीं जाट रेजीमेंट में हैं। चौधरी जब भी छुट्टियों में अपने गांव आते हैं तो मातृभूमि के साथ अपनी जन्मभूमि की सेवा में भी अच्छा-खासा समय व्यतीत करते हैं। चौधरी छुट्टियों में गांव में बने रामबाग एवं खेल स्टेडियम में पौधारोपण अभियान चलाने के साथ ही इनकी नियमित साफ-सफाई व सौंदर्यकरण भी करते हैं। चौधरी खेल मैदान में कुछ दिनों के लिए विशेष ट्रेनिंग कैंप का आयोजन करते हैं और गांव के युवाओं व विद्यार्थियों को सेना में भर्ती होने के लिए प्रेरित करते हैं।

गांव को हरा भरा करने के लिए लगाए हजारों पौधे

जोधपुर जिले का शेरगढ़ सैनिक बाहुल्य क्षेत्र है। इस क्षेत्र से वर्तमान में करीब 5000 सैनिक ड्यूटी पर हैं। इनमें से खिरजा फतेह सिंह गांव के फौजी राजेंद्र सिंह जब भी अवकाश में गांव आते हैं तो पेड़-पौधे लगाकर पर्यावरण को बढ़ावा दे रहे हैं। इसी गांव के फौजी देवाराम एवं माधा राम देवासी ने बताया कि उन्होंने भोमियाजी का स्थान एवं तालाब पर 5000 पौधे लगाए थे। जो आज काफी बड़े हो गए हैं।
जब छुट्टी पर आते हैं तो उन पौधों की देखभाल करते हैं। गांव में पूर्व सैनिक भी पुरातन परम्पराओं के निर्वहन में सहयोग करते है। गांव के फौजी राजेंद्र सिंह एवं देवाराम बताते हैं कि जब वह छुट्टी आते हैं तो गांव में बच्चों एवं युवाओं को अनुशासन सिखाना उनकी पहली प्राथमिकता होती है। साथ ही फौज में जाने के इच्छुक बच्चों एवं युवाओं को सेना में भर्ती के लिए प्रेरित करने के साथ इसके लिए अभ्यास भी कराते हैं।

गांव में नहीं होने देते मुकदमे बाजी

खिरजा फतेह सिंह गांव के पूर्व सैनिक आईदान सिंह, चंद्र सिंह, हिम्मत सिंह, भोजराज सिंह एवं गुमान सिंह सहित अन्य पूर्व सैनिक गांव में आपसी छोटे मोटे झगड़ों को गांव में ही सुलह कराने का प्रयास करते हैं। दोनों पक्षों को समझाने के साथ पूरा प्रयास रहता है कि मुकदमेबाजी नहीं हो। इसी का परिणाम है कि गांव में आज भी कोई मुकदमेबाजी नहीं चल रही है।

सरहद तक पहुंचता है मां के हाथों से बने व्यंजनों का स्वाद

जब भी सेना के किसी यूनिट का साथी गांव से छुट्टी बिताकर वापिस यूनिट में लौटता है तो अपने गांव के साथ आसपास के अपने सैनिक साथियों के उनके घर से भेजे जाने वाले पसंदीदा व्यंजन लेकर ही लौटता है। खास तौर से यूनिट के अन्य साथियों के लिए घर से मां के हाथ के बने देसी व्यंजन ले जाना नहीं भूलते है। हजारों किलोमीटर दूर अलग अलग सीमाओं पर तैनात सैनिकों के घर से भेजे गए मां के हाथ से बने देसी व्यंजनों से घर परिवार की यादें ताजा हो जाती है। सैनिकों के लिए घर के देसी घी से बने लड्डू, तिल लड्डू, खुरमुरे, देसी मगद, चूरमा सहित कई पारम्परिक व्यंजन पहुंचाते हैं।
भारतीय सेना के इंटेलिजेंस ब्यूरो बरेली में सेवाएं दे रहे बेलवा राणाजी निवासी भोमसिंह हाल ही में गांव से वापिस यूनिट में लौटे है। उनके साथ शेरगढ़ व आसपास के गांवों के 4-5 साथी भी पोस्टेड हैं। वे बताते हैं कि यूनिट में साथियों के लिए घर से जब से खाद्य सामग्री ले जाते हैं तो वो बेहद भावुक कर देने वाला पल रहता है। भारतीय सेना के राजपूताना राइफल्स कानपुर उत्तरप्रदेश में तैनात केतु मदा के जोगेंद्रसिंह बताते हैं कि जब भी गांव से कोई साथी छुट्टी से वापिस यूनिट में लौटने के बाद सभी सैनिक साथी घर के बने व्यंजनों का आनंद लेते हैं।

बालिका शिक्षा को बनाया मिशन

शेरगढ़ के निकटवर्ती नाहर सिंह नगर में अधिकांश घरों में सैनिक हैं। दलपत सिंह 1971 में भर्ती होने के बाद 1984 में ऑपरेशन ब्लू स्टार में अपनी सेवाएं देने के बाद रिटायर्ड हुए। उन्होंने सिपाही रहते हुए सेवा काल में ही जीवन भर अविवाहित रहने तथा अपने शेष जीवन को सामाजिक कार्य, पर्यावरण संरक्षण, गोसेवा तथा समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने में लगाने का निर्णय किया।
वर्ष 1990 में नाहर सिंह नगर में मात्र राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय था और बालिका शिक्षा के प्रति ग्रामीणों की सोच सकारात्मक नहीं थी। विद्यालय में संसाधनों की भी कमी होने पर दलपत सिंह ने अपनी पहली पेंशन से विद्यालय में हाल और बरामदा बनवाया। उनकी प्रेरणा से मित्र फौजी गोपाल सिंह ने भी एक कमरा बनवाया। वर्तमान समय में स्थानीय राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय नाहर सिंह नगर में 65 फीसदी से अधिक बालिकाएं अध्यनरत हैं।

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