नवजातों में जन्मजात बहरेपन का पता लगाने के लिए स्कूल ऑफ इंटरनेशनल बायोडिजाइन (एसआईबी) कार्यक्रम के तहत एक स्टार्टअप मैसर्स सोहम इनोवेशन लैब्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने नया उपकरण ‘सोहम’ बनाया है। इससे शुरू में ही यह पता चल जाएगा कि शिशु में कहीं बहरेपन की बीमारी तो नहीं। शुरुआत में ही इस बीमारी का पता चल जाने से इसका इलाज भी आसान होगा। अब तक आम तौर पर बच्चों में बहरेपन का पता देर से चलता था, जिससे इलाज भी उतना ही मुश्किल हो जाता था।
कम उम्र में बीमारी का पता चल जाने पर इलाज आसान हो जाएगा। इससे देश में हर साल बहरेपन के साथ पैदा होने वाले एक लाख बच्चों को फायदा मिलेगा। दुनियाभर में यह संख्या आठ लाख है। खास बात यह है कि मौजूद तकनीकों के विपरीत इसमें जांच के लिए बच्चों को बेहोश करने की जरूरत नहीं होती।
सोहम कम लागत वाला चिकित्सा उपकरण है। इसमें बच्चे के सिर में तीन इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं और आवाज होने पर दिमाग में विद्युत धारा के प्रवाह को मापा जाता है। यदि आवाज पर दिमाग में कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है तो पता चल जाता है कि बच्चा बहरेपन का शिकार है। मौजूदा सभी तकनीकों में नवजात में बहरेपन का पता लगाने के लिए बच्चे को बेहोश करना पड़ता है, जिसमें जोखिम भी होता है, लेकिन नई तकनीक में इसकी जरूरत नहीं होती।
जन्मजात बहरेपन का कारण आनुवांशिक या गर्भवती में पोषक तत्वों की कमी होती है। इनमें से अकेले एक लाख भारत में होते हैं। एसआईबी कार्यक्रम का लक्ष्य देश में उन बीमारियों के लिए किफायती चिकित्सा उपकरणों का विकास करना है जिनके लिए अब तक कोई उपकरण नहीं हैं या काफी महंगे हैं। इसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) और आईआईटी दिल्ली की ओर से संयुक्त रूप से क्रियान्वित किया जा रहा है।
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