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सतना

सियासत के बियाबान में गुम हुआ हाथी, MP में वोट बैंक भी बिखरा

1993 से 2013 तक मजबूत स्थिति में थी बसपा, राजनीतिक भविष्य की तलाश में ‘जहां-तहांÓ बिखर गए कार्यकर्ता

सतनाOct 27, 2017 / 07:21 pm

suresh mishra

bahujan meeting

Bahujan Samajwadi Party latest news in mp india

सतना। उपचुनाव के लिए सोमवार को बसपा नेता शाकिर हसन ने भी नामांकन दाखिल किया था, जो मंगलवार को हुई स्कूटनी में खारिज हो गया। जबकि, पार्टी की रुचि चुनाव में नहीं है। वैसे भी बसपा के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, हसन को सिंबल मिलने पर संशय था। क्योंकि ‘ऊपर सेÓ निर्देश नहीं था।
सिंबल न मिलने पर हसन निर्दलीय प्रत्याशी हो जाते। संभव था पत्नी मरजीना के पक्ष में नाम वापस लेकर उनका प्रचार करने लगते। अब पर्चा खारिज होने से मरजीना मैदान में हैं और साफ हो गया कि बसपा चुनाव नहीं लड़ रही।
अतीत पर नजर
विधानसभा क्षेत्र में बसपा के चुनावी अतीत पर नजर डालें तो पार्टी सन् 1993 से 2013 तक अच्छी स्थिति में रही है। 1990 में कमलेश पटेल को हालांकि 3754 वोट मिले थे, लेकिन 93 में पार्टी मजबूत हुई। गणेश बारी सामान्य आॢथक स्थिति के होते हुए भी 18749 वोटों के साथ विधायक चुने गए। उसके बाद भले ही पार्टी का विधायक नहीं चुना गया पर, प्रत्याशियों को सम्मानजनक वोट मिलते रहे। 1998 में दोबारा बसपा ने बारी को उतारा और 16480 मत प्राप्त हुए। 2003 में बद्री प्रसाद पटेल ने बढ़त ली। मिलने वाले मतों की संख्या 24,119 हो गई। 2008 में रंजन बाजपेई को 18,534 और 2013 में तीरथ प्रसाद कुशवाहा को 24,275 वोट मिले।
कमजोर होता गया संगठन
2013 के बाद पार्टी संगठन कमजोर होता गया। गतिविधियां समाप्तप्राय हो गईं। कार्यकर्ता बदलते हालातों से हताश होकर घर बैठने लगे। प्रदेश और राष्ट्रीय पदाधिकारियों ने संगठन को लावारिस छोड़ दिया। लगातार गिरावट से ‘हाथीÓ सियासी बियाबान में गुम हो गया। बावजूद, चित्रकूट विस क्षेत्र में बसपा के मुरीद आज भी हैं। वोट बैंक बिखर जरूर गया है पर, पार्टी से मोहभंग नहीं हुआ है। नेतृत्व की कमी से कायकर्ता राजनीतिक भविष्य की तलाश में जहां-तहां चले गए हैं।
दूसरा बड़ा वोट बैंक
विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक मतदाता ब्राह्मण हैं। इनकी संख्या लगभग ५८ हजार है। लेकिन, दूसरा बड़ा वोट बैंक हरिजन-आदिवासियों का है। संख्या ५२ हजार से अधिक है। इसके बाद १४ हजार यादव, ७ हजार ठाकुर व अन्य हैं। जाहिर है, बसपा के ‘अच्छे दिनोंÓ में ५२ हजार वोटरों में से अधिकांश उसके साथ थे। जिन्हें संगठित करने का दोबारा प्रयास नहीं किया गया। सच तो यह है कि, चित्रकूट के परिणामों का निर्धारण इन्हीं दो वर्गों के मतदाता करते हैं। जातीय समीकरण यहां बहुत मायने नहीं रखते। ‘जरूरत और मददÓ दो ही आधार हैं।
यूपी का असर
क्षेत्र में बसपा की परिस्थितियां पड़ोसी राज्य से भी प्रभावित होती रही हैं। जब-जब यूपी में बसपा की सरकार रही जिले का संगठन उत्साहित रहा। अप्रत्यक्ष तौर पर पड़ोस से मदद मिलती रही। वहां के मंत्री भी आते-जाते रहे। आॢथक चिंताएं भी अपेक्षाकृत कम रहीं। जैसे ही यूपी के हालात बदले, पार्टी की सरकार गई, संगठन की मदद बंद हो गई। नेताओं के दौरे नहीं होते। बहन जी के आदेश-निर्देश नहीं आते। कार्यक्रमों का टोटा हो गया। बसपा जनता और अपनों के बीच से दूर हो गई।
मतदाता विभाजित
बसपा के मतदाता विभाजित हो चुके हैं। इनमें ज्यादातर गरीब, दलित और जरूरतमंद लोग हैं। कुछ को सरकार की योजनाओं से मिले लाभ ने भाजपा से जोड़ा तो कुछ कांग्रेस की तरफ झुक गए। हालांकि, वैचारिक और सियासी विचारधारा के चलते बसपा ज्यादातर कांग्रेस के करीब रही है। विस क्षेत्र में ६५ फीसदी गरीब मतदाता के की पहली प्राथमिकता दैनिक जरूरतों की पूर्ति है। नमक से लेकर चिमनी के तेल तक उसकी रोजाना की जरूरत है। बसपा से इतर उसका झुकाव वहीं होता है जहां से उसकी जरूरत पूरी होती है। फिर चाहे वह व्यक्ति विशेष हो या दल।

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