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सोशल मीडिया पर तेजी वायरल हो रहे देहरादून निवासी मो. आरिफ खान द्वारा इंसानियत का धर्म निभाने पर उसे बधाई देने का सिलसिला जारी है। हालांकि, मामला बीते वर्ष का है, जब आरिफ को सूचना मिली कि अजय नामक युवक को ए-पॉजिटिव ब्लड की आवश्यकता है और उसे डोनर नहीं मिल रहा है। इसके बाद आरिफ ने युवक के पिता को फोन कर पूछा तो उन्होंने उसे तुरंत बुलाया और बताया कि उसके पुत्र के मात्र पांच हजार प्लेटलेट्स बचे हैं तो वह तुरंत हॉस्पिटल पहुंच गया और चिकित्सिक को बताया कि उसका रोजा है। इस पर डॉक्रों ने उसे कुछ खाने को कहा, जिस पर उसने अजय की जान बचाने के लिए अपना रोजा तोड़कर कुछ खाने के बाद उसे जरूरत का खून दिया।
रोजा कजा कर आरिफ द्वारा युवक की जान बचाने की खबर जब सोशल मीडिया पर चली तो लोगों ने मुफ्ती-ए-कराम से पूछा कि क्या ऐसा किया जा सकता है। इसपर उलेमा ने कहा कि किसी को खून देने में रोजा तोड़ने की जरूरत नहीं है। या बिना रोजा तोड़े भी खून दान किया जा सकता है। मोबाइल फतवा ऑन लाइन के प्रभारी मुफ्ती अरशद फारुकी ने बताया कि रोजे में किसी जरुरतमंद को खून दिया जा सकता है, जिसके लिए रोजा तोड़ने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने बताया कि आरिफ ने इंसानियत के नाते डॉ. की सलाह पर जल्दबाजी में रोजा कज़ा कर दिया। मुफ्ती अरशद फारूकी ने बताया कि रोजा उसी सूरत में कजा किया जा सकता है या तो अपनी जान जाने का अंदेशा हो या फिर रोजा कजा करने वाला उस एक रोजे के बदले दो माह के रोजे रखने की हिम्मत रखता हो।
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मुफ्ती अहमद गोड ने भी कहा की रोजा हमें कुर्बानी देना सिखाता है और शरीयत भी इस चीज की इजाजत देती है कि अगर किसी की जान बच रही हो तो रोजा तोड़कर पहले खुन दे सकते हैं। खुन की जरूरत चाहे किसी को भी हो, चाहे वो किसी भी धर्म का हो।