शिक्षाविद् बोले-बेटियों को पढ़ाना है तो रीवा में नया कन्या महाविद्यालय खोलना होगा
– शिक्षाविदों ने शहर में नए कन्या महाविद्यालय के लगातार उठ रही मांगों को बताया सही- हर साल बड़ी संख्या में प्रवेश से वंचित रह जाती हैं छात्राएं
रीवा। शहर में छात्राओं की पढ़ाई के लिए एक और कन्या महाविद्यालय खोले जाने की मांग तेज होती जा रही है। शहर के अलग-अलग वर्गों के लोगों ने भी कहा है कि समय की मांग के अनुरूप संस्थान खोले जाने की मांग उचित है। इसलिए रीवा में अब एक और कन्या महाविद्यालय खोला जाना जरूरी है। बीते कई वर्षों से कालेजों में प्रवेश के दौरान सबसे अधिक परेशानी छात्राओं को कन्या महाविद्यालय में ही होती है। हर साल औसत करीब दो हजार से अधिक की संख्या में छात्राएं यहां पर प्रवेश से वंचित रह जाती हैं। इनमें से कुछ तो दूसरे कालेजों में चली जाती हैं लेकिन अधिकांश की नियमित पढ़ाई यहीं पर रुक जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाली अधिकांश छात्राएं जो प्राइवेट कालेजों में अधिक शुल्क देकर शिक्षा ग्रहण करने में सक्षम नहीं होती या फिर वह किसी दूसरे शहर नहीं जा सकती उनके लिए सबसे अधिक संकट उत्पन्न हो रहा है। कई वर्षों से शहर में एक और कन्या कालेज खोले जाने की मांग उठाई जा रही है। प्रवेश के दिनों में जब सरकार पर नए कालेज को खोले जाने का दबाव बनता है तो सीटें बढ़ाई जाती हैं। धीरे-धीरे छात्राओं के प्रवेश के लिए इतना अधिक सीटें बढ़ा दी गई हैं कि बैठक व्यवस्था अब कम पडऩे लगी है। शहर के इकलौते कन्या महाविद्यालय में बीते कई वर्षों से हर वर्ष १५ से २० प्रतिशत सीटें बढ़ाई जा रही हैं। भवन भी कुछ नए बनाए गए हैं लेकिन वह पर्याप्त नहीं हैं। इसी वजह से नए कालेज की मांग अब तेज हो गई है। इसमें कई राजनीतिक दलों एवं अन्य सामाजिक संगठनों ने भी मांग उठाई है कि प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ होने से पहले रीवा में नया कन्या महाविद्यालय खोला जाए। छात्र संगठन एनएसयूआई छात्राओं के हित में नया कालेज खोले जाने के लिए बड़ा आंदोलन चलाने की तैयारी कर रहा है।
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शिक्षण संस्थान की कमी से बाहर जा रहे छात्र
शहर के शिक्षाविदों का कहना है कि रीवा में 60 के दशक में ही उच्च शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई थी। उसके बाद से शिक्षा के क्षेत्र में विशेष प्रयास कई वर्षों तक नहीं हुए। इसी वजह से रीवा एवं आसपास के जिलों के बड़ी संख्या में छात्र दिल्ली, भोपाल, इंदौर, जयपुर, जबलपुर, कोटा सहित अन्य शहरों में पढ़ाई के लिए जाते हैं। इसमें अब छात्राओं की संख्या में भी बढ़ती जा रही है। लोग अब अपने घरों की लड़कियों को बेहतर शिक्षा देने के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन रीवा में प्रवेश नहीं हो पाने की वजह से वह दूसरे शहर भेजते हैं। जिन लोगों की आर्थिक स्थिति इतनी सक्षम नहीं है कि वह बड़े शहर में पढ़ाई कराएं, उनके घरों की लड़कियों की पढ़ाई रुक रही है।
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शिक्षाविदों की राय——–
जीडीसी कालेज में लंबे समय तक प्राचार्य रहा हूं, चाहते हुए भी छात्राओं को पर्याप्त प्रवेश नहीं दे पाता था। जिस तरह से आवेदन आ रहे हैं उससे नया कालेज खोला जाना जरूरी हो गया है। भवनों का विस्तार तो हुआ है लेकिन वह भी कम पड़ रहा है। नया कालेज तो खोलना ही पड़ेगा तो इसी सत्र से खोला जा सकता है।
डॉ. विनोद श्रीवास्तव, पूर्व अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा
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जीडीसी में प्रवेश की मांग सबसे अधिक है, यहां जिन्हें प्रवेश नहीं मिलता वह दूसरे कालेजों में जाती हैं। बेटियों की शिक्षा की ओर अभिभावकों का रुझान बढ़ा है, इसलिए हर साल अधिक आवेदन आ रहे हैं। नया कालेज जरूरी हो गया है, मेरा मानना है कि स्थान का चयन ऐसी जगह हो जो आगे विस्तार के लिए भी पर्याप्त हो।
डॉ. एपी मिश्रा, पूर्व प्राचार्य टीआरएस कालेज
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60 वर्ष पहले कन्या महाविद्यालय की जरूरत समझी गई थी। तब और अब की जनसंख्या में कई गुना वृद्धि हुई है। बेटियों की शिक्षा के प्रति लोग जागरुक हुए हैं। नया कालेज खोला जाए तो नई शिक्षा के अनुरूप उसमें रोजगार परक कोर्स शुरू हों जो दूसरे कालेजों में नहीं हैं।
प्रो. रहस्यमणि मिश्रा, पूर्व कुलपति एपीएसयू रीवा
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रीवा संभागीय मुख्यालय है, यहां शिक्षा का स्तर बेहतर रहा है। दूसरे जिलों से छात्र-छात्राएं आते हैं। एक और कन्या महाविद्यालय रीवा में पहले ही खुल जाना चाहिए था, इसकी वजह में मैं नहीं जाना चाहता। हमने तो 60-70 के दशक में इस कालेज में पढ़ाया है। ऐसे कालेज की जरूरत है, जिसमें शहरों में शिक्षा के लिए जाने की जरूरत नहीं पड़े।
प्रो. पीके सरकार, शिक्षाविद् एवं जीडीसी के पूर्व प्रोफेसर
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