– लोकसभा में संकल्प के अध्ययन का दिया था आश्वासन
लोकसभा में मध्यप्रदेश पुनर्गठन विधेयक 2000 पेश किया गया था, चर्चा में भाग लेते हुए रीवा के तत्कालीन सांसद सुंदरलाल तिवारी ने मांग उठाई थी कि छत्तीसगढ़ के साथ ही विंध्यप्रदेश का भी संकल्प पारित हुआ है, इसके गठन की प्रक्रिया भी अपनाई जाए। उस दौरान गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा था कि यदि जनभावनाओं के आधार पर प्रदेश सरकार ने संकल्प पारित कराया है तो इसका अध्ययन किया जाएगा और संभावनाओं पर विचार होगा। इसके बाद से विंध्यप्रदेश गठन की मांग का मुद्दा धीरे-धीरे कमजोर होता गया।
– टूटते गए विभागों के प्रदेश मुख्यालय
स्टेट रि-आर्गनाइजेशन बिल पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि जिन राज्यों का विलय हो रहा है, उनका गौरव बनाए रखने के लिए प्रदेश स्तर के संसाधन दिए जाएंगे। विंध्यप्रदेश के विलय के बाद इसकी राजधानी रहे रीवा में वन, कृषि एवं पशु चिकित्सा के संचालनालय खोले गए। पूर्व में यहां हाईकोर्ट, राजस्व मंडल, एकाउंटेंट जनरल ऑफिस भी था। धीरे-धीरे इनका स्थानांतरण होता गया। उस दौरान भी यही समझाया गया कि विकास रुकेगा नहीं, लेकिन उस पर अमल नहीं हुआ। इसी तरह ग्वालियर में हाईकोर्ट की बेंच, राजस्व मंडल, आबकारी, परिवहन, एकाउंटेंट जनरल आदि के प्रदेश स्तरीय कार्यालय खोले गए। इंदौर को लोकसेवा आयोग, वाणिÓयकर, हाईकोर्ट की बेंच, श्रम विभाग आदि के मुख्यालय मिले। जबलपुर को हाईकोर्ट, रोजगार संचालनालय मिला था। रीवा के अलावा अन्य स्थानों पर राज्य स्तर के कार्यालय अब भी संचालित हैं, लेकिन यह केवल संभागीय मुख्यालय रह गया है।
– बड़े संस्थान देने में भी हो रही उपेक्षा
विंध्य क्षेत्र को बड़े संस्थान अन्य क्षेत्रों के तुलना में बहुत कम मिल रहे हैं। विंध्यप्रदेश पुनर्गठन को लेकर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व समन्वयक जयराम शुक्ला कहते हैं कि मध्यप्रदेश में आइआइटी, एम्स, युनिवर्सिटी सहित कई बड़े संस्थान इंदौर, भोपाल और जबलपुर को दिए जा रहे हैं। विंध्य में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, वह शिक्षा और रोजगार के लिए बाहर जा रहे हैं। यहां उद्योग भी आए तो धुएं और धूल वाले। विंध्यप्रदेश की राजधानी रहे रीवा को स्मार्ट सिटी जैसे प्रोजेक्ट से भी अलग रखा गया। जब रीवा राजधानी था तो यह लखनऊ, पटना, भुवनेश्वर जैसे शहरों के बराबर माना जाता था। उस समय भोपाल से बड़ा इसे माना जाता था। यहां राजनीतिक जागरुकता से सबसे अधिक रही लेकिन क्षेत्र के विकास में इसका फायदा जनप्रतिनिधि नहीं दिला सके।
– ऐसा था विंध्यप्रदेश
विंध्यप्रदेश में रीवा, सीधी(सिंगरौली), सतना, शहडोल(अनूपपुर,उमरिया), पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़(निवाड़ी), दतिया आदि जिले आते थे। 1300 ग्राम पंचायतें और 11 नगर पालिकाएं थीं। विधानसभा की 60 सीटें थीं और लोकसभा की छह सीटें थी। विंध्यप्रदेश की राजधानी रीवा हुआ करती थी।
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अलग प्रदेश होने से तेजी के साथ विकास होता। केन्द्रीय सेवाओं में राज्य का कोटा होता तो अधिक संख्या में अफसर तैयार होते। यहां शिक्षा और रोजगार के अवसर कम होते गए, जिसकी वजह से लोग दूसरे शहरों की ओर जा रहे हैं। सरकारों की उपेक्षा से यहां हताशा का भाव बढ़ता जा रहा है। विधानसभा का संकल्प अभी भी केन्द्र के पास लंबित है। मेरा मानना है कि अवसर जैसे-जैसे कम होते जाएंगे यहां जरूरतें बढ़ेंगी और फिर आवाज उठेगी। अलग प्रदेश का गठन आगे चलकर होगा।
शिवमोहन सिंह, पूर्व विधायक ( विंध्यप्रदेश का संकल्प प्रस्तुत करने वाले)